Monday, April 7, 2025

एक करोड़

एक करोड़ 


आलिशान बंगले के ड्राइंग रूम में मौत का सा सन्नाटा पसरा हुआ था।  शिवनारायण और उनकी पत्नी गहरी सोच में डूबे थे। उनका पुत्र मनोज 

बार बार अपना पसीना पौंछ रहा था।  उसकी शादी को अभी दो महीने ही हुए थे। शुरू शुरू में सब ठीक था लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसकी पत्नी रोमा ने घर में तूफ़ान उठा रखा था। रोमा अपना ब्यूटी पार्लर चैन खोलना चाहती थी और उसके लिए उसने अपने पति से १ करोड़ रूपये की डिमांड कर दी थी।रोमा ने अपने पति और सास ससुर को अल्टीमेटम दे दिया था कि अगर उसे २४ घंटे में १ करोड़ रूपये नहीं मिले तो वह अपने ससुर पर बलात्कार और दहेज़ का केस लगाने में बिलकुल नहीं हिचकेगी। इसीलिए घर में मातम छाया था। मनोज मायूसी से अपने कमरे में घुसने लगा तो उसे रोमा की आवाज़ सुनाई दी।  रोमा  अपनी किसी सहेली से बाते कर रही थी। 


- " तू देखती जा अब मैं  कैसे   इनको बन्दर नाच नचाती हूँ  , इनको नाको चने न चबवा दिए तो मेरा नाम रोमा नहीं। अगर मुझे अगले २४ घंटे  में  मेरी रकम नहीं मिली तो फिर देखना  " रोमा ने बिफ़रते हुए अपनी सहेली से कहा। 


- " आख़िर तू करेगी क्या ? " सहेली ने जिज्ञासा से पूछा।


- " दहेज़ , नारी उत्पीड़न और बलात्कार का ऐसा केस डालूँगी कि इनके चूले हिल जाएँगी "।  रोमा ग़ुस्से से बोली थी। 


- " अपने ही पति पर बलात्कार का केस ? पगला गयी है क्या ? कोर्ट नहीं मानेगा ....." सहेली ने झिझकते हुए कहा। 


- " अरे , बलात्कार का केस पति पर नहीं अपने ससुर पे डालूँगी। पूरे समाज में इनका मुँह काला करुँगी। "


- " लेकिन तेरे ससुर ने ऐसा कुछ किया क्या ? "सहेली ने पूछा 


- " अरे वो बुड्ढा क्या करेगा , उसके बस का भी कुछ नहीं है लेकिन क़ानून वही मानेगा जो मैं कहूँगी " रोमा ने दृढ़ता से कहा था। 


उधर ड्राइंग रूम में शिवनारायण ख़ामोशी से अपनी नई नवेली संस्कारी  बहू के नाम १ करोड़ का चेक  काट रहे थे। 

Saturday, April 5, 2025

Ghazal Lesson _ RAV

 [22:26, 04/04/2025] Ram Awadh Vishvkarma 2: जे ए के आर्ट एण्ड कल्चर फ़ाउन्डेशन की जानिब से अगली नशिस्त के लिए बज़्मे नौ सुख़न के लिए तरही मिसरा शायर  साक़ी  फ़ारुक़ी साहब  की ग़ज़ल का मिसरा  दिया जा रहा है 

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मिसरा ए तरही--> 'ऐ रौशनी-फ़रोश अंधेरा न कर अभी

वज़्न------------> 221        2121     1221       212

                       

 मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

अर्कान------> मफ़ऊल    फ़ाइलात    मुफ़ाईलु      फ़ाइलुन

क़ाफ़िया--- अंधेरा दरिया किनारा सवेरा आदि.....

रदीफ़-------->  न  कर अभी

फ़िल्मी गीत 

1-हम ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए

2-शिकवा नहीं किसी से किसी से गिला नही

3-उनके ख्याल आये तो आते चले गये |

4- मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी-कभी


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तो दोस्तों शुरू हो जाइये बेहतरीन अश'आर कहने के लिए 

निवेदक 


जे. ए. के. आर्ट एण्ड कल्चर फ़ाउन्डेशन

[22:49, 04/04/2025] Ram Awadh Vishvkarma 2: साथियों

मैं आपको एक तरही मिसरा दे रहा हूँ इस पर लिखने की कोशिश करिये। जे ए के द्वारा दिया गया मिसरा हो सकता है आपको सूट न करे। तो मिसरा है

'भरी दोपहर में अँधेरा हुआ'

काफिया आ की मात्रा वाला है

जैसे झमेला ,सबेरा, बसेरा, धेला, फेरा, डेरा, तेरा, मेरा, अकेला, खेला, चेला, करेला ,आदि।

रदीफ- हुआ

बहर है-

फऊलुन  फऊलुन  फऊलुन  

फ 'अल

122   122   122  12


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अँधेरा हुआ है भरी दोपहर में'

पहले दिये मिसरे को ऐसा भी कर के ग़ज़ल कही जा सकती है।इसका काफिया होगा

डर, घर ,पर ,सर, उधर, सफर, शजर , जहर, आदि

रदीफ - में


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बहर है

फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन

122   122   122   122

बह्रे मुतकारिब मुसम्मन सालिम

यह सालिम बहर मतलब शुद्ध बहर है जिसमें एक ही रुक्न 

फऊलुन का प्रयोग किया गया है।इसमें कोई दूसरा रुक्न नहीं मिलाया गया है।  फऊलुन  मुतकारिब बहर का रुक्न है ।यह चूँकि यह  चार बार मिसरे में आया है इसलिए यह मुसम्मन कहलायेगा। इस प्रकार इसका नाम हुआ

बहरे मुतकारिब  मुसम्मन सालिम

Friday, April 4, 2025

Ghazal Lesson - RAV

 मित्रों नमस्कार

रदीफ काफिये के साथ चिपकी होनी चाहिये। मिसरे में अगर रदीफ अलग थलग लगे मतलब ऐसा लगे कि रदीफ जबरदस्ती चश्पा किया गया है तो रदीफ का वहां कोई औचित्य नहीं। रदीफ सार्थक है या नहीं इसका सरल पहचान है कि रदीफ को हटाने के बाद यदि शेष बचा अंश अपने आप में वाक्य पूर्ण हो रदीफ बेकार जबरदस्ती वहां फिट किया गया लगता है। उदाहरण के लिये -

आप जो हमसे दूर गये

दिल से हम मजबूर गये

आप न थे तो क्या थे हम

आपसे मिल मशहूर गये

स्पष्ट है रदीफ काफिये का प्रयोग नियमानुसार किया गया है परन्तु पहली पंक्ति में ही रदीफ चश्पा हुई है और बाकी में पंक्ति में नहीं। आप खुद सोचिए 

मजबूर गये, मशहूर गये में दोनों में मतलब मजबूर के साथ गये जोड़ने का और मशहूर के साथ गये जोड़ने का क्या मतलब निकलता है। क्या आपको नहीं लगता कि यह गये शब्द को जबरदस्ती ठूसा गया है।

इसको ऐसा करके देखें


आप जो हमसे दूर हुये

दिल से हम मजबूर हुये

आप न थे तो क्या थे हम

आपसे मिल मशहूर हुये

और दोनों में फर्क महसूस करें।

Tuesday, April 1, 2025

शहर और जंगल - प्लेटफॉर्म

शहर और जंगल  - प्लेटफॉर्म


वह जो प्लेटफॉर्म के अँधेरे कोने में 

बैठी है थकी हारी उदास  

हाँ , मैं जानता हूँ 

उस अबला का इतिहास 


जन्मभूमि  ही जिसकी हो प्लेटफॉर्म 

क्या बताऊँ उस अबला का नाम 

जाने कौन है बाप उसका 

जाने कौन महतारी है 

पर यक़ीनन 

वह हिन्दोस्तान की सम्माननीय  नारी है। 


प्लेटफॉर्म ही था उसका परिवार 

था वही उसका घर 

भीख माँग कर करती थी गुज़र 

फाँका करती थी प्लेटफॉर्म की धूल 

उसने कब जाना पाठशाला स्कूल 


बीत गया ऐसे ही बचपन उसका 

रीत गया ऐसे ही बचपन उसका 

एक रात अचानक 

भीख मानता बचपन जवान हो गया 

चंद लोगों के मनोरंजन का सामान हो गया 


बाल सँवारे काजल डाले 

जब चलती थी इठला कर वह 

लगा होठों पर लाली 

बजती थी कहीं सीटी , बजती थी कही ताली 

अल्हड बदमस्त जवानी थी उसकी 

फैली दूर तक कहानी थी उसकी 

छोड़ दिया था माँगना उसने भीख 

पैसा कमाने की कला गयी थी सीख 



Saturday, March 29, 2025

Πώς εισαι ;

 Καλώς ήρθατε στο κανάλι μου! Καλώς ήρθατε σε ένα ακόμα #short μάθημα!

1. Μια χαρά (I 'm fine/great) 2. Καλά (good) 3. Πολύ καλά (very good) 4. Έτσι κι έτσι (so-so) 5. Όχι και τόσο καλά (not so good) 6. Χάλια (I 'm bad/ awful) 7. Τα ίδια (the same) 👉 Εσύ, πώς είσαι σήμερα; Γράψε ✍️ στα σχόλια 💬. Περιμένω!😊

Friday, March 28, 2025

Ghazal Lesson _ रदीफ़ के दोष

 रदीफ़ के दोष


1. रदीफ़ का हर्फ़ बदलना- रदीफ के बारे में  स्पष्ट है कि ग़ज़ल में हम रदीफ को या इसके किसी अंश को नहीं बदल  सकते ।

उदाहरण के लिये


झूठ का वो रो गया 

और सच्चा हो गया 

मेरे सब सच झूठ की 

वादियों में खो गये

यहां रदीफ़ है- गया

लेकिन आगे रदीफ बदलकर गये कर दिया जोकि ग़लत है।


2. तहलीली रदीफ-शेर में ऐसे शब्द का प्रयोग करना जिसमे काफिया और रदीफ योजित हो जाएँ और दोनों का पालन हो जाए ऐस रदीफ को तहलीली रदीफ कहते हैं।


उदाहरण-


सब से मिलता है जो रोकर 

रह न जाए खुद का हो कर


ले मजा आवारगी का 

मंजिलों को मार ठोकर


मत्ला के अनुसार रो, हो काफिया है और कर रदीफ है मगर दूसरे शेर में ठोकर शब्द में काफिया और रदीफ संयोजित हो कर प्रयोग हुए हैं अर्थात् रदीफ काफिया के साथ चस्पा हो गई है, इसे तहलीली रदीफ कहते हैं।


(अरूज की कई किताबों में तहलीली रदीफ को दोष माना गया है मगर इस विषय में कुछ मतभेद हैं क्योंकि तहलीली रदीफ को कुछ अरूज़ियों ने दोष न मान कर गुण माना है कि इस प्रयोग में काव्य क्षमता का प्रदर्शन होता है इसलिये इसे दोष मानना उचित भी नहीं है।)


3. रब्त न होना-जब शे'र में रदीफ का कोई अर्थ नहीं निकल पाए अथवा रदीफ़ का शब्द बेवजह ठूँसा गया मालूम पड़ता है तो इससे शेर में हल्कापन आ जाता है, इसे जानने का सबसे सरल उपाय यह है कि रदीफ़ को हटा कर देखा जाए, अगर वाक्य विन्यास पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है तो रदीफ भर्ती की मानी जायेगी।


उदाहरण-


आप जो हमसे दूर गए 

दिल से हम मजबूर गए 

आप न थे तो क्या थे हम 

आपसे मिल मशहूर गए


स्पष्ट है कि रदीफ़-कुवाफ़ी का प्रयोग नियमानुसार किया गया है, परन्तु पहली पंक्ति में ही रदीफ़ चस्पा हुई है बाकी में नहीं। मशहूर गये का कोई मतलब नहीं निकल रहा है।

इसको ऐसा कर सकते हैं


आप जो हमसे दूर हुए 

दिल से हम मजबूर हुए 

आप न थे तो क्या थे हम 

आपसे मिल मशहूर हुए


4. तकाबुले रदीफ-यदि गजल में मतला और हुस्ने मत्ला के अतिरिक्त किसी शेर (जिसके मिसरा-ए-ऊला में रदीफ नहीं होता है) से रदीफ का तुकांत अंश आ जाता है तो इसे रदीफ का दोष तकाबुले रदीफ कहा जाता है।


इसका कारण यह है कि शेर अपने आप में स्वतंत्र होते हैं और शाइर कहीं केवल एक शेर भी पढ़ सकता है अथवा कोट कर सकता है। इसे अधूरी रचना नहीं कहा जा सकता और तकाबुले रदीफ दोष होने पर कुछ भ्रम उत्पन्न हो जाते हैं।


स्वतन्त्र रूप से पढ़ने पर तकाबुले रदीफ़ दोषयुक्त शेर को पढ़ने वाले पाठक को उस शे'र के मत्ला होने का भ्रम होता है इस कारण ही इसे दोष माना जाता है। आइये जाने कि यह कैसे होता है।


उदाहरण-1


ये खुद तो जान गया हूँ कि क्या हुआ है मुझे 

तुझे ये कैसे बताऊँ तेरा नशा है मुझे-    मत्ला


वो हर्फ-हर्फ मुझे याद कर चुका है भले

 मुझे पता है कहाँ तक समझ सका है मुझे-शे'र


यदि हम मत्ला सहित इस दूसरे शे'र को पढ़ते हैं तो यह स्पष्ट कि दूसरे शेर में तकाबुले रदीफ़ का दोष है क्योंकि दूसरे शेर के मिसरा ए ऊला में काफ़िया का उपयोग नहीं हुआ है और हमें पता है कि काफिया लिया गया है-हुआ, नशा, सका अर्थात् 'आ' कि मात्रा और इन 

अशआर  में रदीफ "है मुझे" को सही ढंग से निभाया गया है।


परन्तु यदि हमें मत्ला न पढ़ने को मिले केवल दूसरा शेर पढ़ने मिले तब ?

भले और मुझे दोनों किसी शेर के स्वर काफिया जैसे लगते हैं और यह भ्रम पैदा करता है कि मतला में तो आ की मात्रा का काफिया है लेकिन आगे के शेर में क़ाफिया ही बदल गया।

इसलिये मतला को छोड़कर किसी अन्य शेर के ऊला मिसरा में रदीफ या उसका कोई अंश भले ही वह अंतिम शब्द की मात्रा ही, हो नहीं आनी चाहिये।