सुंदरी
हाँ , यही नाम था उसका , लेकिन सूरत ऐसी कि अगर कभी सपने में भी दर्शन हो जाये तो होंठों से दबी दबी सी चीख़ निकल पड़े। काला रंग , खिचड़ी से बाल , दाग़ भरे गाल , पहाड़ी चट्टान सी नाक , भद्दे होंठ , गहरे लाल और काले दाँत , बेपेंदी मोटी गर्दन , मुस्कुराती तो फूल मुरझाने लगते लेकिन फिर भी उसकी आँखें कुछ कुछ बोलती रहती थी। ऐसा हुस्न अगर बुर्के या नक़ाब में ढका हो रहना चाहिए लेकिन उसके धर्म में बुर्के या नकाब की इजाज़त नहीं है। ' ग़रीब की जोरू , सबकी भाभी ' जुमला तो आपने सुना ही होगा।
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