Sunday, December 21, 2025

लघुकथा _ बुरका

बुरका 


औरत ने घबराई आवाज़ में दुकानदार से  कहा , " भाईजान , मेरे साइज के 2 बुरके दे  दीजिए। "

-  " अरे , आपाजान आप ! आपने बुरका पहनना कब से शुरू कर दिया ? आप तो पढ़ी - लिखी खुले विचारों वाली पत्रकार है , तो फिर आज ऐसा क्या हो गया कि अचानक बुरका याद आ गया ? " दुकानदार ने हैरानी  से पूछा।  

- " भाईजान , लगता है आपने आज का अख़बार नहीं पढ़ा , हमारे ही मोहल्ले में एक आदमी  ने अपनी बीवी का सिर्फ इसलिए क़त्ल   कर दिया कि वो बिना बुरका पहने अपने मायके चली गयी थी। वैसे मेरे शौहर तो पढ़े - लिखे खुले विचारों के है लेकिन कौन जाने कब किसका दिमाग़  सनक जाये ......बस मुझे आप जल्दी से बुरके दे दीजिए " औरत एक साँस में कह गयी।  

 औरत की आँखों में चमकता ख़ौफ़ देखकर दुकानदार ने  जल्दी से  2 बुरके उसको  दे दिए।  औरत ने वही दुकान पर बुरका ओढ़ा और बुदबुदाते हुए दुकान से निकल गयी , " जान है तो जहान है प्यारे , आख़िर  बुरका ओढ़ने में क्या जाता है। " 


- इन्दुकांत आंगिरस 






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