आप फूलों सा बिखरना सीखिए
खाक़ में मिल कर सँवरना सीखिए
आ गया ज़ीनों पे चढ़ना आपको
अब ज़रा नीचे उतरना सीखिए
इस से पहले आप भी कुंदन बनें
आग से हो कर गुज़रना सीखिए
ग़म भी मिलता है कहाँ सब को यहाँ
सारी ख़ुशियों से उभरना सीखिए
हर कोई फिर आपका हो जाएगा
बस अना के पर कतरना सीखिए
चाँदनी की हर किरन से रात भर
गुफ़्तगू कुछ कर गुज़रना सीखिए
आप तक भी जाम आएगा 'रसिक '
दिल में साक़ी के उतरना सीखिए
शाइर - रसिक देहलवी
हर अदा तब आपकी हो जाएगी
फूल बन कर बस निखरना सीखिए
बहुत उम्दा ग़ज़ल।
ReplyDeleteशुक्रिया बहुत
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