वो शाम...
वो शाम अब तक है याद मुझे
वो लम्हें अब तक हैं याद मुझे
गुज़ारे थे जो तुम्हारे साथ ,
नहीं था तुम्हारे हाथ में मेरा हाथ
न ही तुम्हारी बाँहें थी मेरे गले में
लेकिन प्रेम भरी साँसें
घुल गयी थी फ़िज़ा में
हर सम्त बिखरी थी तुम्हारी खुश्बू
उस खुशबू में डूब गया था
हमारा चंद लम्हों का सफ़र
काश , हाँ काश
कभी ख़त्म न होता ये सफ़र ,
मुझे यक़ीन नहीं होता
शायद तुम्हें भी न हो
हम बिछड़ कर भी बिछड़े नहीं
और मेरी रूह अभी तक
उस सफ़र में है,
क्या इस सफ़र में तुम
अभी तक मेरे साथ हो ?
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
No comments:
Post a Comment