Monday, October 23, 2023

MUKTAK -SHER_

 पत्थर से  शीशा बन जाना सब के बस की बात नहीं 


सीने में ग़म को दफ़नाना सब के बस की बात नहीं 


ग़ैरों के रिसते ज़ख़्मों पर कोई भी हँस लेता है


अपने ज़ख़्मों पर मुस्काना सब के बस की बात नहीं 




छलके हैं  मैख़ाने इनमें 

गुज़रे कई ज़माने इनमें 

ये आँखें हैं झील सी गहरी

डूबे लाख दीवाने इनमें 



इश्क़ को तुम इल्ज़ाम न दो

यूँ आँसू इन्आम न दो

भूल गया हूँ ख़ुद को मैं 

अब मुझको तुम नाम न दो


मुहब्बत को दिल में बसाये तू रखना

सदा शम्अ-ए-उल्फ़त  जलाये तू रखना

मिलन दो दिलों का न आसान होता

मगर दिल से दिल को लगाए तू रखना



दिल से दिल का सिलसिला तो निकले 

रूह का ये  आबला तो निकले 

रुकता है मेरा सफ़र तो क्या है

रहगुज़र से  क़ाफ़िला तो निकले


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नहीं बाहर तलाशें बीज इनके

शुरू होते हैं घर से फ़ासिले सब

1222-1222-122

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तोड़ डाला आपने इसको भी क्यों

ये मेरा दिल तो कोई वा'दा न था 

2122-2122-212

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हादिसा हर बार कुछ ऐसा हुआ

ज़ख़्म उसने  जब छुआ मेरा छुआ 

2122- 2122 - 212

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ज़माना रहा है मुहब्बत का दुश्मन

मुझे चाहा उसने ये कम तो नहीं है

122×4

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लगाये हैं दिल से यूँ ही ज़ख़्म मैंने
नहीं मुफ़्त मिलती कोई शै यहाँ पर
122×4
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और सबूत अनाड़ीपन का क्या होगा
उसकी आँखों में उतरें और  डूब गए 
22 22   22 22  22 2

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बताऊँगा मजबूरी इक दिन मैं अपनी
न समझें मुझे बेवफ़ा आप यूँ ही
122×4
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रास्ते पर मैं ही खुद आता नहीं
मंज़िलें तो मिलने को बेताब हैं

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क्या भरोसा याद ये तुमको करे
वश (बस) नहीं रहता है इस दिल पर मिरा
2122-  2122  -212
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लिया है लहर ने लहरों का चुम्बन
किनारे तो कभी मिलते नहीं हैं
1222  1222  122

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धूप तो दीवार से उतरी मगर
है अना दीवार सी अब तक खड़ी
2122-2122-212
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कभी रेत का घर बिखरता जो देखूँ
बिखरने को मैं  भी मचलता हूँ ख़ुद में
122-122-122-122 

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यारों ने तो ख़ूब पिलाकर मस्त किया
कौन मुझे छोड़ेगा मेरे घर तक अब
22-22   22-22  22-2

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याद आया इक पुराना वक़्त मुझको 
जब सुखाने छत पे कपड़े आ गए वो
2122-2122-2122

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आईने पर न इतना यक़ीं कीजिए  
वक़्त के साथ ये भी बदल जाएगा
212×4
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न इतने प्यार से हमको निहारें 
अभी कुछ और जीने की है चाहत
1222 1222 122
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आँखों से होकर पहुँचता इश्क़ दिल तक
उम्र-भर समझे नहीं ये बात हम क्यों 
2122-2122-2122
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ख़्वाब जबसे ये जेबी हुए
अश्क मेरे फ़रेबी हुए
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जब तू ग़ैरों से जाकर जुड़ा
अश्क भी भाप बनकर उड़ा
212×3
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हर तरफ बिखरी हुई तन्हाइयाँ हैं 
परछाइयों में  क़ैद कुछ  परछाइयाँ हैं 
2122-2122-2122
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याद तुम्हारी जब भी आए
ख़ूं के आँसू हमें रुलाए
22 22- 22 22
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आशाओं की नैया जबसे डूबी है
क्या आईना  देखें, क्या बाल सँवारें
22 22        22 2      2  222
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तुमको मैं ख़ुद भूल न पाया
कैसे कह दूँ मुझे भुला दो
22 22 22 22
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रुके हैं जहाँ कारवां सबके थककर
वहीं से शुरू होता अपना सफ़र है
122-122-122-122

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तब ही दिल का मिरे जल उठा आशियां 
जब निगाहें किसी की हुईं मेहरबां
212-212-212-212
फ़ाइलुन ×4
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गहरे सागर की चाहत में जब भी घर से निकला मैं
उन आँखों की गहराई ने मेरे मन को लुभा लिया
 22 22 -22 22- 22 22- 22 2
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गुज़र जानी है शब यूँ ही तो बस यूँ ही गुज़ारेंगे,
न उनको याद आएँगे न उनको हम पुकारेंगे
1222-1222-1222-1222
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दिल की वहशत तुझे याद जब भी करे
सूनी छत की मुंडेरों पे कुहनी टिके
212-212-212-212-
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मुहब्बत भी सिखाती है बहानों की अदा कितनी
वो दरवाज़े पे आते हैं बुहारन के बहाने से
1222-1222-1222-1222
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