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Adbiyatra
Friday, December 26, 2025
Tuesday, December 23, 2025
लघुकथा _घूंघट
घूंघट
ग्राम पंचायत द्वारा आयोजित " महिला सशक्तिकरण " कार्यक्रम में ग्रामीण महिलाओं को मंत्री जी द्वारा सम्मानित किया जा रहा था। एक फुट का घूंघट डाले महिला को मोमेंटो देते हुए मंत्री जी ने न जाने किस अधिकार से महिला का घूंघट उठाते हुए कहा , " अरे , इस घूँघट को हटाओ , इसका ज़माना चला गया अब। मर्दों की बराबरी करनी है , उनके कंधे से कन्धा मिला कर समाज में आगे बढ़ना है तो घूंघट हटाना ही होगा। "
महिला सकुचाते हुए शरमा कर रह गयी क्योंकि समाज में आगे बढ़ने की बात तो वो समझ गयी थी लेकिन यह न समझ पाई कि उसका घूँघट किस्तों में क्यों हटा और मंत्री जी के हाथ इतने खुरदरे क्यों थे ?
इन्दुकांत आंगिरस
Threat to Me
[11:01 AM, 12/24/2025] Sahib Hussain: Aap jaise ghatiya mansikata wale log ki wajah se hi Nafrat fail rahi hai.
[11:42 AM, 12/24/2025] angirasik: https://www.youtube.com/watch?v=1FfaMYS9nFE
[11:43 AM, 12/24/2025] angirasik: Mein to support kar raha hu
[11:47 AM, 12/24/2025] Sahib Hussain: Ha maine bhi dekha tha ye news.
Mera bhi khoon khula tha.
Mai bhi chahta hu usko fansi ki saja ho.
Lekin iske liye sari community ko taunt marna kaha tak jayaj hai.
Aise hi hazaro news dikha dunga jisme koi bap beti ko mar deta hai kisi ladke se bat karne k shaq me.
Ghunghat na karne ki wajah se bhi kitne murder hue hai.
Iska ye Matlab thodi hai na ki sari community ko taunt mara jaye
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Sunday, December 21, 2025
लघुकथा _ बुरका
बुरका
औरत ने घबराई आवाज़ में दुकानदार से कहा , " भाईजान , मेरे साइज के 2 बुरके दे दीजिए। "
- " अरे , आपाजान आप ! आपने बुरका पहनना कब से शुरू कर दिया ? आप तो पढ़ी - लिखी खुले विचारों वाली पत्रकार है , तो फिर आज ऐसा क्या हो गया कि अचानक बुरका याद आ गया ? " दुकानदार ने हैरानी से पूछा।
- " भाईजान , लगता है आपने आज का अख़बार नहीं पढ़ा , हमारे ही मोहल्ले में एक आदमी ने अपनी बीवी का सिर्फ इसलिए क़त्ल कर दिया कि वो बिना बुरका पहने अपने मायके चली गयी थी। वैसे मेरे शौहर तो पढ़े - लिखे खुले विचारों के है लेकिन कौन जाने कब किसका दिमाग़ सनक जाये ......बस मुझे आप जल्दी से बुरके दे दीजिए " औरत एक साँस में कह गयी।
औरत की आँखों में चमकता ख़ौफ़ देखकर दुकानदार ने जल्दी से 2 बुरके उसको दे दिए। औरत ने वही दुकान पर बुरका ओढ़ा और बुदबुदाते हुए दुकान से निकल गयी , " जान है तो जहान है प्यारे , आख़िर बुरका ओढ़ने में क्या जाता है। "
- इन्दुकांत आंगिरस
Environment Book
Pavitra Mitra
[6:31 PM, 12/21/2025] Pavitra Mitra: एकदम सही। पुस्तक का मूल्य मोटा-मोटी बता दें।
[6:33 PM, 12/21/2025] Pavitra Mitra: वैसे ई पुस्तक व प्रमाण पत्र सभी प्रतियोगियों को अवश्य प्रेषित कर दें।हमारे पटल पर डाल दीजिए।
[7:15 PM, 12/21/2025] angirasik: आपका पटल कौन सा है ? आप फॉरवर्ड कर दीजिये। पुस्तक का दाम अभी बताना संभव नहीं है , हां इतना ज़रूर है कि ५००/ के अंदर ही होगा। जी , इ - सर्टिफिकेट सभी को दिया जायेगा।
[7:15 PM, 12/21/2025] angirasik: Please send your poem/ stories etc
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Saturday, December 20, 2025
Ravindran
क़लम
पकड़ो जी , क़लम पकड़ों !
बन्दूक नहीं , क़लम पकड़ों !
और देश का दरिद्दर मिटा दो !
लड़ो एक बूँद पानी के लिए
लड़ो जीवन की रवानी के लिए
लड़ना है जी लड़ना है
बिन बन्दूक लड़ना है।
जिसे धर्म बोला जा रहा वो अधर्म है
जिसे न्याय बोला जा रहा वो अन्याय है
जिसे तुमसे छीन रहे वो तुम्हारा हक़ है
लड़ो , अपने हक़ के लिए लड़ो।
पकड़ो क़लम अपने देश के लिए
पकड़ो क़लम अपने भविष्य के लिए
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बिटिया का वरदान
मैं उस नाव से क्या पूँछू
शायद दरिया पार करा दे
जीवन आज भी है उसके हाथ
कब मिलेगा क़िस्मत का साथ
जन्म लिया जब बिटिया ने
चेहरा सबका मुरझाया था
सबने मारे ताने माँ पर , वंश चलाने
बेटा जो ना आया था
दर्द सहना हमने बचपन से सीखा है
सलूक हमसे किया जानवर जैसा है
घर के बाहर हर आँख शिकारी है
हमारे बोझ से घर भी होता भारी है
हे देव ! तेरे इस संसार में
मुझे न मिली ख़ुशी कभी भी
बस पीड़ा ही मिली हर घडी
मेरा जीना और मरना भी
चन्द लोगो के हाथों में
जिन लोगों के लिए मैंने
सब कुछ कर दिया बलिदान
उन्हीं लोगों ने मुझे लूट कर
ख़ूब करा हैरान
मैं बढ़ी थी सच की राह
सोचा था सबका भला करुँगी
क्या सोचा था और क्या हुआ
लोगों ने मेरी सीरत से ज़्यादा
मेरे तन का नापतोल किया
मेरी हर आवाज़ को दबाया जाता है
पसंदीदा कपड़ें पहनूँ तो बेशर्म बताया जाता है
लड़ती हूँ जब भी अपने हक़ के बारे में
मेरी हर कोशिश को दबाया जाता है
हे देव ! तेरी माया अपरम्पार है
लेकिन हुई तुझसे ग़लती इस बार है
तेरे भेजे इंसान बन गए जानवर हैं
हे देव ! मैं कहाँ जाऊँ इस धरती पर ?
जिस धरती पर तूने मुझे जन्म दिया
उस धरती पर रात में निकलना पाप है
कि वो ज़िंदगी की आख़िरी रात होगी
बलात्कारी मर्द फिर बच जायेगा
और लोग बोलेंगे , " क्या कपडे पहनी थी वो ?
लड़की की ही ग़लती होगी ,
अब कौन शादी करेग उससे
रात में कहाँ घूम रही थी वो ? "
मुझसे कोई न पूछेगा हाल मेरा
कर दिया किसने बेहाल मुझको
कितनी पीड़ा सहनी मुझको ?
हे देव ! तेरे इस लोक में गर सिर्फ मर्द जी सकते हैं
तो हाथ जोड़ करती हूँ निवेदन इतना
या तो लड़कियों को इस लोक से निकाल दे
या नए जग का निर्माण कर , उन्हें सम्मान दे
या दुनिया के मर्दों को करदे नेस्तनाबूद
गर नहीं तो मुझे अगले जन्म में
लड़का बनने का वरदान दे।
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Friday, December 19, 2025
लघुकथा _ हिजाब
हिजाब
घर से अस्पताल के लिए निकलती नई नई डॉ साहिबा को उनके अब्बू ने मशवरा दिया "बेटी ! अस्पताल में कई तरह के बीमार आते हैं , उन्हें तरह तरह का इन्फेक्शन होता है , मॉस्क लगाकर ही मरीजों को देखना। "
डॉ साहिबा ने तपाक से जवाब दिया , " अरे अब्बू , मुझे मॉस्क की क्या ज़रूरत है ;मेरे पास तो हिजाब है और फिर नक़ाब भी तो है , यानी डबल सेफ्टी ... "।
अब्बू ने चैन की साँस ली और डॉ साहिबा हिजाब , नक़ाब और बुर्क़ा पहन कर अस्पताल के लिए निकल पड़ी।