कितनी दिलकश है उन के सलाम की अदा
वो बुहारते हुए दहलीज़ तक आना उनका
शाम देर तलक किसी की याद आए
सूनी छत की मुंडेर पर कुहनी टिकाए
गुज़र जानी है शब यूँ ही तो बस यूँ ही गुज़ारेंगे,
न उनको याद आएँगे न उनकी याद आएगी। *
डूबने के लिए घर से निकल तो पड़े
पर उन आँखों सा समुन्दर और कहाँ
फिर मेरी मुश्किलें आसान हो गईं
निगाहें उनकी जब मेहरबान हो गईं
जहाँ क़ाफ़िला थक हार कर है बैठ गया
वही से शुरू होता है यारो सफ़र मेरा
अब ढक भी लीजिए अपनी मासूम आँखें
यूँ न डूबता सूरज दूर से देखा करिए
नहीं अपने ही दिल पर इख़्तियार हमें
कैसे कहें उन से हमे भूल जाओ
कही आने जाने का दिल करता नहीं
क्या आईना देखें क्या बाल सँवारे
तेरी याद से दिल ऐसा हुआ बेक़रार
तेरी याद से भी अब आता नहीं क़रार
जाने कब गई रात जाने कब सहर हुई
उसकी आँखों की मस्ती गुलमोहर हुई
उन्हें खोकर अब कोई आरज़ू नहीं रही
ग़म ग़म न रहा , ख़ुशी ख़ुशी न रही
नामुराद दिल का न रहा सहारा कोई
साहिल पे बैठ भी ढूंढा करे किनारा कोई
कभी हँसी तो कभी रोना आए है
वो मासूम बाते जब याद आए है
लिख कर शफ़क़ के होठों पे नाम मेरा
छुपा तो लिया चेहरा उसने हाथों में
भीड़ में भी तनहा हूँ मैं
एक गुज़रा लम्हा हूँ मैं
हर तरफ बिखरी हुई तन्हाइयाँ
परछाइयों में क़ैद परछाइयाँ
अश्क भी मेरा भाप बन उड़ गया
वस्ल की राह से हर क़दम मुड़ गया
झुंझला कर मुँह फेर का सो गए
अश्क भी मेरे अब फरेब हो गए
बात निगाहों से उतर दिल तक पहुँचे है
मुख़्तसर सी बात न समझे उम्र भर
न इतने प्यार से देखिये हमको
अभी कुछ और जीने को जी चाहे है
कितनी वीरान है दुनिया बिन तुम्हारे
उदास फूल उदास गुलशन उदास बहारे
फिर छेड़ दिया कोई किस्सा पुराना
निचोड़ कर कपडे उस ने छत पर
न इतना इतराइये इस आईने पर
वक़्त के साथ ये भी बदल जायेगा
पी तो ली उन मस्त आँखों से शराब
अब कौन छोड़ेगा मुझे मेरे घर तक
माना ये रेत के घर बिखर जायेंगे
कभी यूँ भी बिखरने को जी चाहे है
रुक रुक कर ठहर जाती है निगाहें उस मोड़ पर
जहाँ पे हम मिले थे , जहाँ से अभी तुम मुड़े हो
इस दस्तक से दिल उनका वाकिफ है ज़रूर
ये और बात है , संभल के पूछे - कौन है ?
मेरी उम्र से भी लम्बा ये सफर हो गया
फिर डूब गयी शाम देखते देखते
उनकी आँखों की कैफ़ क्या कहिए
कलेजा हाथों से थामे रहिए
दफ़अतन गिरा जो भी गिरा पहलू में
अब जो गिरे तो दानिश्ता गिरे पहलू में
तुम ही नहीं और भी रूठे हैं मुझ से
जी अपना भी है रूठे मगर किस से
लम्हें गुज़रे वक़्त क्व सजा भी लूँ तो क्या
लौट कर आती नहीं ख़ुशी ग़म की तरह
इल्ज़ाम तेरा सर तो मैं ले लूँ मगर
यक़ीन क्या है तेरी आँखों का न बदलेंगी
दीवार से उतरती धूप से ही पूछिए
गिरेगी कब दिलों के सहन की दीवार
किनारे न मिले हैं न मिलेंगे कभी
रोकेगा कौन मगर लहरों को लिपटने से
मसलहत का उम्र से दूर दूर तक रब्त नहीं
खरोंचे दिल की बता देती है धार की तेज़ी
बाद तेरे , तेरी ही याद आये ऐसा कहाँ
दिल तो फिर दिल है , इस पर बस कहाँ
हर बार सफर तय किया जाये ऐसा नहीं
मंज़िलें भी खुद बी खुद चली आती है कभी
उससे न कभी ज़िक्र करूँगा अपने क़िस्सों का
मैं कब चाहूँगा वो मुझे बेवफ़ा समझें
अच्छा ही हुआ हमे तैरना न आया
उसकी आँखों में उतरें और डूब गए
वीरानियाँ मेरी मुझे ले जाएँगी कहाँ
सकूं उन्हें भी और कही ऐसा कहाँ
इस दौरे कमखुलूस में बात रब्त की न कीजिए
दुश्मनी भी न निभा पाए लोग क्या कीजिए
रफ़ू अपने ज़ख़्मों को न करों यारों
यही वो शय है जो मुफ़्त मिलती है
उसकी बेनियाज़ी का मुझे ग़म नहीं
उसने मुझे चाहा है कुछ कम नहीं
हादिसा यही बस मेरे साथ हुआ
ज़ख़्म उसने जब छुआ मेरा छुआ
माना तेरे वा'दें हैं तोड़ने के लिए
पर मेरा दिल तो कोई वा'दा न था
डर मुझे किसी दुश्मन से नहीं लगता
बस न मिले दुश्मन कोई दोस्त बन कर
मिटाने इन्हें आप यहाँ कहाँ आ गए
घर से ही शुरू होते हैं सब फ़ासले
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