Saturday, October 1, 2022

ग्रुनेवाल्दी में बिताये साल का दस्तावेज़ - हंगेरियन गद्य का आंशिक अनुवाद

 ग्रुनेवाल्दी में बिताये साल का दस्तावेज़ 


मैंने बहुत - सी बातों के बारे में निश्चय किया था और बहुत - सी बातो के बारे में निश्चय  नहीं कर पाया था।  मैं उस आने वाले साल में क्या करूँगा जो मुझे विशेनशाफ्टकॉलेग में किराये के मकान में बिताना है।  ईश्वर की मदद और सौभाग्य से वह सब कुछ पूरा नहीं हुआ जिसकी मैंने आखिर तक कोशिश की थी।  सबसे पहले मुझे ' पारहुज़ामोश ' शीर्षक कहानी पर काम शुरू करना था।  सब कुछ उसी तरह करना था जैसे कि घर पर करता था , दोपहर तक हमेशा काम में लगे रहना। दोपहर तक का यह समय मेरे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण था।  सुबह का नाश्ता अक्सर छूट जाता था और गपशप भी।  उठते ही एक बड़े कॉफ़ी के मग के साथ अपनी मेज़ पर आ जाना।  बाक़ी सब काम बंद।  न किसी को फ़ोन करना और न ही किसी से मुलाक़ात।, ख़बरें भी नहीं , इस समय किसी भी किस्म का शोर मुझे बर्दाश्त नहीं था।  


यह एक पागलपन और दीवानगी जैसा लगता था और वास्तव में ऐसा ही था।  पिछले दशकों में यही एक ऐसा तरीका था जोकि गद्य लेखन में निरंतरता कायम रखने के लिए ज़रूरी है।  ग्रुनेवाल्दी में स्थित मेरे स्टडी रूम का फर्नीचर मेरी सभी आवशयक ज़रूरतों के अनुकूल था।  सबसे ऊपरी मंज़िल के कमरे से चिनार व देवदार के पेड़ों के ऊपरी हिस्सों को देखा जा सकता था।  काम करते हुए भी मैं कबूतरों की रहस्यमयी उलझन भरी ज़िंदगी का गहराई से अध्ययन कर सकता था , उनका घोंसला बनाने से नवजात पक्षियों के पंख फड़फड़ाने तक। 


दोपहर के भोजन के समय मैं अपने अनुभव अमेरिकी पक्षी विज्ञानी तेचुमेश फिच के साथ बाँटता था और मैंने उनसे यह भी सीखा था कि देखने लायक क्या क्या हो सकता है।  तेचुमेश के परिवार में किसी पूर्वज का भारतीय नाम रख दिया गया था और तभी से हर भारतीय परिवार के पहले बच्चे का अँगरेज़ी नाम रख दिया जाता है और वे आपस में दोस्त बन जाते हैं। 


खिड़की के नीचे , एक -दूसरे  से कुछ दूरी पर ड्राइंग की बड़ी मेज़ जैसे दो बोर्ड लगे हैं जो मेरे डेस्क का काम देते हैं।  उनमे से एक पर मैं अपने लेख बड़े करीने से सजा देता हूँ और दूसरे पर  मैंने अपना टाइपराइटर  और  कंप्यूटर रखा हैं जो हालांकि हंगेरियन भाषा में लिपिबध है लेकिन अपने मूड के मुताबिक यह कभी कभी अँगरेज़ी या जर्मन में कभी कभी एक ख़ास अंदाज़ में तीन भाषाओँ के मिश्रण में तब्दील हो जाता है। 


मैं पहले हाथ से लिखता हूँ और फिर उसे टाइप करता हूँ , हाथ से ही ग़लतियों को सुधारता  हूँ और फिर टाइप करता हूँ।  मैं तब तक टाइप करता रहता हूँ जब तक कि पूरी ग़लतिया सुधर नहीं जाती।  उसके बाद मैं उस लेखन सामग्री को कंप्यूटर में डालता हूँ।  सीधे कंप्यूटर में भरे गए साहित्यिक गद्यांशों की संरचना काफ़ी  बनावटी लगती है लेकिन फिर भी अपने इस ढाँचे में ये गद्यांश विशिष्ट दिखाई पड़ते हैं। 


इसका तात्पर्य यह नहीं कि लेखन कोई शिल्पकारिता या कारीगिरी है।  मेरे लेखन में दोपहर का भोजन अक्सर बाधक बनता और उस से भी बढ़ कर भोजन की मेज़  पर विभिन्न वैज्ञानिक विषयों पर विचार - विमर्श और हर मंगलवार को वैज्ञानिक संगोष्ठियों का आयोजन। सामूहिक भोजन करने के कारण मेरे लेखन की अवधि भी कम हो जाती थी और मंगलवार को तो काम शुरू करने का प्रश्न ही नहीं उठता।  अपनी कार्यविधि को पूरा करने के लिए मैं हर सुबह नियत समय से पहले उठता लेकिन रात को कभी भी जल्दी नहीं सो पाता। मैं  मंगलवार की संगोष्ठियों में भी सम्मिलित होना चाहता था।  


मैं भाषणों की विवेकपूर्णता और स्वरूपता से अत्यंत प्रभावित हो जाता , वाद विवाद काफ़ी गंभीर स्तर का होता  और उसके बाद सामूहिक शानदार भोजन।  नवंबर में जब  मेरी पुस्तक " ओन डेथ " का विमोचन हुआ तो प्रशंसा और जिज्ञासा के बावजूद यह स्पष्ट हो गया था कि  कथित सत्य और कथित सुंदरता के बीच एक गहन रसातल है। 


वैज्ञानिक कार्यप्रणाली में मेरी अपनी भाषा बिखर रही थी।  अपना लेख पढ़ने के बाद चिकित्सा दार्शनिक बेतिना  इस्कोनस्यीफर्ट  और ब्रह्मविज्ञानी क्रिस्तोफ़ मार्कशाई के साथ मेरा वाद - विवाद हुआ जिसमे मैं अकेला पड़ गया।  आपसी सद्भावना और सहनशीलता निरर्थक हो गयी थी।  साधन , प्रणाली , भाषा प्रयोग अचानक सब कुछ बदला हुआ लग रहा था। 


मूल लेखक - Péter Nádas

जन्म -  14th October ' 1942, Budapest 

अनुवाद - इन्दुकांत आंगिरस 

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