सफ़ेद गुलाब
तुम्हारे जूड़े में सजे सफ़ेद गुलाब को देख कर
लाल गुलाब रो रहा अपनी क़िस्मत पर
खिड़की से उतरती धूप का भी
खिल उठा रूप तुम्हें छू कर
इस सुराही सी गर्दन के क्या कहने
तेरे रूप के आगे फीके सब गहने
तेरे लब गुलाब की पंखुरी से भी नाज़ुक
क्या मीर ने तुम्हें सोचा था ?
तेरी काली - सफ़ेद ज़ुल्फ़ें इक आवारा बदरी सी
घटा खुल के तपते सहरा पे बरसी भी
लेकिन एक रूह प्यासी है अभी
तुझसे मिलने को आतुर है समुन्दर एक
तेरी आँखें क्या हैं , क़यामत एक
आसमान से उतरी एक परी है तू
प्रेम की मद मस्त नदी है तू
तेरी आँखों में सिमटा है
इक मुहब्बत भरा आसमान
तुझ पे क़ुर्बान है मेरे दोनों जहान।
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