माँ
शाश्वत सत्य बसता है उसकी आँखों में
माँ ,
करती हूँ अनंत की खोज
और होती हूँ हैरान
कैसे साल दर साल
दशक बदलते हैं सदी में।
इस ब्रह्माण्ड का हरेक ज़र्रा
बदलता है अनेक बार
मैं पाती हूँ उस में
उसकी मुस्कुराहट में
इस दुनिया को।
उसका स्पर्श मुझे बनाता है सम्राट
वो अभी चूमेगी मेरी पेशानी को
और मैं बन जाउंगी विजेता
पूरी दुनिया की ।
माँ ,
इस रहस्यमयी रचना की सृजक
माँ , हाँ वही ग़रीब मनहूस औरत
बन जाती है एक अवतार।
कवयित्री - Suhina Biswas Majumdar
अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस
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