Sunday, May 12, 2024

आख़िर एक दिन ....

 आख़िर एक दिन ....


हर घर की बुनियाद होती है माँ ,

फ़रिश्तों  की भी फ़रियाद होती है माँ ,

माँ के बिना घर के चूल्हें नहीं जलते , 

माँ के बिना बग़िया  के फूल नहीं खिलते ,

गोल गोल रोटी होती है माँ 

खीर की कटोरी होती है माँ , 

बच्चों की ड्रेस , पति की रेस 

बेटे  का दुलार ,बेटी का प्यार 

कमीज़ का बटन , पसीने का बदन 

आँगन का फूल , पूरे घर का पुल

दिलों  का तराना ,दुआओं का ख़ज़ाना

आज खिली खिली है सरसो,

माँ के  नंबर पूरे सौ ,  

२१वीं सदी का बहुत बहुत शुक्रिया 

डेज बनाने के बहाने 

इस दुनिया ने 

Mothers' Day मनाया , 

आख़िर एक दिन 

माँ का भी आया।  

 

कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


  



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