Sunday, August 13, 2023

लघुकथा - दोस्ती

 दोस्ती 


पति के कवि मित्र घर से जाने  लगे तो पति उन्हें गले लगा कर बोले - " आते रहना रामकुमार भाई , इसे अपना  ही घर समझना। कभी भी संकोच मत करना। " रामकुमार ने मुस्कुराते हुए विदा ली । 

रामकुमार के जाने के बाद परेशान  पत्नी ने पति से पूछा  -" आप तो कहते थे कि रामकुमार ने साहित्य के क्षेत्र में आपकी काफी टांग खींची है और इसके लिए आप उसे बर्बाद कर देंगे लेकिन आप तो उसे गले लगा कर दोस्ती का परचम फहरा रहे हैं।  आख़िर ये माज़रा क्या  है ?

पति ने मुस्कुराते  हुए कहा -" तुम बहुत भोली हो जानेमन , दुश्मनी निकालने  के लिए दुश्मन बनना ज़रूरी नहीं है, बल्कि  यूँ समझो कि दोस्त बन कर दुश्मन को ज़्यादा  बर्बाद किया  जा  सकता  है। 

पत्नी हैरानी में दोस्ती और दुश्मनी के इस नए आयाम समझने की कोशिश करने लगी । 


लेखक   - इन्दुकांत आंगिरस          

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