एक माँ के लिए प्रसव वेदना किसी कृति की रचना से कम नहीं होती। लगभग एक साल होते होते जब कोई शिशु पहली बार धरती पर अपने नन्हें पैरों से ज़िंदगी के सफ़र में अपना पहला क़दम बढ़ाता है तो सबसे ज़्यादा ख़ुशी शिशु की माँ को ही होती है। इसी भावभूमि पर इस अद्भुत हंगेरियन कविता के हिन्दी अनुवाद का लुत्फ़ उठायें।
Petike Jár - नन्हा पैतर चल पड़ा
दो चौड़े मुहँ वाले , छोटे - से जानवर जैसे
वो भोंदू बच्चे के नन्हे से प्यारे जूते
अनिश्चित सहज परियों जैसी पदचाप
भीतरी कमरों से आती जूतों की आवाज़
मेरे दिल की ख़ुशनुमां धड़कनें जग गयीं
मैं सफ़ेद फूलों की बारिश से ढक गयीं
उसको देखते ही मेरा ज़िंदादिल ठहाका
जीवंत आवाज़ की मानिंद ज़ोर से गूंजा
पुरानी सब तस्वीरें , तहरीरें भूली बिसरी
सैकड़ों किरणों की मानिंद दौड़ने लगीं
और मैं बेइंतिहा ख़ुशी से चीख़ने लगी
पैया पैया चल पड़ा , नन्हा पैतर चल पड़ा
उसने अभी भी मेज़ की टांग पकड़ रखी है
मुहँ खुला है औ चेहरे पर छलकती ख़ुशी है
साहसी मानवीय तप से ,जलती इच्छाशक्ति से
एक गुलाब के खिलने से सीखता है बड़ा होना
लो देखो ,वो मेज़ छोड़ कर उसका आगे बढ़ना
कैसे डगमग डगमग पैरों से उसका चलना
ठहर ठहर कर बढ़ाता , पैया पैया नन्हे क़दम
हिम्मत से रखता ज़मीन पे अपना हरेक क़दम
लो , बाँहें फैलाता अब .पहुँच गया यहाँ तक
धीरे से , ध्यान से... पैतर बेटा...... धीरे से
अब गिरने का समय कहाँ और तेज़ भाग पड़ा
आगे बढ़ कर वो मेरी गोदी में पसर गया
खेल उसे पसंद आया तो मैंने भी वो दोहराया
बाँहों वाली कुर्सी के पास फ़र्श पर ही बैठ गयी
मुझ तक पहुँचने को जल्दी बड़े बड़े क़दम उठाता
लेकिन आग़ाज़े सफ़र में ही अक्सर लुढ़क जाता
उसके होंठ कांपने लगते , वो रुहांसा हो जाता
आस -पास देखता , कोई हँसा तो नहीं उस पर
सोचता एक पल फिर सुगबुगाते हुए खड़ा हो जाता
और नई ताकत से फिर शुरू करता नया सफ़र
अपने गुलाबी हाथो से अपना संतुलन बनाता
पैया पैया ध्यानपूर्वक आगे बढ़ता जाता
धीरे से तुतलाते हुए अपनी हिम्मत बढ़ाता
धीले से ..ध्यान से.... पैतल बेटा... धीले से
देर तक उसकी भीगी आँखों को देखती रहती
दुखद कल्पना मेरे वजूद को घेर लेती
गुज़र जाते हैं सालो - साल मैं बुढ़िया जाती हूँ
भीतर वाले कमरे में , अब अकेली रहती हूँ
भारी क़दमों की आवाज़ , कभी कभी सुनती हूँ
एक जवान , बाँका , कुंवारा लड़का आता है
तुम हो ? क्या लोगे ? कॉफी ? पेस्ट्री
और पैया पैया मैंने तब तक उसके चक्कर लगाएँ
जब तक उसने अपने संघर्ष के दिलचस्प क़िस्से
हँसते , खिलखिलाते मुझे एक एक कर सुनाएँ
कंपकंपाते हुए , डरते हुए , बुदबुदाई मैं धीरे से-
धीरे से , ध्यान से... .. पैतर बेटा....... धीरे से
कवियत्री - Kaffka Margit
जन्म - 10th June ' 1880 , Nagykároly
निधन - 1s December ' 1918 , Budapest
अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस
NOTE : इस कविता के अनुवाद में " पैया पैया " शब्द मेरी पत्नी श्रीमती चंद्रानी आंगिरस ने सुझाया जिसके लिए मैं उनका शुक्रगुज़ार हूँ।
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