Wednesday, March 27, 2024

Hungarian Folk Tale - चूज़ा और बूढ़ी बिल्ली

 

चूज़ा और बूढ़ी बिल्ली

 

चूज़े ने अपनी बूढी माँ से कहा :

"माँ, मेरे लिए केक बनाओ!" बूढी  मुर्गी  माँ सहमत हो गई, उसने अपनी बेटी से ईधन के वास्ते लकड़ी के ऐसे टुकड़े लाने को कहा, जिन्हें लोग फेंक देते हैं।

चूज़ा पड़ोसी की रसोई में गया , लेकिन जैसे ही उसने चिप्स तलना शुरू किया, तभी एक बूढ़ी बिल्ली ने उसे आश्चर्यचकित कर दिया और उसे धमका कर बोली कि वह उसे खा जाएगी :

- "कृपया, मुझे जाने दो,"  चूज़े ने विनती की।

- "मैं तुम्हें अपने केक का आधा हिस्सा दूँगी ।"

-"ठीक है," बूढ़ी बिल्ली ने कहा।

-"जाओ , केक ले कर आओ !" चूज़ा चिप घर ले गई और अपनी माँ को बताया कि उसके साथ क्या हुआ था ।

-"चिंता मत करो, मेरी छोटी बच्ची," मुर्गी की माँ ने सांत्वना दी।

-"मैं तुम्हारे लिए इतना बड़ा केक बनाउंगी  कि तुम्हारा और बूढ़ी बिल्ली दोनों का पेट भर जाएगा।"

मुर्गी ने बड़ा, बड़ा केक पकाया, उसे चूजे को दिया और उसे चेतावनी दी: यह मत भूलो कि आधा हिस्सा बूढ़ी बिल्ली का है!

लेकिन छोटी लड़की को केक इतना पसंद आया कि उसने बड़े लालच से सारा केक  खा लिया।

 वह फिर अपनी माँ के पास दौड़ा:

"अब मैं क्या करूँ, मेरी प्यारी  माँ?" मैंने सारा केक खा लिया!

"अरे, तुम पेटू जानवर!" मुर्गी शरमा गयी.

"शायद बिल्ली मेरे केक के बारे में भूल गई," छोटे बच्चे ने आशा व्यक्त की।

"शायद वह इसे लेने नहीं आएगी , शायद उसे यह भी नहीं पता कि हम कहाँ रहते हैं।" लेकिन जैसे ही उसने ऐसा कहा, बिल्ली पहले से ही वहां मौजूद थी।

"हाय, अब क्या करूँ मेरा सर ... अब क्या होगा ?" - छोटी  बच्ची  डर के मारे रोने लगी ।

"बस मेरे पीछे आओ," मुर्गी ने उससे कहा, और वह पड़ोसी की रसोई में भाग गई। उसके पीछे पीछे छोटी बच्ची . उन्होंने छिपने के लिए उपयुक्त जगह की तलाश में रसोई के चारों ओर देखा, एक बड़ा मिट्टी का ज़ार देखा और जल्दी से उसमें छिप गए।

बूढ़ी बिल्ली ने मुर्गी और चूजे को भागते देखा तो उसे भी गुस्सा आया।

"मेरा आधा केक कहाँ है?" वह चिल्लाया।

मैं तुम्हें तुरंत खा जाउंगी ,” भूखी बिल्ली ने कहा, “और  तुम्हारी माँ को भी!

वह उसे लेकर भगोड़ों के पीछे रसोई में भागी । लेकिन इधर - उधर सब जगह  देखा, उसे वे कही दिखाई न दिए ।

"उन्हें यहाँ होना चाहिए," उसने मन ही मन सोचा।

"जब वे अंदर भागे तो मैंने उन्हें  देखा था ।" यहाँ कोई दूसरा दरवाज़ा भी नहीं है, बस यही है। देर-सवेर, वे अपने छिपने के स्थानों से बाहर निकल आएँगे।" इसलिये वह दहलीज पर बैठ गया और धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने लगा। ज़ार  के अंदर चूजा और मुर्गी  काँप रहे थे, वे बहुत डरे हुए थे।

लेकिन जैसे-जैसे मिनट बीतते गए, छोटे बच्चे ने धीरे-धीरे अपना साहस वापस पा लिया और बेचैनी से हिलने-डुलने लगा।

उसने अपनी माँ से फुसफुसाकर कहा: "मुझे छींक आ जाएगी, माँ!"

"लेकिन आप निश्चित रूप से छींकेंगे नहीं!" -मुर्गी ने गुस्से से जवाब दिया।

"बूढ़ी बिल्ली यह सुनती है और बर्तन  की ओर देखती है।"

एक-दो मिनट बीत गए - तभी छोटा बच्चा फिर फुसफुसा कर बोला:

"मुझे छींक आ जाएगी, माँ!" मैं तुमसे कह रही  हूं कि छींको  मत ! उसकी माँ उस पर गुर्रायी। चार मिनट बीत गए, पांच मिनट बीत गए - लेकिन छोटे बच्चे ने और अधिक जोर से आह भरी: - माँ, अब मैं वास्तव में छींकना चाहता हूँ!

इस पर उनकी मां का भी धैर्य टूट गया और बोलीं.

"ठीक है , छींक लो , लेकिन धीरे से!"

हालाँकि, छोटे चूजे ने इतनी ज़ोर से छींक मारी कि ज़ार  अचानक टुकड़ों में बंट गया, और मुर्गी और चूजा वहीं कई बर्तनों के बीच छिप गए। सौभाग्य से, बूढ़ी बिल्ली को लगा कि आकाश में गरजन हो रही है और वह डरकर भाग गई।

और इस प्रकार मुर्गी सुरक्षित और स्वस्थ  रसोई से बाहर निकल गई, और छोटा बच्चा उसके पीछे-पीछे चलने लगा।

 

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Saturday, March 23, 2024

Hungarian Folk Tale - जानवरों की ज़बान जानने वाला गड़रिया

 

जानवरों की ज़बान जानने वाला गड़रिया 

 

मैं जैसे ही पेलेग में गया मैंने देखा कि वहां चरनी से बहुत से परीकथाएं बंधी हुई थी, उन्हीं में से सबसे सुन्दर कथा मैंने चुनी है। प्राचीन समय कि बात है , सात समुन्दर पार , वहां कांच की पहाड़ियों से ढुलकी हुई भट्टी के किनारों पर एक बबंद भी नहीं थी। यह मट्ठे से भरा हुआ था।।

प्राचीन समय की बात है एक गड़रिया था। एक बार जंगल में भेड़ों को चराते  हुए उसने दूर से एक  आग का गोला देखा जिसमें एक बहुत बड़ा सांप रो रहा था –

" मेरी मदद करो गरीब इंसान ,भला  कर के  अच्छे की  उम्मीद करो क्योंकि मेरे पिता साँपों के राजा है और वह तुम्हें तुम्हारी सच्चाई के लिए इनाम देंगे। "

गड़रिये ने काठ का एक टुकड़ा काटा और उससे सांप को आग से बाहर निकाला    सांप रेंग  कर आगे बढ़ा। दोनों ने मिल कर एक बड़ा पत्थर उठाया।  पत्थर के नीचे एक सूराख था , उस सूराख में  घुस कर दोनों ज़मीन के नीचे साँपों   के राजा से मिलने चले गए।

 

साँपों के राजा ने ग़रीब आदमी से पूछा - " मेरे बेटे को मौत के मुंह से निकाल ज़िंदगी  देने वाले गरीब इंसान , बोलो , तुम्हें क्या चाहिए ? "

गरीब आदमी  ने कहा कि उसे बस यह वरदान चाहिए कि वे जानवरों की भाषा समझ सके। साँपों के राजा ने उसको यह वरदान दे दिया

लेकिन एक शर्त के साथ - " यह बात कभी भूल कर भी किसी को नहीं बताना , अगर बताया तो तुम फ़ौरन मर जाओगे। " गरीब आदमी

वरदान पाने के बाद वापिस ज़मीन पर आ गया।

जब गड़रिया अपने घर जाने लगा तो रास्ते में उसने एक सूखा हुआ पेड़ देखा। उस पर दो नीलकण्ठी पक्षी बैठे थे। एक दूसरे से कह रहा था - ' अगर इंसानों को पता लग जाये कि इस पेड़ में कितना खज़ाना छुपा हैं तो वो ख़ुशी से पागल हो जायेंगे। "

गड़रिया ने उनकी बात सुन ली , पेड़ पर निशान लगा कर घर लौट गया । बाद में वैगन ले कर आया और पेड़ से ढेर सारा पैसा ले कर लौट गया।  अब वह बहुत अमीर बन गया था।

मुनीम की बेटी से ब्याह रचाया। उसकी पत्नी हमेशा उससे पूछती कि उसके पास इतना पैसा कहा से आया ?

-" यह मत पूछो , सब ईश्वर ने दिया है। "

एक बार घर के एक कमरे में दो बिल्लियां ओवन के पास बैठी थी। बड़ी बिल्ली , छोटी बिल्ली से कह रही थी कि वो उससे छोटी है , इसलिए पेंट्री में आसानी से घुसकर उसके लिए बेकन चुरा कर ला सकती है। यह सुन कर गड़रिया हँसने लगा ।  उसकी पत्नी से उससे उसकी हँसी का कारण पूछा। गड़रिये ने अपनी पत्नी को बताया कि बड़ी  बिल्ली छोटी बिल्ली को क्या कह रही थी। उसकी पत्नी ने उससे पूछा कि वह बिल्लियों  की बातचीत को कैसे समझ पा रहा है।

 

-" अगर तुम्हें बताया तो , नहीं बता सकता , क्योंकि अगर बताया तो मेरी मृत्यु हो जाएगी।  "

- " कोई बात नहीं , बता दो।  " उसकी पत्नी ने कहा।

- " नहीं , यह संभव नहीं।  " गड़रिये ने अपना मुंह सख्ती से बंद कर लिया।

एक बार दोनों शॉपिंग के लिए निकले। पत्नी एक घोड़ी  पर बैठी और पति एक घोड़े पर। पत्नी घोड़ी पर पसर सी गयी थी। तभी घोड़े ने घीड़ को देखा और उससे पूछा कि वो जल्दी जल्दी क्यों नहीं चल रही ? तब घोड़ी ने कहा -

" तेरे लिए आसान है क्योंकि तुम्हारा सवार एक पतला आदमी  है जबकि मुझे इस मोटी औरत को ढ़ोना पड़ रहा है।

गड़रिया उनकी बातचीत समझ रहा था , वह एक बार फिर हँसने लगा।  उसकी पत्नी ने फिर उससे हँसने का कारण पूछा।  गड़रिये ने अपनी पत्नी को बताया कि घोडा , घोड़ी से क्या कह रहा था। औरत ने गड़रिये से फिर पूछा कि उसको जानवरों की भाषा कैसे समझ में आ जाती है।

गड़रिये ने कहा कि वह यह बात नहीं बता सकता क्योंकि बताते ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।  

दोनों वापिस घर लौट गए।  वहाँ घर पर भेड़िये कुत्तों से मेमने मांग रहे थे। कुत्तों ने  इसके लिए मना कर दिया लेकिन फिर भी चार मेमने

देने का वादा कर दिया। बुजुर्ग कुत्ते बोदरी ने कहा -

" वे अपमानजनक हैं , तुमने हमारे मालिक की भेड़े देने का साहस कैसे किया ? "

अमीर सब कुछ समझ गया था।  उसने कुत्तों को वहाँ से भगाया और सिर्फ बोदरी को एक बड़ी ब्रेड दी।

उसकी पत्नी ने फिर उससे पूछा कि उसने जानवरों की भाषा कहा से सीखी।  गड़रिये ने कहा कि अगर वह बताएगा तो उसकी मृत्यु  हो जाएगी। इस पर पत्नी ने कहा कि कोई बात नहीं , अगर मर भी जाओगे तो क्या हो जायेगा , बस मुझे बताओ तुमने ये कैसे सीखा ?

यह सुन कर गड़रिये ने एक ताबूत बनवाया  और उस में लेट गया।

बस इतना कहा कि आखरी बार बोदरी को एक ब्रेड देनी चाहिए। लेकिन बोदरी को ब्रेड नहीं चाहिए थी क्योंकि वह बहुत उदास था , वह अमीर  मालिक के लिए दुखी था।  लेकिन तभी एक दिलेर मुर्गा भीतर आया और बड़े मज़े से ब्रेड खाने लगा।

बोदरी ने उससे कहा - " ओ दुष्ट ! तुम इतने आराम से ब्रेड कैसे खा सकते हो जबकि हमारा मालिक अभी मरने वाला है ?

 

- " तुम मूर्ख हो ! अपने मालिक जितने पागल , एक औरत को नहीं संभाल सकते। मुझे देखो , मेरी बीस बीवियां है और सब मेरा हुक्म मानती हैं। "

यह सुनते ही गड़रिया उछल पड़ा , उसने अपनी पत्नी की खूब धुनाई की जिससे वह दोबरा यह न पूछे कि उसने जानवरो कि भाषा कहाँ  से सीखी ?

 

 

Friday, March 22, 2024

संस्मरण - साहित्य साधक मंच

 संस्मरण - साहित्य साधक मंच


बैंगलोर शहर का एक खिला हुआ दिन था और मैं अपनी कुछ हंगेरियन कविताओं का हिंदी अनुवाद  टाइप करवाने के सिलसिले में श्री वेद प्रकाश पांडेय जी के निवास स्थान पर मौजूद था। पांडेय जी से मेरी पहली मुलाक़ात थी और उनका नाम मुझे मेरी अग्रज श्रीमती उर्मिल सत्यभूषण ने सुझाया था। यक़ीनन दक्षिण भारत के हिन्दीतर शहर बैंगलोर में हिंदी भाषा की टाइप की सुविधा एक सुखद अनुभूति थी। पांडेय जी के घर मेरी नज़र श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ के काव्य संग्रह ' मिटटी की पलकें ' पर पड़ी।  मैंने वही बैठे बैठे कुछ कविताएँ पढ़ डाली। अधिकाँश मुक्तक और गीत थे। मुझे वो कविताएँ , कविताएँ लगी और मैंने  उसी दिन ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी से फोन पर बात करी।  उनकी सुन्दर कविताओं के लिए उन्हें बधाई दी और कुछ दिनों बाद उनके निवास स्थान पर मेरी उनसे पहली मुलाक़ात हुई। सहज - सरल व्यक्तित्व के धनी श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ मेरे कवि मित्र बन गए। कुछ अरसे बाद उनके द्वारा स्थापित ' साहित्य साधक मंच ' की काव्य गोष्ठियाँ में वर्षों  तक  
जाना होता रहा।  इस मंच के ज़रिये बैंगलोर के दूसरे कवियों और लेखकों से भी जुड़ाव हो गया।  इस मंच की एक विशिष्टता यह भी है कि
यहां पर हिंदी के अलावा कन्नड़ , उर्दू और दीगर ज़बानों के शाइर अपना कलाम पढ़ते रहे हैं। बाद में मर्मज्ञ जी ने ' साहित्य साधक मंच ' के नाम से मासिक पत्र   का प्रकाशन भी किया जिसमे देश भर के कवियों कि रचनाओं को स्थान दिया। मैंने सिर्फ दो फुट की  दूरी से श्री ज्ञानचंद
मर्मज्ञ जी को अनेक बार सुना है और उनके गीतों ने मुझे सदैव आनंदित किया है।  उनकी ग़ज़ल का यह  शेर देखें , जिसे मैं अक्सर उद्धृत करता हूँ।

" ज़िंदगी की सांझ में बेटे ने जाने क्या कहा
  माँ की आँखें मौन थी पर लोरियाँ रोती रही "

बैंगलोर में कोई भी  सरकारी  अथवा ग़ैर सरकारी साहित्यिक कार्यक्रम जनाब ज्ञानचंद मर्मज्ञ की उपस्तिथि के बिना पूरा नहीं होता।  कुछ सरकारी साहित्यिक कार्यक्रमों में ,उनकी सिफारिश पर ,मुझे भी उनके साथ शिरकत करने का अवसर मिला। किसी भी संस्था के कार्यक्रमों का निरंतर आयोजन करना एक दुर्लभ कार्य है जिसे पूर्ण करने का श्रेय साहित्य साधक मंच के संस्थापक / अध्यक्ष ज्ञानचंद मर्मज्ञ के साथ साथ उनकी पूरी  टीम को जाता है जिसमें मंजू वेंकट और केशव करण का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
३१ मार्च २०२४ को ' साहित्य साधक मंच ' का २०० वा सारस्वत कार्यक्रम संपन्न होने जा रहा है जोकि अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।
बैंगलोर शहर में कविता और साहित्य की बात होगी तो ज्ञानचंद मर्मज्ञ का नाम अग्रीण श्रेणी में आएगा। आज मुझे दिल्ली की संस्था
 हल्क़ा-ए-तश्‍नगाने अदब,दिल्ली के सेक्रेटरी और मारूफ उस्ताद शाइर जनाब सीमाब सुल्तानपुरी का जुमला , ' जो संस्था  रजिस्टर   हो जाती है वो रजिस्टर में ही रह जाती है " बेमानी लग रहा है क्योंकि ' साहित्य साधक मंच ' को रजिस्टर्ड हुए कई वर्ष हो चुके हैं और यह संस्था
रजिस्टर तक सीमित न रह कर दिन दूनी रात चौगनी तरक्की कर रही है। यह तो सर्वविदित है कि किसी भी सफल पुरुष के पीछे किसी नारी का हाथ होता है।  श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी और उनके साहित्य साधक मंच की सफलता के पीछे निश्चय ही उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शरद का ही हाथ है। साहित्य साधक मंच के हर कार्यक्रम में उनकी सक्रीय भागीदारी को प्रणाम करता हूँ।   ईश्वर से यही कामना है कि श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने अदब का जो दीप जलाया है वो अनवरत जलता रहे और हर अँधेरे को मिटाता रहे।  अनेक शुभकामनाओं के साथ ...  

इन्दुकांत आंगिरस
# 9900297891

Hungarian Folktale - मुर्गा और चूज़ा

 

मुर्गा और चूज़ा 

 

एक  जंगल के ठीक बीचो -बीच  में एक मुर्गा और एक चूज़ा  रहते थे  । उनके मालिक की मृत्यु हो गई और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था। उन्हें ज़ोर से भूख लगी थी ।  तभी उन्हें एक जंगली नाशपाती मिली, लेकिन जंगली नाशपाती   चूज़े के  गले से बड़ी  थी ।

खैर चूज़े ने मुर्गे से कहा - मुर्गे भाई , मेरे लिए जल्दी से पानी लाओ क्योंकि मेरा दम घुट रहा  है।

मुर्गो कुएं की ओर भागता है।  

-" कुएं भाई , मुझे जल्दी से पानी दो जिससे मैं पानी चूज़े को दे सकूँ क्योंकि जंगली नाशपाती से उसका दम  घुट रहा है। "

- " मैं तब तक पानी नहीं दूंगा जब तक तुम किसी सुन्दर लड़की से मुझे एक फूल माला नहीं ला कर दोगे " - कुएं ने कहा। 

तब मुर्गा एक सुन्दर लड़की के पास गया।

- " तब तक नहीं मिलेगी जब तक मुझे गाय का थोड़ा दूध नहीं ला कर दोगे। " - सुन्दर लड़की ने कहा।

मुर्गा गाय  के पास भी गया।

- " गाय मुझे थोड़ा दूध दो , दूध सुन्दर लड़की के पास ले जाऊँगा , सुन्दर लड़की मुझे फूलों की माला देगी , फूल माला कुएं के पास ले जाऊँगा , कुआँ मुझे पानी देगा , पानी चूज़े के पास ले जाऊँगा क्योंकि जंगली नाशपती से उसका दम घुट रहा है। "

 

" मैं सुन्दर लड़की को तब तक दूध नहीं दूँगी जब तक तुम मुझे घास के मैदान से घास नहीं ला कर दोगे। " गाय ने कहा।

मुर्गा घास के मैदान के पास गया।

 

- " मैदान ! मुझे घास दो , घास गाय को दूंगा , गाय मुझे दूध देगी , दूध सुन्दर लड़की के पास ले जाऊँगा , सुन्दर लड़की मुझे फूलों की माला देगी , फूल माला कुएं के पास ले जाऊँगा , कुआँ मुझे पानी देगा , पानी चूज़े के पास ले जाऊँगा क्योंकि जंगली नाशपती से उसका दम घुट रहा है। "

- " तब तक घास नहीं दूंगा जब तक दुकान से मेरे लिए घास काटने की मशीन नहीं ला कर दोगे " - घास के मैदान ने कहा।

मुर्गा दुकान में गया।

 

- " दुकान ! मुझे घास काटने की मशीन दो , मशीन घास के मैदान को दूंगा ,मैदान मुझे घास देगा ,घास गाय को दूंगा , गाय मुझे दूध देगी , दूध सुन्दर लड़की के पास ले जाऊँगा , सुन्दर लड़की मुझे फूलों की माला देगी , फूल माला कुएं के पास ले जाऊँगा , कुआँ मुझे पानी देगा , पानी चूज़े के पास ले जाऊँगा क्योंकि जंगली नाशपती से उसका दम घुट रहा है। "

- " तब तक घास काटने की मशीन नहीं दूँगी  जब तक पैसे नहीं लाओगे ", दुकान ने कहा।

तब मुर्गा हताश हो गया , जल्दी के कूड़े के ढेर पर पहुँच कुरेदने लगा , वहां उसे एक क्रेडिट कार्ड मिला ,वह उसे दुकान में ले गया , तब उसे घास काटने की मशीन मिली , घास के मैदान के पास गया , मैदान ने उसे घास दी , घास गाय के आगे रखी , गाय ने दूध दिया , दूध सुन्दर लड़की के पास ले गया , सुन्दर लड़की ने फूल माला बनाई  , फूल माला ले कर कुएं के पास गया , कुए ने पानी दिया , पानी ले कर सीधा चूज़े के पास पहुंचा ,ओर वो भी सही वक़्त पर , भारी घुटन से  चूज़ा आखरी साँसें गिन  रहा था। चूज़े ने  जल्दी से ढेर सारा पानी पिया  , पानी ने चूज़े के गले में अटकी नाशपाती को बहा दिया , नाशपाती ने हवा को रास्ता दे दिया , इस तरह हवा से जीवित हो कर वो चूज़ा आज भी जीवित है अगर मर न गया हो तो।

Saturday, March 16, 2024

Flash Back - English - Roshan Di Hatti

 Roshan Di Hatti


Roshan Di Hatti 

To me,

Was like a magical land.

Where colorful trophies 

Of various kinds,

Chocolates, lollipops, and

Candies,

Wrapped in colorful papers

And 

Wrapped in foil,

Would gleam and shine,

And before sitting in my

School's bench 

Every day,

I'd spend 

10-20 paisa 

On a sweet treat.

And

I'd happily ride 

Back home on Tonga,

Carrying a candy in my pocket,

But today, 

Standing in front,

Of Roshan Di Hatti 

After years,

The owner of the once 

Vibrant shop has aged,

Perhaps he didn't recognize me,

As I bought my favorite candies from him,

And 

Distributed them among the kids

Playing gully cricket and stickball 

In the Ramleela ground,

The candies brought 

Smiles to their faces,

As they happily indulged,

Reminding me of my childhood days.

I sat there until the sunset,

Watching their games,

And 

Their joyous faces,

Amidst the scattered colorful wrappers on the ground,

Bringing back countless 

Memories of my childhood.

Wednesday, March 13, 2024

Flash Back - English - Snowballs

 Snowballs


At the corner 

Of Gokul Shah's street

Was the cart of snowballs

Blue, yellow, red, pink

Bottles of colorful syrup 

Adorned its cart

And amidst the bottles

A shovel to scrape the snow

Each snowball 

Had its own charm

On the white snowball

Splashed colorful syrup

And with it in my mouth

I'd head back home

On the way home

A snowball of syrup

Then life would turn white

With its twists and turns

I've eaten hundreds of Amazing ice creams

But never tasted

The flavor like that snowball.

फ़्लैश बैक/3 - बड़ी मौसी

 बड़ी मौसी 


मालूम पड़ा एक दिन जब 

कि माँ - सी होती हैं मौसी 

तभी कहते हैं उन्हें मौसी   

बड़ी मौसी का अलग था  किरदार

हिसाब से था उन्हें बहुत प्यार  

चुटकियों में करती थी 

हिसाब के सवाल हल 

उठ जाती थी तड़के ही 

पढ़ाने को जाती स्कूल 



Friday, March 8, 2024

Flash Back - English - Cycle

 Cycle


Still today,

I haven't forgotten that day

When for the first time

I rode a bicycle

Starting with wobbly steps

Pushing pedals with effort

Bracing falls with resilience

Turning on empty streets

To the rhythm of the bicycle bell

Heart felt like a garden in bloom

With the wheels of the bicycle

Spinning faster with speed

Heartbeats quickening 

With excitement

Today, racing at 120 kilometers per hour

In a car,

But I don't feel

Any Thrill,

And alas,

Now I don't ride

A bicycle anymore

Just watching cyclists pass by

Fills me with longing

And I remember

The thrill of the past.

Flash Back - English - Gullak -

 The Piggy Bank


The piggy bank of childhood

Often burst 

Before filling up

Sometimes for kites

And 

Sometimes for string

Today, in the bank account

There are lakhs of rupees

Expenses are made

When needed

But the joy

Of childhood

Breaking 

The clay piggy bank

Counting those coins

And then buying 

Kites and string

Was such happiness

That even after shopping

For thousands of rupees today

It's not found.

Thursday, March 7, 2024

लघुकथा - मौका

 लघुकथा - मौका 


श्री राम के मंदिर के उद्घाटन का वक़्त करीब आता जा रहा था। हर तरफ़  श्री राम  की जय  जयकार हो रही थी।  सोशल मीडिया पर श्री राम का समर्पित कविताएँ , गीत और आलेखों की बाढ़ - सी आ गयी थी। TV चैनल्स पर श्री राम को समर्पित अनेक कार्यक्रम दिखाए जा रहे थे लेकिन सुरेंद्र   का मन इसमें न लगा। घर में राशन के पैसे न थे और सुरेंद्र   इसी चिंता में डूबे थे। एक वर्ष पूर्व तक किसी तरह माँ की पेंशन से काम चल जाता था लेकिन माँ के गुज़रने के बाद पेंशन भी बंद हो गयी थी। 

सुरेंद्र   ने माँ के पुराने संदूक  को इस आशा से टटोला  कि शायद उसमे कुछ रुपए मिल जाए लेकिन उसमे पुराने कपड़ों और कुछ किताबो के अलावा कुछ न मिला। लेकिन  एक  किताब पर नज़र पड़ते ही उनका चेहरा खिल उठा। लगभग दो वर्ष पूर्व उनकी माता जी ने अपना काव्य संग्रह - ' राम गागर  ' की एक हज़ार प्रतियां  छपवाई थी । ' राम - गागर '  श्री राम के जीवन का संक्षिप्त काव्य -संग्रह था। सुरेंद्र   ने एक गहरी साँस छोड़ी , उन्हें लगा कि इस पुस्तक को बेचने का इससे बेहतर मौका फिर नहीं मिलेगा । सुरेंद्र  ने अपना चश्मा लगाया और  ' राम - गागर ' काव्य संग्रह की प्रतियां संदूक से बाहर निकाल कर गिनने लगे। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

Sunday, March 3, 2024

फ़्लैश बैक/3 - मंझले चाचा


मंझले चाचा 


 साढ़े छह फुट लम्बे ,

इकहरा बदन, अधपके बाल 

ज़ेहन में आज भी ताज़ा ,

 गुज़रे कितने साल 

अंग्रेज़ी बोलते थे फर्राटेदार 

कुछ अलग ही था उनका किरदार 

IQ का तो क्या कहने 

उड़ती चिड़िया के गिनते थे पर 

बहुत पैनी थी उनकी नज़र 

चाय के साथ नमकपारों के शौक़ीन   

अक्सर ले जाते थे मुझे भी साथ 

करते थे  हम  दिलचस्प बाते 

चाय की चुस्कियों के साथ ,

चाय के बाद 

अक्सर एक ख़ास अंदाज़ में 

उनका सिगरेट सुलगाना 

रामलीला के मेले में 

रिंग फेंक कर इनाम पाना 

Alberto Moravia का उपन्यास 

Two Women  मुझे पढ़वाना 

याद बहुत आता है गुज़रा ज़माना ,

एक मनहूस दिन 

नार्थ  ब्लॉक , दिल्ली की सीढ़ियों पर 

अचानक दिल का दौरा  पड़ना

 इस दुनिया से उनका विदा होना 

 ज़ार ज़ार मेरा रोना , 

रहे नहीं मंझले चाचा 

लेकिन उन नमकपारों का स्वाद 

आज भी है मुंह में मेरे ताज़ा 

दिल करता है हो जाये फिर 

एक प्याली  चाय  उनके साथ।  


कवि - इन्दुकांत आंगिरस