लघुकथा - पोस्टर
सुबह सुबह उठा तो घर के बाहर कुछ शोर - सा सुनाई पड़ा। कुछ ज़र्द शोर , कुछ फ़ुसफ़ुसाहट। कूड़ेदान पे चिपके किसी नए पोस्टर पर बहस हो रही थी। न किसी का नाम न पता , बिलकुल बर्फ़ - सा सफ़ेद पोस्टर। बहुत क़ीमती काग़ज़ लगता था। मन हुआ उसे वहाँ से उतार लूँ और उस पर एक सुन्दर से तस्वीर बनाऊँ। लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाया। उस रात बहुत बारिश हुई। अगली सुबह उठते ही कूड़ेदान की तरफ़ क़दम उठ गए। पोस्टर दीवार से उतर चुका था। मैंने धीरे धीरे वो क़ीमती पोस्टर उठाया जिसके दूसरी तरफ़ खुदा था - मैं हरामी हूँ।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
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