Sunday, December 10, 2023

लघुकथा - प्रजातंत्र

 प्रजातंत्र

प्रजातंत्र एक ऐसी प्रणाली होती  है जिसमें नेता लूटते हैं प्रजा को और प्रजा स्वयं को लुट जाने देती हैं। चुनाव के समय नेता चाँद देने का वायदा करते हैं लेकिन प्रजा को रोटी भी नहीं मिलती। प्रजा के टूटे सपनों की ईंटों पर नेताओं के महलों की बुनियाद पड़ती है। नेताओं के भाषण मीडिया पर चहकने लगते हैं और आम आदमी की आवाज़ उन भाषणों के शोर  में खो जाती है। प्रजातंत्र का शिक्षक शिक्षा की ख़रीद - फ़रोख़्त करने से नहीं चूकता , फिर भी प्रजातंत्र उससे नहीं रूठता। जहाँ बोलने की आज़ादी का मतलब गला फाड़ कर चिल्लाना,जहाँ ईमानदारी का मतलब अपने अलावा सबको बेईमान समझना ,जहाँ साहूकारी  का मतलब है नाप तोल कर  लूटना।  प्रजातंत्र एक ऐसी जादूनगरी होती हैं जिसमें रहने वाले बापू के तीन बन्दर भी बरगला उठते  हैं हैं, यानी गूंगे , बहरे और अंधे बन जाओ और प्रजातंत्र का जश्न मनाओ । 

मैं ऐसी ही एक जादूनगरी में रहता हूँ , और आप ? आप कहाँ रहते हैं ?




लेखक - इन्दुकांत  आंगिरस 


No comments:

Post a Comment