Wednesday, September 6, 2023

प्रेम - प्रसंग/ 2 - लफ़्ज़े मुहब्बत

 

 लफ़्ज़े मुहब्बत 



एक एक लम्हा गुज़रता गया 

एक एक पहर गुज़रता गया 

देखते देखते माह - साल गुज़र गए 

न कोई ख़त तुम्हें लिखा 

न तुम्हें फ़ोन ही किया 

न तुम्हारी आवाज़ सुनी 

न बढ़ कर तुम्हें पुकारा 

न तुम्हारा ख़त आया 

न तुमने फ़ोन किया 

न तुम ने मुझे पुकारा  

लेकिन  मेरी रूह पर

तुम्हारा जादू तारी रहा 

वो अधखुली आँखों  का जादू 

वो घनेरी ज़ुल्फ़ों का जादू 

वो चाँद से मुखड़े का जादू 

वो सांझ के तारे का जादू 

वो  गुदाज बाँहों  का जादू 

वो  सर्द आहों का जादू 

वो झुकी निगाहों का जादू 

हाँ , मेरी रूह पर 

तुम्हारा जादू तारी रहा 


मैं इधर सन्नाटे में लिपटता  हूँ तन्हाई से 

तुम उधर लिपटती हो मेरी यादों  से 

दूर रह कर भी बहुत पास हैं हम 

यक़ीन है मुझे 

तुम्हारा यक़ीन मुझसे मिलता जुलता होगा 

अगर तुम कहो ये मुहब्बत नहीं 

मुहब्बत का कुछ गुमां होगा 

एक लफ़्ज़े मुहब्बत 

हमारी रूह पर खुदा होगा। 




कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

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