प्रेम कविता
मैंने कितनी ही प्रेम कविताएँ लिखी
और लिख लिख कर
पत्रिकाओं में भेजता रहा
लेकिन सम्पादक के खेद सहित
लौटती रहीं सब
गोया प्रेमिका ने लौटा दिए हो
सब प्रेम पत्र बिना पढ़े ही
गोया रीत गया हो प्रेम
गोया उबाऊं बन गया हो प्रेम ,
इसीलिए आज एक कविता
मैं युद्ध पर लिखूंगा
यूँ भी जब सारा संसार
तीसरे विश्व युद्ध की
कगार पर खड़ा है
हर तरफ एक हाहाकार मचा है
आदमी मार रहा है आदमी को
कुछ सरहद की लकीरों के लिए
कुछ बंजर ज़मीनों के लिए
ऐसे में पढ़ेगा कौन
प्रेम कविता ,
लेकिन युद्ध में शहीद हुए
प्रेमी को लिखे ख़त पर
जब प्रेमिका का आँसू टपका
धुंधलाते उन प्रेम शब्दों ने
कहा मेरे कान में -
"लिखते रहो , लिखते रहो
प्रेम कविता
युद्ध में भी पढ़ते हैं लोग
प्रेम कविता। "
-इन्दुकांत आंगिरस
No comments:
Post a Comment