लघुकथा - मोमेंटो
लेखक के घर में क़दम रखते ही पत्रकार को इस बात का एहसास हो गया कि लेखक सिर्फ लेखक नहीं बल्कि एक बड़े लेखक हैं। पूरे ड्राइंग रूम में मोमेन्टोस सजे हुए थे, यहाँ तक कि दीवारें भी मोमेन्टोस से ढकी पड़ी थी। साक्षात्कार के दौरान पत्रकार ने बड़े सम्मान से सम्मान के बारे में प्रश्न उछाला " देख रहा हूँ कि आपका ड्राइंग रूम मोमेन्टोस से भरा हुआ है , क्या किसी लेखक का मुकाम उसके मोमेन्टोस की संख्या से आँका जा सकता है ?
" यक़ीनन , जिसको जितने अधिक सम्मान मिलेंगे , जितने मोमेन्टोस मिलेंगे , वो उतना बड़ा लेखक होगा। " - बड़े लेखक ने दृढ़ता से जवाब दिया।
-" शायद आपको मालूम हो कि नसीरुद्दीन शाह ने इस तरह के सम्मानों और मोमेन्टोस को आयोजित - प्रायोजित की श्रेणी में रखा है और उन्होंने अपने तमाम मोमेन्टोस अपने फार्म हाउस के दरवाज़ों पर हैंडल बना कर लगा दिए हैं। इसके बारे में आपका क्या विचार है ? "
- " जी , सुना था मैंने भी , शायद उस समय नसीरुद्दीन शाह के पास पैसो की कमी रही होगी सो उन्होंने अपने मोमेन्टोस को दरवाज़ों पर जड़वा दिया , लेकिन मेरे पास पैसो की कोई कमी नहीं है। "
बड़े लेखक का जवाब सुन कर पत्रकार चाह कर भी लेखक के सामने ठहाका तो नहीं लगा सका लेकिन उसके होंटो पर एक लम्बी मुस्कान तो खिल ही गयी थी।
- इन्दुकांत आंगिरस
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