आख़िर एक दिन ....
हर घर की बुनियाद होती है माँ ,
फ़रिश्तों की भी फ़रियाद होती है माँ ,
माँ के बिना घर के चूल्हें नहीं जलते ,
माँ के बिना बग़िया के फूल नहीं खिलते ,
गोल गोल रोटी होती है माँ
खीर की कटोरी होती है माँ ,
बच्चों की ड्रेस , पति की रेस
बेटे का दुलार ,बेटी का प्यार
कमीज़ का बटन , पसीने का बदन
आँगन का फूल , पूरे घर का पुल
दिलों का तराना ,दुआओं का ख़ज़ाना
आज खिली खिली है सरसो,
माँ के नंबर पूरे सौ ,
२१वीं सदी का बहुत बहुत शुक्रिया
डेज बनाने के बहाने
इस दुनिया ने
Mothers' Day मनाया ,
आख़िर एक दिन
माँ का भी आया।
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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