किसी के दिल से निकली इक दुआ हूँ
मैं जैसे एक अधूरी -सी सज़ा हूँ
मुझे तकरार ही में खो न देना
सुनो मैं एक लम्हा प्यार का हूँ
मुझे वो काश आ कर ये बताएं
नहीं इन्सां तो फिर मैं और क्या हूँ
हैं कुछ बदले हुए ये आईने भी
कुछ उन के साथ मैं बदला हुआ हूँ
भले हैं लोग सब दुनिया के यारो
मुझी में है कमी , मैं ही बुरा हूँ
मुझे वो ढूँढ़ते फिरते है हर सू
मैं दिल में जिनके बरसो से छुपा हूँ
कभी हँसते कभी रोते हो मुझ पर
कहो सचमुच मैं क्या इतना बुरा हूँ
असर हो जायेगा उस के भी दिल पर
मैं कितनी बार जिस से मिल चुका हूँ
शाइर - बशर देहलवी
No comments:
Post a Comment