सावन की रतियों में , मत जा रे बलम छोड़ के
तोरण से मैं द्वार सजाऊँ
चन्दन बंदन हार बनाऊँ
बिरहन सी सूनी आँखों में
तारों के मैं दीप जलाऊँ
सावन की रतियों में , मत जा रे नयन मोड़ के
तोड़ के सारे बंधन आ जा
प्रेम को भी चन्दन कर जा
सूने प्राणों में रंग भर कर
मुझको फाल्गुन कर जा
सावन की रतियों में , मत जा रे कसम तोड़ के
बैरन रतिया मोह तड़पाए
आहट पे हर दिल घबराए
साथ हमारा जन्मों का यूँ
कान्हा के सँग राधा गाए
सावन की रतियों में , मत जा रे भरम तोड़ के
कवि - इन्दुकांत आंगिरस
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