Sunday, April 30, 2023

लघुकथा - एक जून की रोटी

 लघुकथा - एक जून की रोटी 


सुबह , दोपहर , शाम जब कभी भी उधर से गुज़रता वह भीख मांगती ही मिलती और उसके दो मासूम बच्चे सड़क पर बिछी फटी चादर पर सोये मिलते। यूँ हमेशा बच्चों का सोते रहना मुझे खटक गया और मैं   हिचकिचाते हुए उससे पूछ बैठा -

" बच्चें बीमार हैं क्या ? हमेशा सोते रहते हैं "

-" न बाबू जी , बीमार तो नहीं हैं , मैं इन्हें सुबह ही थोड़ी सी अफ़ीम चटा  देती हूँ । 

- क्यों , ऐसा क्यों करती हो ? मैंने चौंकते  हुए पूछा। 

- धंधा नहीं करने देते बाबू , जो जागते रहेंगे तो इधर - उधर भागेंगे।  अब मैं इन्हें सम्भालूं कि इनके लिए एक जून कि रोटी का इंतिज़ाम करूँ। 


उसका जवाब सुन कर मैं गूँगा ही नहीं बहरा भी हो गया। 


लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

No comments:

Post a Comment