Sunday, April 30, 2023

फ़्लैश बैक - डॉ बंसल

 डॉ बंसल 

 

हौज़काज़ी से थोड़ा पहले 

गली शीशमहल के नुक्कड़ पर थी 

डॉ बंसल की दुकान

कभी भी बीमार पड़ने पर 

घरवाले ले जाते थे उन्हीं के पास 

बहुत हँसमुख और ख़ुशमिज़ाज  

अक्सर उनके छूते ही  

बुखार हो जाता छू मंतर 

कुछ ऐसा शफ़क़ था उनके हाथों में 

उनकी मीठी मीठी बातो से 

आधी बीमारी हो जाती थी ख़त्म 

उनके क्लिनिक पर ही 

और बाक़ी आधी उनके द्वारा दी गयी 

दवाई खा कर 

 वो सफ़ेद गोलियाँ 

और गुलाबी शरबत 

होता था कड़वा 

लेकिन खाते ही बंदा

हो जाता था चंगा। 



कवि  -  इन्दुकांत आंगिरस

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