Sunday, October 9, 2022

मुखबरी कविता - मैं रिपोर्टर हूँ

 

 ( २९ अक्टूबर ' २००५ में दिल्ली की सरोजिनी नगर मार्किट में हुए बम विस्फोटों  की ख़बरों से प्रेरित कविता )


मैं रिपोर्टर हूँ 


हाँ , मैं मिडिया का रिपोर्टर हूँ 

इधर - उधर की 

सब तरफ की ख़बरें लाता हूँ 

बाल की खाल , खाल की बाल 

और फिर बाल की खाल निकलता हूँ 

काल - महाकाल की ख़बरें सुनाता हूँ 


मैं रिपोर्टर हूँ 

हाँ , मैं मिडिया का रिपोर्टर हूँ


मैं शमशान में भी मुस्कुराता हूँ 

चिताओं पर मृत्यु की धुन बजाता हूँ 

जब मुस्कुरा कर पूछता हूँ सवाल 

मुझसे डर जाता है महाकाल 


हैलो..... जी , मीडिया जी 

जी हाँ , मैं यहाँ शमशान से ही बोल रहा हूँ 

आपके लिए लाशों का पिटारा खोल रहा हूँ 


जी हाँ , सीरियल बेम विस्फोटों में मरे 

तमाम लोगो की लाशें यहाँ आ गयी हैं


हैलो , क्या कहा आपने , कफ़न ....


जी हाँ , कफ़न सब लाशों  पे ढका हुआ है

पर लकड़ियों को लेकर यहाँ कुछ लफ़ड़ा  है


- लफ़ड़ा , कैसा लफ़ड़ा ?


- वो मेडिया जी , वैसे तो लकड़ियों का गोदाम भरा पड़ा है

लेकिन अफ़सोस कि लकडिया गीली हैं

इन चिताओं की कहानी दर्दीली है  


- रिपोर्टर जी , आखिर ये चिताएँ गीली कैसे हुई ?


- मीडिया जी , गोदाम मालिक के अनुसार 

कल रात यहाँ बारिश हुई थी , 

जिसके कारण लकड़ियाँ  गीली हो गयी थी। 


- क्या कहा , बारिश , लेकिन कल रात तो दिल्ली में बारिश नहीं हुई। 


- जी मीडिया जी , असल में बात ये  है कि 

जब भी शहर में थोक में मौतें  होती हैं , 

उसी रोज़ शहर में बारिश हो जाती है 

और  लकड़ियाँ ख़ुद ब ख़ुद गीली हो जाती हैं। 


- अच्छा , अच्छा , ये बताये कि शमशान घाट में 

सब लोगो के दाह संस्कार के लिए 

पर्याप्त स्थान है या नहीं ?


देखिए मीडिया जी !

मैं शहर के सबसे बड़े  शमशान घाट 

निगमबोध घाट से बोल रहा हूँ 

यूँ तो दाह संस्कार के लिए यहाँ

काफी अच्छे इंतज़ामात हैं 

जलाने से पहले लाशों को 

गंगाजल से नहलाया जाता है 

उन्हें फूलों से सजाया जाता है 

लेकिन अक्सर जब भी थोक में  लाशें आती हैं 

जब ज़िंदगी ,मौत का मर्सिया गाती है 

यह शमशान भी छोटा पड़ जाता है 

यहाँ लाशों की लम्बी कतार है 

अफरा - तफरी का माहौल है 

पंडितो को लोग इधर उधर खींच रहे हैं 

पंडित मुहँ - मांगे दाम लूट रहे हैं 


- अच्छा , रिपोर्टर जी , ये बताये कि

अब तक कितनी चिताएँ तैयार हो चुकी हैं ?


- मीडिया जी , अभी तक सिर्फ पाँच चिताएँ तैयार हुई है। 


- बाक़ी चिताएँ कब तक तैयार होंगी ?


- उसमे अभी वक़्त लगेगा क्योंकि 

 जबसे सरकार ने 

मुआवज़े  की  रकम बढ़ा दी है 

यह कुछ लाशों के 

एक से अधिक दावेदार निकल आये हैं 

उनका दाह संस्कार DNA टेस्ट के बाद ही  होगा। 


- एक लाश के एक से अधिक दावेदार 

यह कैसे संभव है ?

ख़ैर , यह बताये कि बाक़ी  लाशो को 

कब तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ?


- मीडिया जी , यह हिन्दुस्तान है 

यहाँ सब कुछ संभव है 

यहाँ यमराज को भी प्रतीक्षा करनी पड़ती है 

जैसे जैसे रात गहराती जा रही है 

लोगो की बेचैनी  बढ़ती जा रही है 

लाशों के सामूहिक 

दाह संस्कार की बात उठ रही है 

सर्वसम्मति से कुछ ही देर में

बाक़ी लाशों का 

सामूहिक संस्कार कर दिया जायेगा 

दिल्ली का निगमबोध घाट 

जगमगा उठेगा 

और महाकाल 

वही चिर परिचित 

मृत्यु गीत जाएगा। 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस



NOTE :  पुराने काग़ज़ों में एक ख़बरी  कविता मिल गयी तो मन हुआ कि मित्रों से साझा कर लूँ। 

मैंने चंद कविताएँ ख़बरों से प्रेरित हो कर लिखी हैं।  यह कविता उसी सिलसिले की एक कड़ी है।




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