Polixena Tant
कोलोशी ... ( बारतोती , बारतोती , बारतोती ) एक आम अंधविश्वास , अपशकुन एक ऐसा विशवास जोकि हंगेरियन नियति की देवी अनान्के का उपाख्यान बन चुका है। कई सदियों से एक परिवार इस अभिशाप से पीड़ित है , यह अभिशाप उनके परिवार के हरेक सदस्य को प्रताड़ित करता है। उनकी ज़मीन और पशु , उनके महूर्त , उनकी योजनाओं को और उन सब को भी प्रताड़ित करता है जिनका सम्बन्ध उस परिवार से है मसलन उन की बीवियाँ , रखैलें , नौकर और दोस्त। इस अभिशाप द्वारा लाई गयी दारुण विपत्ति की पुरानी सैकड़ों कहानियाँ धुंध की चादरों में खो चुकी हैं। शायद उन अर्थहीन कहानियों के मूल तत्त्व भी मिट चुके हैं लेकिन फिर भी वे हमारी यादों में शेष हैं। अगर कोई भी किसी ज़रूरत से या फिर सिर्फ़ स्मरण करते हुए इस नाम को अपने होठों पर लाएगा और फिर उसके फौरन बाद एक ही साँस में तीन बार एक दूसरे भाग्यशाली परिवार का नाम नहीं लेगा तो उस दिन ज़रूर कोई दुर्घटना होगी ....कोई दुश्मनी निकालेगा या कुछ नुक्सान हो जाएगा।
और मुझे याद है कैसे यह शब्द मेरे बाल मस्तिष्क में विचरण करता रहा था , जब वे मुझे उस के घर ले गए थे। उस गोधूलि बेला में मैंने उसे लकड़ी के फ्रेम में जड़ी एक तस्वीर की मानिंद , एक अजीब सख़्त पत्थर की तरह बैठे देखा था। इसी क्षण में सन्नाटे ने उसे लील लिया था।
उस बड़े साफ़ बैठकघर में नक़्क़ाशीदार बड़ी अल्मारियों और सजावटी क्रॉकरी वाले कपबोर्ड के नीचे मामूली दरी दबी हुई थी। यहाँ सब कुछ मामूली और ख़ाली ख़ाली था , सब कुछ बिखरा हुआ , ग़मगीन। मैंने दो अजीब वस्तुओं की तरह उस बूढी औरत की दो सख़्त सफ़ेद कलाइयाँ देखी थी जो एक काले एप्रन में लिपटी बिना हिले -डुले लेटी हुई थी और जिसे किसी भी चीज़ से कोई लेना -देना नहीं था।
उस धुंधली रौशनी में , मैं उसकी सूखी ठोड़ी की सख़्त लकीर और अकड़ी हुई गर्दन के अलावा उसकी पीठ पर उभरता कूबड़ ही देख पायी थी।
कवियत्री - Kaffka Margit
जन्म - 10th June ' 1880 , Nagykároly
निधन - 1s December ' 1918 , Budapest
अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस
No comments:
Post a Comment