Sunday, October 1, 2023

फ़्लैश बैक/3 - जुड़वाँ लड़कियाँ


जुड़वाँ लड़कियाँ


 मेरे घर के सामने वाली चाल में

रहती थी दो जुड़वाँ लड़कियाँ

दिखने में लगती थी बन्दरियाँ 

चिड़िया की मानिंद 

सारे दिन रहती फुदकती

अस्फुट स्वर में आपस में बतियाती 

न बैठने का सलीका न चलने का शऊर 

उनके  कम दिमाग़  के चलते 

कुछ फुकरे फिकरे रहे कसते 

उनकी दुखियारी माँ अक्सर घबराती  

कुछ भी समझ नहीं पाती 

चाल के गलियारे में 

जुड़वाँ बहिने हुड़दंग मचाती 

गर्मियों की दोपहर में

कभी सीढ़ियों पर ही  सो जाती

कभी कभी मुझसे भी बतियाती 

मैं उनकी बात समझ नहीं पाता

वो मेरी बात समझ नहीं पाती 

भरती किलकारी , खिलखिलाती 

लेकिन उस शाम उदासी 

पसर गयी थी मेरी आत्मा में

कुछ सालों बाद पता चला था जब 

उनके गुज़र जाने का सिलसिला 

चाल का हंगामा  बदल गया था सन्नाटे में

आँखों में मेरी तैर गयी वो शाम 

जब दोनों बहनो ने 

 ख़ुद को डुबो दिया था आटे में 

और मचाया था हुड़दंग बहुत 

चाल के अहाते में।   



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

No comments:

Post a Comment