A Lúdhattyú - बगुलाहंस
यह बढ़िया पानी Cayster* का है , Döncös* का नहीं
कीचड़ भरा, बदबूदार लेकिन सुन्दर क्यूँकि मैं रहता हूँ इसमें
अब मैं बगुला नहीं बल्कि राजहंस हूँ
क्यूँकि तैरने वाली टाँगे और पंख मुझे भी मिले हैं
तुम गर्व से फूलते औ गर झुको नहीं तो गर्दन तनी रहती
बगुले भगत तुम्हारे खेल को सब हैरानी से देखते हैं
और गर कोई भी न देखे तब भी मैं देखता हूँ
जाओ , अब जाओ, प्रिय बगुले प्रेमपूर्वक पानी में
तुम्हें तैरना तो आता नहीं , तो किसी सफ़ेद क़लम से
सैन्य दलों के सिरों पर धरे ताज को रौशन कर दो
और हीरों जड़े पुष्पगुच्छ उन पर धर दो , तुम्हे तैरना नहीं आता
और मैं अच्छा तैराक हूँ लेकिन ओ निर्मोही ईश्वर
तुमने मुझे हास्यप्रद कुड़कुड़ाहट , कूँ-काँ, कूँ-काँ क्यों दी!
ऐसी हास्यप्रद कुड़कुड़ाहट , कूँ-काँ, कूँ-काँ मुझे क्यों दी !!
ये बेढंगी और कुरूप कुड़कुड़ाहट आख़िर क्यों दी !!!
कवि - Kazinczy Ferenc (1759-1831)
अनुवादक -इन्दुकांत आंगिरस
NOTE : लैटिन और हंगेरियन भाषा में नदियों के नाम
बहुत खूब
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