Monday, September 16, 2024

Tamil _गंगू तेली। கங்கு

 गंगू तेली।

  கங்கு 

तेरी =

எண்ணெய்             வியாபாரி

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 ராம் பாபு சாட் மசலா கடை அருகில்

கங்கு எண்ணெய் வியாபாரி கடை.

 கடைத்தெரு சீதாராமில்

எனக்கு 

 ஏதோ துப்பறியும் இடம் போல்  இருக்கிறது 

அவருடைய ஷா கடையில் இருக்கும் வண்ண வண்ண

 எண்ணெய் புட்டிகள் 

 வித விதமான எண்ணெய்கள்.

 மணங்கள்‌

அந்த காலத்தில் நான் அறியாதவை.

 வண்ண வண்ண எண்ணெய்களின்

 பெயர்கள் 

 எள், வேர்க்கடலை , விளக்கெண்ணெய் 

சூரிய காந்தி, மல்லிகை ரோஜா,

பாதாம்,  மேலும் எத்தனையோ வித எண்ணெய்கள்.

இன்றும் எண்ணெய் 

தேய்க்கும் பொழுதெல்லாம் 

 நினைவில் வருகிறது 

 கங்கு எண்ணெய் வியாபாரி கடை.

Sunday, September 15, 2024

फ़्लैश बैक -कोचवान मानसिंह

 कोचवान मानसिंह


मेरे ताँगे का कोचवान मानसिंह 

मंझला क़द और था वो मोटा 

रंग था उसका काला 

जिस पर सफ़ेद 

नेहरू टोपी , कुरता - धोती 

ख़ूब फ़ब्ती

बायीं तरफ से माथा था पिचका 

मुँह मैं सदा  पान या गुटका 

एक हाथ में चाबुक 

और दूसरे में लगाम 

बाज़ार सीता राम से 

तुर्कमान गेट तक का 

ताँगे का सफ़र  

होता था बहुत रोमांचक 

कोचवान ज़ोर ज़ोर से 

जुमलों को उछालता  -

ज़रा हट के , ओ बाबू जी 

ओ मौला जी ..ओ बीबी 

ओ तेरी बहिन की ...

और ताँगा तीर की तरह 

आगे बढ़ जाता 

राहगीर झट रास्ता देते 

बाजू में सरक जाते 

तुर्कमान गेट पार करते ही 

ताँगा बाल भवन की 

ख़ाली सड़क पर 

दौड़ पड़ता और २० मिनट में 

पहुँच जाता रॉउज़ ऐवेन्यू 

आंध्र स्कूल के गेट पर ,

ताँगे से कूद हम झट-पट 

चढ़ जाते थे स्कूल की सीढ़ियाँ ,

आज बरसों बाद खड़ा हूँ 

स्कूल की सीढ़ियों के सामने 

स्कूल की छुट्टी हो गयी है 

और बच्चें स्कूटर , कारों 

और स्कूल बस  में 

सवार हो कर लौट रहें हैं 

अपने - अपने घर ,

अब ताँगे नहीं चलते 

नहीं है कोचवान मानसिंह 

न उसका घोडा 

न चाबुक है और न लगाम 

स्कूल बस में 

बच्चें बैठें हैं बिलकुल शांत। 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


Tamil _ गुल्ली डंडा - கிட்டிப்பில்

 गुल्ली डंडा। 

கிட்டிப்பில்

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 கிட்டிப்பில்

என்னுடைய  பிரியமான  விளையாட்டு.

 என்னுடைய நண்பர் 

 ராமகோபாலனுக்கு 

கால்பந்து விருப்பம்.

 அவருடைய மூக்கு பக்கோடா மாதிரி.

 குள்ள உருவம்.

 அ

ஆனால் இந்த விளையாட்டில்  ப

நிபுணர் (மாஸ்டர்).

 குரங்கு மாதிரி தோற்றம் 

 

 ஓவியம் 

மிக அழகாக வரைவான்.

 தில்லியின்  பழைய 

 ராம்லீலா மைதானத்தில் 

பல முறை கிட்டிப்புல் 

 விளையாடிய இருக்கிறோம்.

 அந்தக் காலத்தில் இது தான் ஏழைகள் 

 விளையாட்டு.

 ஆனால் நான் 

 அந்த அளவிற்கு ஏழை கிடையாது.

 மற்ற விளையாட்டுகளும் 

 விளையாட முடியும்.

 ஆனால் கிட்டிப்பில் 

 விளையாடுவதில் ஒரு தனி மகிழ்ச்சி தான்.

 எனக்கு நினைவு இல்லை

 நான் அதனால் தான் வாழ்கிறேன்.

எனக்கு எப்பொழுதுமே

 அது பிரியமான விளையாட்டு தான்

Saturday, September 14, 2024

फ़्लैश बैक - रौशन दी हट्टी

 रौशन दी हट्टी 


रौशन दी हट्टी 

मेरे लिए 

किसी जादूनगरी से कम नहीं थी 

जहाँ रंग - बिरंगी 

किती ही तरह की  टॉफ़ियाँ  

चॉकलेट , लॉलीपॉप्स 

गोलियाँ 

रंग - बिरंगें  काग़ज़ों 

और 

पन्नियों में लिपटी 

खिलखिलाती रहतीं 

और मैं अपने 

स्कूल के ताँगे मैं 

बैठने से पहले रोज़   

१०- २० पैसे की 

मिठाई की गोली 

उससे  ख़रीदता 

और ख़ुशी ख़ुशी 

अपने ताँगे मैं सवार होता ,

आज बरसों बाद 

रौशन दी हट्टी के

 सामने खड़ा हूँ 

गोरा - चिट्टा दूकान का मालिक 

अब हो गे है बूढा 

शायद उसने मुझे नहीं पहचाना 

मैंने अपने मनपसंद 

कई तरह की 

मिठाई की गोलियाँ उससे ख़रीदी 

और रामलीला ग्राउंड मैं जा कर 

गुल्ली - डंडा और क्रिकेट खेलते 

बहुत से बच्चों मैं बाँट दी ,

मिठाई की गोलियाँ 

अपने - अपने मुँह मैं डाल 

बच्चें ख़ुशी ख़ुशी रम गए 

फिर से अपने अपने खेल मैं 

,मैं वही बैठे सूरज डूबने तक 

देखता रहा उनका खेल 

और 

उनके खिलखिलाते चेहरे ,

ज़मीन पर बिखरी 

रंग - बिरंगी पन्नियों मैं 

जगमगा उठी थीं 

मेरे बचपन की अनगिनत यादें। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


Friday, September 13, 2024

लघुकथा - सालगिरह मुबारक

 लघुकथा - सालगिरह मुबारक 


" सालगिरह मुबारक हो हिन्दी बहिन ".. उर्दू ने नक़ाब उठाते हुए कहा।  

- "  बहुत धन्यवाद  उर्दू  बहिन  , एक तुम्हीं हो जो मुझे अभी तक बहिन कहती हो वरना आज के दौर में इतना लम्बा रिश्ता कौन निभाता है ? " हिन्दी  ने  मुस्कुरा   कर जवाब दिया 

- " अरे  ये सब छोड़ो , आज  तो जश्न का दिन है।  आज तो तुम्हें ख़ूब तोहफ़े मिलेंगे।  काश कोई हमारी भी सालगिरह  मनाता। ख़ैर तुम तो ज़िंदगी की मौज  लो। " उर्दू  एक साँस में बोल गयी।

- " मेरे लिए तो जिन्दगी सज़ा बन चुकी है , तुम मौज की बात कर रही हो " हिन्दी ने मायूसी से कहा। 

- " जिंदगी नहीं ज़िंदगी बोलो मेरी बहिन , क्या तुम मुझे भूलती जा रही हो ? " उर्दू  शिकायती लहज़े में बोली। 

- " अरे , कोई बोलने दे तब  तो बोलूँ  ,  जैसे ही  नुक़्ता लगाती हूँ , लोग ज़बान काटने को तैयार रहते हैं। " हिन्दी  ने  दबी ज़बान में कहा। 

- " अच्छा , ये तो ज़ुल्म है , तो मतलब अब हमारा गंगा - जमुनी प्रेम ख़त्म  ? " उर्दू ने अकुलाते  हुए पूछा। 

- " लगता तो ऐसा ही है बहिन  फिर भी मेरी कोशिश रहेगी जब तक निभा सकूँ ...." हिन्दी ने बुझे स्वर में कहा।   


दोनों बहिनों ने  एक - दूसरे  की  कौली भरीं और अपने अपने रास्तों पर मुड़ गयीं। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 

       


लघुकथा - आख़िर तुम हो कौन ?

 लघुकथा - आख़िर तुम हो कौन ?


काली रात का सीना चीर कर  सूरज की किरणों ने धरती की पेशानी चूमी तो धरती खिलखिला उठी। सूरज की रौशनी से ज़र्रा - ज़र्रा जगमगा उठा   लेकिन एक बरगद के नीचे एक काली छाया सिहर उठी। कोई उसके वसन खींच रहा था  , तो कोई उसको घसीट रहा था। कोई उसे सजा रहा था, तो कोई उसे फुसला रहा था।  कुछ लोग तो उसका अपहरण करने की फ़िराक़ में थे और कुछ उसे कोठे पे बैठाने की कोशिश में जुटे थे। दूर से नज़ारा  देखते कुछ फ़िरंगी उसके वजूद को तोड़ने की कोशिश में लगे थे। काली छाया की दर्दनाक कराह सुन  कर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसके क़रीब  जा कर उससे पूछा ," आख़िर तुम हो कौन ? "  छाया सकुचाते हुए धीरे से बुदबुदाई - " जी...जी...मैं  हिन्दी हूँ   और आज मेरा जन्मदिन है। " 


लेखक -  इन्दुकांत आंगिरस

फ़्लैश बैक - बर्फ़ के गोले

 बर्फ़ के गोले 


कटरा गोकुल शाह के 

नुक्कड़ पर 

था बर्फ़ के गोले वाले का ठेला 

नीले , पीले , लाल , गुलाबी  

रंग - बिरंगी शरबत की बोतलें 

सजी रहती थीं उसके ठेले पर 

और ठेले के बीचों बीच 

बर्फ़ को छीलने का रंदा 

बर्फ़ के गोलों का 

अपना अलग था मज़ा 

बर्फ़ के सफ़ेद गोले पर 

उँड़ेला जाता था रंगीन शरबत 

और उसे लेकर मैं चूसता हुआ 

लौट पड़ता था घर की ओर 

घर तक पहुँचते - पहुँचते 

बर्फ़ का शरबती गोला 

फिर बन जाता था सफ़ेद 

ज़िंदगी में क़िस्म - क़िस्म की 

सैकड़ों लाजवाब आइसक्रीम खाईं 

लेकिन उस बर्फ़ के गोले -सा स्वाद 

मिला नहीं कभी भी। 


कवि - इन्दुकांत आंगिरस