वर्तमान
मालूम नहीं कि मैं यहाँ पहले आई थी या नहीं
लेकिन यह तय है कि फिर न होगा जाना
जब तक तुम्हारी हरियाली में घिरी रहूँगी
तब तक बहारों में हरितमा का स्वाद लेने दो
तुम्हारे बीते हुए डर को समझने दो
उसके नीरस प्रेम को जला लेने दो
उसके चाँदीनुमा फ़ाख़्ता उड़ा लेने दो
मुझे प्रेम करने दो !
मुझे उसके टूटे हुए दिल से प्रेम करने दो
उसकी जुनूनी कला को सुलगाने दो
मैंने फिर तुम्हारे बचाव को महसूसा
जन्नत को बनाने की भूली हुई अभिलाषा
हमारे सुनहरे दरवाज़े द्वारा सुरक्षित
अपने प्रेम को नफ़रत में बदलने तक
मैंने कभी पार नहीं किया तुम्हारे ग्रहों के महासागरों को
मुझे अपनी क़ीमती वसीयत को महसूसने दो
मैं वहाँ पहले कभी नहीं थी , और फिर कभी न जाऊँगी
जानते हो तुम , मैं उसकी गहरी आँखों में हमेशा रहूँगी ।
कवयित्री - Suhina Biswas Majumdar
अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस
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