Thursday, December 4, 2025

मुझे तुम में यक़ीन था

दरबान   को दोपहर से पहले ही  नए आगंतुक के आगमन की सूचना मिल चुकी थी,  काउंटी में तूफ़ान के आने से बहुत पहले ही ,  जब लड़का परिसर  के खड़खड़ाते लोहे के दरवाज़े से अंदर आया और उसने अपना गला साफ़ कर के हिचकिचाते हुए बूथ का दरवाज़ा पकड़ा, तब भी न तो दरबान  हिला और न ही उसने अपना सर घुमाया , लड़के की कंपकपाती आवाज़ ( कि  , "शुभ संध्या... मैं नया..."), सुन कर भी उसने उसकी ओर नहीं देखा। उसने बस झुंझलाये अंदाज़  में हाथ हिलाकर उसे टाल दिया और कहा, "मुझे पता है।"

लेकिन तभी , बाहर तूफ़ान  बेकाबू हो रहा था, जिसने पिछले कुछ दिनों की  ग्रीष्म  कालीन गर्म हवा को कुछ ही घंटों के भीतर लगभग जमाव बिंदु के करीब  शीतल  कर  अपनी  अपार शक्ति का प्रदर्शन कर दिया था , तूफ़ानी बादलों की वजनी  चादर, जोकि लम्बे सफ़र  के बाद थके हुए झुंड की तरह, भारी और नीची होकर ग्रामीण इलाकों पर छा गई थी , जिन्हें  डूबते सूरज की अंतिम किरणों ने  धरती पर पसरने से रोक दिया था ,जिसके चलते  प्रकाश बेबस होकर बाहर रह गया और शून्य में विलीन हो गया।अन्धकार  की दोहरी परत  के बाद वातावरण में एक डरावना सन्नाटा पसर  गया, जोकि भयंकर , गर्जन-भरी आवाज़ों में लिपटा हुआ था । इस सन्नाटे में, तारों रहित आकाश के नीचे, सड़क के दोनों ओर झाड़ियों से आ रही आवाज़ों के बीच दबकर, लड़का कीचड़ भरी मिट्टी की सड़क पर बस्ती की ओर बोझिल क़दमों  से चल रहा था, इस अजनबी जगह में जल्दबाज़ी भरे, डगमगाते क़दमों  से, जैसे अपनी टुकड़ी से अलग हुआ कोई सिपाही, बिना नक्शे या कम्पास के, एक ऐसे इलाके में रात गहरा गई थी जहाँ यह निश्चित रूप से जानना असंभव था कि वह  किन लोगों के बीच था । उसके सिर के ऊपर बिजली चमक रही थी और उस  घोर अँधेरे में हर पल वो  रोशनी की चमक ही उसे रास्ता दिखाती थी, क्योंकि वह कुछ भी नहीं देख पा रहा था, यहाँ तक कि अपने पैरों तले की ज़मीन  भी नहीं। अब पीछे मुड़ने का कोई सवाल ही नहीं था: जिस तीसरे दर्जे की मैकदाम  सड़क पर वह बस से उतरा और यार्ड  की ओर जाने वाले रास्ते पर मुड़ा, वह कम से कम आधे घंटे की पैदल दूरी पर थी, लेकिन जब उसे दो महीने की निष्फल खोज के बाद अंततः काम और रहने की जगह मिल गई थी, तो वह पीछे क्यों मुड़ता: एक बिस्तर जहाँ वह अपनी रात की की ड्यूटी के बाद थोड़ा आराम कर सके। पूरी तरह पानी में भीगा हुआ वह  यार्ड में पहुँचा और दरबान  के पीछे बेचैनी से खड़ा हो गया, किसी तरह के निर्देश की प्रतीक्षा में, लेकिन दरबान  ने उसकी ओर ध्यान ही नहीं दिया। खिड़की से बाहर गरजती  हुई  बारिश को घूरते हुए, जो किसी घाव से ख़ून  की तरह बरस रही थी, उबड़ - खाबड़ सड़क पर विशाल गड्ढे बना रही थी, और  अरबों बर्फीली बूँदों  से झकझोरी जा रही थी। 

"आपके सहकर्मी पहले से ही अंदर हैं," दरबान ने हाँफते हुए कहा। "वह आपको बताएगा कि कहाँ जाना है।" नए आगंतुक ने उत्साह से सिर हिलाया और निकलने लगा, लेकिन दरवाज़े का हैंडल पकड़ने से पहले ही दूसरे आदमी ने उसकी ओर देखा और उसे रोक दिया। "तुम इतनी जल्दी क्यों कर रहे हो?" उसने चिढ़कर कहा। "तुम्हें तो यह भी नहीं पता कि तुम कहाँ जा रहे हो!" "सच… वाकई…" आगंतुक लड़का  अजीब ढंग  से बड़बड़ाया। "तो बस, तुम वहाँ जाओ,"दरबान  ने कहा। उसने डेस्क के दराज में हाथ डाला और एक धब्बेदार नोटबुक निकाली, उसे सम्मानपूर्वक सही पन्ने पर खोला, फिर काग़ज़  को छूने से पहले अपनी बॉलपॉइंट पेन की नोक को अपनी उंगली पर आज़माया । "आपका नाम" ? "बोगदानोविच।" उसके पैर जल रहे थे, उसे ठंड लग रही थी, उसके जूते भीग गए थे, लेकिन वह जानता था कि अगर वह कल बाहर फेंके नहीं जाना चाहता तो उसे ख़ुशमिजाज़ , निर्णायक और इच्छुक दिखना होगा। " क्या ..? "  "बोगदानोविच।"  दरबान ने आगंतुक लड़के को ऐसे देखा जैसे वह कोई दुर्लभ जानवर हो। पहले दो अक्षर लिखते हुए गुनगुनाया, दाँत  चटकाए और शरमा गया, फिर सिर एक ओर झुका लिया, और बिना आवाज़ किए अपने मुँह से अक्षर आकार देने लगा। आगंतुक लड़कामेज़ के पास आया और दरबान  के पे झुकते हुए  नोटबुक में झाँका (जहाँ साफ-सुथरी, नीचे की ओर ढलती पंक्ति में लिखा था: बोगदा नोविच ),   दूसरे आदमी की खोजती निगाह देख अजीब तरह से खाँसने लगा और बोला  "ख़ैर,  क्या आप वह इमारत देख पा  रहे हैं?"

आगंतुक लड़का झुककर खिड़की से बाहर देखने लगा। "हाँ, ज़रूर।" "तुम्हे वहाँ जाना होगा वही तुम्हारा जोड़ीदार है । "  जेल की कोठरी जैसी दिखने वाली उस  कंक्रीट की कोठरी से  वह बाहर निकला, अपनी जैकेट को सर तक  ओढ़ा , और जैसे ही  दरवाज़ा बंद करने लगा , एक तेज़ हवा के झोके के चलते उसके हाथ से दरवाज़ा छूट गया और तड़ाक की आवाज़ के साथ दीवार से जा टकराया। 

"माफ़ कीजिए, लेकिन..." बोगदानोविच समझाने ही वाला था , कि बूथ के सामने दरबान आ गया और उसने ज़ोर से उसका हाथ पकड़ लिया। । "यहाँ से निकल जाओ, तुम बेवकूफ़!" दरबान चिल्लाया। "क्या तुम एक दरवाज़ा भी बंद नहीं कर सकते?!" "माफ़ कीजिए,"आगंतुक  ने कहा, "न जाने कैसे ये मेरे हाथ से फिसल गया।" 
आगंतुक लड़के ने सड़क पार करि और उस इमारत में घुस गया फिर दीपक के खंभे से खंभे तक लड़खड़ाता हुआ चला। उसका जोड़ीदार एक घरघराते तेल वाले स्टोव के नज़दीक रखी लोहे की एक जर्जर कुर्सी पर बैठा हुआ  था ,मुँह खुला हुआ, सिर झुका हुआ, गहरी नींद में, खड़खड़ाती दरवाज़े से बेख़बर। बोगदानोविच उसके सामने रुका और धीरे से उसके कंधे को हिलाया। "शुभ संध्या," मद्धम आवाज़ में  उसका अभिवादन किया तो  वह आदमी घबराहट में ऊपर देखने लगा। "मैं  रात्रि का नया पहरेदार हूँ।" उसका साथी एक पल के लिए उसे घूरता रहा, फिर अपना ऊपरी होंठ पीछे खींचकर दाँतहीन मसूड़े दिखाते हुए मुस्कुराया। "ओह, तो आप  हो? मुझे लगा कोई निरीक्षण हो रहा है।"
 बस्तियाँ दिखाने वाली तस्वीरें  लकड़ी के पीले फ्रेमों में दीवार पर टंगी थीं, जिनमें से कुछ आगे की ओर सरक रही थीं, धुएँ जैसे रंग की गंदगी चमक रही थी, तेलिया फर्श पर यहाँ-वहाँ ब्रेड के टुकड़े और भोजन  के अवशेष बिखरे हुए थे, और छत पर दो नियॉन लाइटें एकरस गुनगुना रही थीं।  "तो तुम नए हो," बूढ़े ने कहा, उठते हुए, लगभग डरावने ढंग से, क्योंकि उसका गंजा चाँद जैसा सिर ऊँचा और ऊँचा उठता गया, और जब वह आखिरकार कहीं ऊपर ठहरा, तो लड़का अपने आप पीछे हट गया, हालाँकि वह ख़ुद इतना  छोटा भी नहीं था। "केरेकेश" उसके साथी ने फावड़े जैसे अपने दाहिने हाथ को बढ़ाते हुए अपना परिचय दिया। "बोगदानोविच," लड़के ने अपनी दबी हुई आवाज़ में कहा। वह उस चेहरे को, जो उसके ऊपर मंडरा रहा था, ध्यानपूर्वक और लगातार घूरता रहा, जैसे सोच रहा हो कि उसने इसे पहले कहाँ देखा था। "मैं गिर गया था ," उसने झिझकते हुए  समझाया, अपनी टूटी हुई  नाक की ओर इशारा करते हुए, जहाँ ख़ून अब सूख चुका था।  "मुझे कुछ याद नहीं, मैंने बस अपनी आँखें खोलीं और ख़ुद को सिलाई मशीन के नीचे पड़ा हुआ देखा।" उसका भारी शरीर फिर से कुर्सी में धँस गया, उसने मुँह के कोने में एक सिगरेट रखी और उसे जला लिया। "क्या तुमने अभी तक मलहम  लगाया है?" आगंतुक लड़के ने पूछा। भीमकाय  ने उपेक्षापूर्वक हाथ हिलाया। "मैंने एकबूँद  भी नहीं पी, कोई  नहीं कह सकता, तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो..." बोगदानोविच अभी भी उसके सामने खड़ा था, जैसे वह किसी अदालत या परीक्षा बोर्ड के सामने खड़ा हो, हाथ पीठ पर बाँधे, थोड़ा आगे झुका हुआ। "मलहम  तुम्हारे लिए फायदेमंद होगा, है ना?"उस ने पूछा जब वह गहरे पहिये के निशान वाली गाड़ी की पगडंडी पर यार्ड  की ओर बढ़ रहे भीमकाय से दो क़दम  दूर था, लेकिन भीमकाय ने उसकी अनदेखी की और कहा: "तुम्हें यह जानना है कि कि किस तरफ कितने मीटर ! मैं तुम्हें सब कुछ बताऊँगा, बस सुनो, क्योंकि मैं दोबारा नहीं कहूँगा।"

मूसलाधार बारिश हो रही थी, और वे सड़क के दोनों ओर बने  अस्तबलों के पास से गुज़र रहे थे, जिनकी  दरारों से निकलती गर्म जानवरों की भाप से  एक धुंध की परत बन गयी थी। । शांत होने के बजाय तूफ़ान और भी उग्र हो गया, हवा दहाड़ रही थी और बारिश उनके चेहरों पर प्रहार कर रही थी।  "हम आमतौर पर रात में दो बार बाहर जाते हैं, फिर अस्तबल में जाते हैं, उन्हें नीचे उतारते हैं, और सुबह तक सोने देते हैं। फिर हम फिर से बाहर जाते हैं… लेकिन अगर उनकी ज़रूरत हो तो रात में तीन बार भी जाना पड़ता है।  समझे ?" नए आदमी ने विनम्रता से सिर हिलाया। "वे यह उम्मीद नहीं कर सकते कि हम हर समय बाहर ही रहेंगे, है ना?"

 "अच्छा, बेशक।" "क्योंकि तब हम सोते हैं, है ना?" बोगदानोविच ने सिर हिलाया और उसकी परछाईं की तरह उसका पीछा किया। अंतिम खलिहान के दरवाज़े से एक गर्भवती गाय उन्हें घूर रही थी। केरेकेशने लड़के की ओर मुड़कर कहा। "अच्छा, अगर वे ऐसे ही खुलकर भाग जाएँ, तो तुम्हें उन्हें बाँधना होगा।  समझे ?" " समझ गया।"

 वह सावधानी से उस आवारा जानवर के पास गया, उसकी गर्दन पर हाथ फेरा, फिर धक्का-मुक्की और गालियाँ देते हुए उसे एक खाली पत्थर के बाड़े में धकेलकर बाकी जानवरों के साथ बाँध दिया। "जब वे तैयार हो जाएँ, तो तुम्हें उन्हें पीटना होगा," उसने अपने पीछे खड़े लड़के से कहा। "उन्हें पीटना होगा ?" बोगदानोविच ने पूछा।  

" ज़रूर  , क्योंकि अगर तुम ऐसा नहीं करोगे, तो उन्हें कभी पता नहीं चलेगा कि हंगेरियन देवता कौन है। वह लोहे की कुदाल लेने के लिए पीछे हटा। "इसी तरह हम उन्हें प्रशिक्षित करते हैं, ताकि वे भाग न सकें। लेकिन तुम किसी को मत बताना। समझे ?" और उसने वार किया। उसने अपनी पूरी ताकत से उसके सिर पर वार किया, और अधिक से अधिक निर्दयता से, और बेचारा जानवर बचने की व्यर्थ कोशिश करता रहा, लेकिन रस्सा  उसे जाने नहीं देता  था  । 

फिर वह वहीं खड़ा रहा, हर वार से लड़खड़ाता हुआ, सिर पीछे मोड़े हुए और सहन करता हुआ, वार रुकने का इंतज़ार करता रहा। गोलियाथ के चेहरे पर न तो कोई उत्साह था, न ही नफ़रत या गुस्सा: वह शांतचित्त होकर, एक-एक करके वार करता गया, और फिर से वार करने के लिए उठ खड़ा हुआ। बोगदानोविच काँपती हथेलियों से एक पानी की नली को ऐसे पकड़े रहा, जैसे सहारे के लिए। "ओह," वह फुसफुसाया, फिर डरते-डरते उस विशालकाय प्राणी से बोला, "यह मर तो नहीं जायेगा ?

उसके साथी ने क्रोधित होकर उत्तर दिया, "यह?!" पश्चिमी हवाओं का आदी यह इलाका  इस उथल-पुथल से निपटने में कठिनाई महसूस कर रहा था।। तूफ़ान  उनके सिरों से पचास मीटर ऊपर गरज रहा था, निर्दयी और बेरहम, बार-बार एक बुरी तरह टूटी हुई जवान घोड़ी की तरह उभरता हुआ।

 लड़के ने गले में गांठ लिए जयजयकार करते विजयी भीड़ की ओर देखा, उसकी निगाहें शरण की तलाश में थीं, भीतर एक शोकपूर्ण, मौलिक स्थिरता गूँज रही थी, मानो उसे डर हो कि वह अचानक उस पर उतर आएगी, सब कुछ धूल में पीस  देगी और उन्हें किसी दीपक के खंभे से टकरा देगी।

 एक जल्लाद की तरह, हवा बबूल और पीपल के पेड़ों की कांपती, नव-पल्लवित टहनियों के साथ नाच रही थी, जो उद्देश्यपूर्ण दृढ़ संकल्प के साथ उसकी ओर झुकी हुई थीं, उन्हें वश में किया जा रहा था, फिर भी साथ ही साथ एक गुप्त उत्साह के साथ, जैसे कोई किसी को मूर्खतापूर्ण काम करने के लिए धोखा दे ताकि वे बड़ा  नुक़्सान  न कर सकें । जब वे वापिस आरामगाह में लौटे , एक दोस्ताना गर्माहट ने उनका स्वागत किया : चूल्हा सुकून से गुनगुना रहा था और खिड़कियों के फ्रेम में काँच खड़खड़ा रहा था। 

"" " उसने कहा , क्या हम डिनर कर लें ?"  केरेकेश अपनी सीट पर धड़ाम से बैठ गया, अपनी गोद में हल्के भूरे रंग का स्कूल बैग खींचा और उसकी ज़िप खोल दी। नया आदमी, ठंडा और थका हुआ, स्टोव के दूसरी ओर बैठकर ख़ुद  को गर्म करने लगा और अपनी रोटी और चर्बी निकाल ली। अभी वह अपने दूसरा निवाला खा ही रहा था कि ग़लती से उसकी निगाह उस भीमकाय प्राणी की  ओर उठ गयी।  उसकी गोद में दो किलो का एक ब्रेड का लोफ़ पड़ा था, जिसे हाथ से आधा फाड़ दिया गया था, और बेकन का एक छोटा टुकड़ा। "क्या हुआ,बालक ?" उसने उस लड़के से पूछा जो उसे घूर रहा था। "ओह, कुछ नहीं... मुझे लगता है मुझे थोड़ा जुकाम हो गया है..." उसने जवाब दिया। वे गुनगुनाती नियॉन लाइटों के नीचे चुपचाप खा रहे थे। "तो पहले क्या हुआ था?" भीमकाय  के ख़ामोशी  तोड़ी। "कुछ नहीं , मैं  ...बस यूँ ही। ," बोगदानोविच ने कहा।

"उह-हह," केरेकेश बड़बड़ाते हुए बोला। "तो तुम्हें क्या लगता था कि मैं पहले क्या था?" नए आदमी ने बेबसी से अपने साथी की टूटी हुई नाक को देखा। "खैर... मुझे नहीं पता..." बूढ़े आदमी ने ताला फिर से अपनी जगह पर लगा दिया और बैग को अपने बगल में फ़र्श  पर रख दिया। "शर्त लगाओ कि तुम इसे नहीं ढूंढ पाओगे," उसने शरारती नज़रों  से कहा। "मुझे भी ऐसा ही लगता है..." "पुलिसवाला!" उसने अचानक बोल दिया। 

 "तो क्या तुम ऐसा नहीं कहोगे?" लड़के ने जोर-जोर से सिर हिलाया, बिना रुके चबाते हुए। "बिल्कुल, क्यों नहीं?" केरेकेश ने अपनी पीठ दीवार से टिकाई, खिंचाव किया और जोर से हाँफ़  उठा। "ठीक है, तो चलो थोड़ी देर के लिए सो लेते हैं। हमें सोना ही होगा, वरना हम दिन भर टिक नहीं पाएंगे।" कुछ ही पलों बाद वह गहरी नींद में था। मार्च का महीना था, वसंत विषुव से बस कुछ ही दिन बाद। 

बोगदानोविच, उसे जगाने से बचते हुए, चुपचाप एक मेज़ पर बैठ गया और उसने  अपनी मेज़ पर एक किताब रख दी। जब उसे यक़ीन  हो गया कि उसका साथी गहरी नींद में है, तो वह सावधानी से झाँककर उसे ग़ौर से देखने लगा।  उसने केरेकेश के दो विशाल हाथ देखे, जो कीचड़ और गंदगी से चिपचिपे थे, वे दोनों मुट्ठियाँ उसकी गोद में रखी थीं, जो दो अज्ञात जंगली जानवरों के पंजों की याद दिला रही थीं, लंबी, मोटी, मांसल उंगलियाँ क्रूर कोमलता से एक-दूसरे में गुंथी हुई थीं, और अचानक उसके भीतर का तनाव पहले की ठंड की तरह कम हो गया, और उसकी जगह मिचली की भावना ने ले ली।

फिर धीरे-धीरे, जैसे धुंध से उभर रहा हो, जैसे दूर से खुल रहा हो, उसे एहसास हुआ कि वह डर रहा था। मुझे इस आदमी से डरना ही चाहिए, भले ही मैं वास्तव में उससे नहीं डरता। क्योंकि वह वास्तव में डर महसूस नहीं कर रहा था, बल्कि एक जबरदस्त आतंक जो किसी ज़िद्दी , अविश्वसनीय, अकथनीय आत्मविश्वास से फूट रहा था। और यह डर सिर्फ उससे नहीं, बल्कि उस हर किसी से जोकि इस  उस दुनिया में मौजूद है। 

भीमकाय  अचानक फूँक मारकर हँसा, अपनी बाईं आँख थोड़ी सी खोलकर घबराहट में चारों ओर देखा, फिर अपनी निगाह बोगदानोविच पर टिका दी, जो मेज़ पर रखी किताब पर अकड़कर झुका हुआ था, उसकी आँखें अक्षर "z" पर अडिग टिकी हुई थीं। "क्या बात है, क्या तुम सो नहीं पा रहे?" "कैसे न कैसे, नींद मुझसे दूर भाग जाती है।"भीमकाय  प्राणी ने खोजी नज़रों  से उसे देखा। 

"तो तुम क्या पढ़ रहे हो?" लड़के ने कवर पीछे मोड़ा और इशारा किया। 

-"एक उपन्यास।" 

"मैं ऐसी चीज़ को हाथ भी नहीं लगाऊँगा," भीमकायने कहा। नया आदमी अपनी कुर्सी पर पीछे झुक गया। "हाँ," उसने कहा। "उसका क्या फायदा?" उसके साथी ने तीखेपन से कहा। "एक अच्छी फ... होना बेहतर है... हाँ?" "समझ गया।" उसने पन्ना समेटा और फिर से पहले वाक्य से पढ़ना शुरू किया। जब वे दूसरी बार अस्तबल की ओर गए, तो सुबह के दो बज चुके थे। बारिश थम गई थी और हवा भी शांत हो गई थी। "तो तुम एक तरफ से जाओ और मैं दूसरी तरफ से जाता हूँ। 

दैत्य ने कहा, "अब तुम्हें पता है कि तुम्हें क्या करना है, है ना?" वह कुछ मिनटों तक अस्तबल के दरवाजे पर खड़ा रहा, गोबर और गायों की गंध को सूंघता रहा, फिर जानवरों की सफाई करने के लिए अंदर गया। जब उसने एक अस्तबल का काम पूरा किया, तो पानी उससे टपक रहा था। लेकिन अंदर, झाड़ीदार सिर वाली सुस्त गायों के बीच, उस पर इतनी शांति छा गई कि वह अपनी थकान और कष्टदायक नींद को भूल गया। उसने प्रत्येक खूबसूरती से सो रहे जानवर को लंबे समय तक देखा, और उनसे निकलने वाली कोमलता और शांति की रोशनी में, जो कुछ भी अभी उसकी प्रतीक्षा कर रहा था, वह अब इतना कठिन नहीं लगा। वह शायद आखिरी अस्तबल के बीच में चल रहा था, जब अचानक दूर से एक मानव आवाज़ उसके कानों तक पहुँची। उसे जानने से ज़्यादा महसूस हुआ कि वह अजीब, कर्कश, गुस्से भरी चिल्लाहट दूसरी ओर से आ रही थी। कुछ तो गड़बड़ है, उसके दिमाग में कौंधा, और वह बाहर भागा। जैसे ही वह अस्तबलों की दो कतारों के बीच वाले ठेले के रास्ते पर पहुंचा, उसने तुरंत ही लगभग पचास मीटर दूर, दो अस्तबलों के बीच, बिजली की रोशनी की किरणों में, केरेकेश को देखा, जो बेचैनी से अपनी बाहें हिला रहा था और किसी पर चिल्ला रहा था। लड़के ने एक गहरी साँस ली और उनके बीच की दूरी पार कर चिल्लाने की कोशिश की।

"क्या उनमें से कोई एक भाग गया है?" लेकिन उसकी कमजोर, दबी हुई आवाज़ हवा में उड़ गई, ठीक वैसे ही जैसे उसके साथी की बातें, इसलिए उसे केवल कुछ अस्पष्ट अंश ही सुनाई दिए: "… nnal … इसे ले जाओ! ... nal ... इसे ले जाओ!" बोगदानोविच उसकी ओर दौड़ पड़ता, उस विशालकाय की ओर जो अँधेरे में एक अजीब छाया जैसा दिख रहा था, लेकिन उसके पैर जवाब दे गए और वह हिल नहीं सका। "क्या हुआ?" उसने फिर से पूछा। 

केरेकेश ने शायद कुछ सुन लिया था, क्योंकि वह अचानक मुड़ा और उस पर साफ-साफ और चिड़चिड़ाकर चिल्लाया: "बत्ती! हा, ये लोग क्या समझते हैं कि क्या कर रहे हैं?! इसे तुरंत बुझा दो!" फिर वह घूम गया और, एक कठपुतली की तरह, अपनी बाहें लहराता और चिल्लाता रहा: "उसे तुरंत बंद करो! तुरंत लाइट बंद करो! तुरंत लाइट बंद करो!" लड़के का खून ठंडा पड़ गया: किस तरह की लाइट? भगवान के लिए, यह किस तरह की लाइट है? उसने अपनी आँखों पर ज़ोर डाला, लेकिन कुछ भी नहीं देखा। वहाँ कुछ भी नहीं था! बिल्कुल कुछ भी नहीं! और वह विशालकाय प्राणी बस अपनी बाहें लहराकर गुस्से से गरजा: "इसे तुरंत बुझा दो! तुरंत!" और उसने घोर अँधेरी रात की ओर इशारा किया। सब कुछ सुनसान, खतरनाक रूप से शांत, अँधेरा और परित्यक्त था। जब वे अपनी बाँहों में सामान दबाए हुए भारी कदमों से द्वारगृह की ओर बढ़ रहे थे, तो नवागंतुक अब अपने साथी के बगल में चलने की हिम्मत नहीं कर पाया, बल्कि वह ठोकरें खाते, जोर-जोर से हांफते उस विशालकाय के पाँच कदम पीछे-पीछे चल रहा था। "तो क्या यह खत्म हो गया, क्या यह खत्म हो गया?" द्वारपाल ने प्रसन्नता से पूछा जब उन्होंने अपने पीछे दरवाज़ा बंद किया और मेज़ के चारों ओर बैठ गए। "यह खत्म हो गया, क्योंकि यह खत्म हो गया!" केरेकेश ने रूखे स्वर में कहा।

अंदर दम घुटने वाली गर्मी थी, बत्तियाँ बुझी हुई थीं, और रोशनी केवल बाहर खंभों पर लगे दीयों से आ रही थी। खिड़की के नीचे एक जर्जर, पुराना रेडियो धीमी आवाज़ में बज रहा था। "अब मुझे वह नोटबुक दे दो!" विशालकाय व्यक्ति ने गुस्से में दरबान से कहा, फिर लड़के की ओर मुड़कर बोला, "लिखो, किसका इंतज़ार कर रहे हो?" बोगदानोविच ने खुशी-खुशी नोटबुक अपनी ओर खींची और उसके हाथ में थमाए गए बॉलपॉइंट पेन के लिए

 विनम्रता से धन्यवाद किया। "और मुझे क्या लिखना चाहिए?" 

दरबान उसके पीछे खड़ा था। "वहाँ क्या है," उसने पीछे मुड़कर अपनी उंगली से प्रवेशद्वारों की ओर इशारा करते हुए समझाया। "वही बात," केरेकेस ने बड़बड़ाया। और बोगदानोविच ने वही लिखा जो उसने पिछले पन्नों पर देखा था: रात में शिविर में कुछ भी नहीं हुआ। "इस पर दस्तखत करो," द्वारपाल ने कहा। नए आदमी ने सिर हिलाया, फिर नोटबुक अपने साथी की ओर सरका दी। 


केरेकेस चिढ़कर मुड़ गया। "मेरा भी लिख लो, तुम्हारा हाथ तो नहीं टूटेगा!" "खुशी से," लड़के ने कहा। द्वारपाल मुस्कुराया। "तो तुम लिखना कब सीखोगे, मिहाय?" क्रेकेस ने थके-हारे अंदाज में हाथ हिलाया। "किसलिए? अब तक तो ठीक ही चल रहा है, अब झंझट क्यों?" उसने जवाब दिया। वे अँधेरी कंक्रीट की कोठरी में बैठे थे, उनके चेहरे बाहर के दीयों से आती रोशनी से मुड़े हुए थे, और वे धीरे-धीरे थमते हुए बारिश की आवाज़ सुन रहे थे। "तुम यहाँ के नहीं हो, है ना?" पहरेदार ने चुप्पी तोड़ी। "नहीं," बोगदानोविच ने जवाब दिया। "मैं तुरंत समझ गया था," दूसरे ने सिर हिलाकर कहा। "तो तुम सर्बियाई हो, या क्या?" 

"नहीं…" लड़के ने हकलाते हुए कहा। "मैं हंगेरियन हूँ।" द्वारपाल असंतुष्ट होकर खिड़की से बाहर ताकता रहा। "बस उसका नाम ही इतना अजीब है," उसने बड़बड़ाया। उसका चेहरा फिर से पहले की तरह फीका पड़ गया, और अचानक केरेकेस के चेहरे पर भी कुछ बदल गया। दोनों चेहरे पत्थर की तरह जमकर डूब गए। और सिर्फ वे दोनों ही नहीं, बल्कि पूरा बस्ती भी थोड़ा डूबता हुआ सा लगा। "शांत हो रहा है," पत्थर-सा चेहरा लिए द्वारपाल ने

 कहा। "शांत हो रहा है।"


पत्थर में जमे विशालकाय ने कहा। और नया आदमी, पीटर बोगदानोविच, भोर होने को आए आकाश के नीचे अपने आवास की ओर जल्दी-जल्दी जाते हुए, व्यर्थ ही अपने साथी के चेहरे की बनावट से खुद को मुक्त करने की कोशिश कर रहा था, उसकी निगाहें व्यर्थ ही किसी चीज़ से चिपकने की कोशिश कर रही थीं, व्यर्थ ही वह अपना सिर मोड़ने की कोशिश करता रहा, उस विशालकाय का चेहरा सब कुछ भर रहा था, हर पेड़, हर झाड़ी, हर चट्टान से, यह चेहरा उसकी आँखों में जल रहा था, यह चेहरा पूरी दुनिया में व्याप्त था, धरती पर असहनीय गर्मी की तरह — आरंभ से ही।

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