Thursday, August 31, 2023

प्रेम - प्रसंग/ 2 - वो शाम अब तक है याद मुझे


 वो शाम...


 वो शाम अब तक है याद मुझे 

वो लम्हें अब तक हैं याद मुझे 

गुज़ारे थे जो तुम्हारे  साथ ,

नहीं था तुम्हारे हाथ में मेरा हाथ 

न ही तुम्हारी बाँहें थी मेरे गले में 

लेकिन प्रेम भरी साँसें  

घुल गयी थी फ़िज़ा में  

हर सम्त बिखरी थी तुम्हारी खुश्बू

उस खुशबू में डूब गया था 

हमारा चंद लम्हों का सफ़र

काश , हाँ काश 

कभी ख़त्म न होता ये सफ़र ,

मुझे यक़ीन नहीं होता 

शायद तुम्हें भी न हो 

हम बिछड़ कर भी बिछड़े नहीं 

और मेरी रूह अभी तक 

उस सफ़र में है,

क्या इस सफ़र में तुम  

अभी तक मेरे साथ हो ?  



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

   

गीत - सावन की रतियों में , मत जा रे बलम छोड़ के

 सावन की रतियों में , मत जा रे बलम छोड़ के 


तोरण से मैं द्वार सजाऊँ 

चन्दन बंदन हार बनाऊँ

बिरहन सी सूनी आँखों में

तारों के मैं दीप जलाऊँ


सावन की रतियों में , मत जा रे नयन मोड़ के 


तोड़ के सारे बंधन आ जा 

प्रेम को भी चन्दन कर जा 

सूने प्राणों में रंग भर कर 

मुझको फाल्गुन कर जा  


सावन की रतियों में , मत जा रे कसम तोड़ के 


बैरन रतिया मोह तड़पाए 

आहट पे हर दिल घबराए

साथ हमारा जन्मों का यूँ 

कान्हा के सँग राधा गाए 


सावन की रतियों में , मत जा रे भरम तोड़ के 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

 

Friday, August 18, 2023

प्रेम - प्रसंग/ 2 - अहसास

 अहसास 


जब से दूर गई है 

चाँदनी तेरे प्यार  की 

तन्हाई का अहसास 

पल पल डसने लगा है मुझे  

इस कदर डूब गया हूँ 

तन्हाई के अहसास में 

कि ख़ुद अपनी ही 

हालत से बेख़बर  हूँ मैं   

कभी क़तरा तेरे प्यार  का 

कभी समुन्दर हूँ मैं 

शीशा शीशा मेरा अहसास 

पत्थरों के शहर में 

मेरे भीतर का अहसास 

पत्थर न हो जाये कही 

मंज़िल हमारी मुहब्बत की

एक सफ़र न हो जाये कही 

हमारे प्यार का अहसास 

मर न जाये कही , कोई 

मौत से पहले  

गुज़र न जाये कही,

तारों भरी रात कहाँ 

वो तेरे - मेरे प्यार के 

गुज़रे  हुए  लम्हात कहाँ

सूनी हो  गयी ये दुनिया 

बिन तुम्हारे , बस 

इक अहसास है अहसास के लिए 

इक साज़ है आवाज़ के लिए।  

   







Tuesday, August 15, 2023

लघुकथा - कवि - सम्मलेन

 लघुकथा - कवि - सम्मलेन


साहित्यिक संस्था ने स्वाधीनता दिवस के उपलक्ष पर कवि - सम्मलेन का आयोजन किया। कवि - सम्मेलन में कवियों को आमंत्रित करने की सूची तैयार की जाने लगी।  संस्था के महासचिव ने कवियों की सूची तैयार कर अध्यक्ष की मेज़ पर रख दी। सूची पर नज़र पड़ते ही अध्यक्ष महोदय ने कहा - ये " फ़िराक सुल्तानपुरी " कौन है ?

-"  जी , बहुत बढ़िया शाइर है और हिंदू ही है।  " महासचिव ने अध्यक्ष का आशय समझते हुए कहा। 

- " होंगे हिंदू , लेकिन नाम तो मुस्लिम ही है , हटाओ इनका नाम।  इनकी जगह माधुरी मिश्रा को आमंत्रित करो। "

- "  लेकिन माधुरी मिश्रा की ग़ज़लें तो बहर में भी नहीं होती।  " - महासचिव ने हिचकते हुए कहा 

- "  अरे , बहर में नहीं लिखती तो क्या हुआ , गाती तो अच्छा है और है भी छम्मक - छल्लो।  उसी को बुलाओ " - अध्यक्ष ने निर्णायक स्वर में कहा। 

- " जी जनाब "  - कह कर महासचिव ने आंमंत्रित कवियों की सूची में  ' फ़िराक़ सुल्तानपुरी ' का नाम काट कर माधुरी मिश्रा का नाम लिख दिया। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस  

गीत - जान लगा देंगे बाज़ी पे देश नहीं बँटने देंगे

 गीत 


जान लगा देंगे बाज़ी पे देश नहीं  बँटने देंगे 

अपने ही हाथो से अपने हाथ नहीं कटने देंगे 


पहले भी प्यारा था हम को ,आज भी हम को प्यारा है 

इंडिया कह लो , भारत कह लो हिन्दोस्तान हमारा है 

Monday, August 14, 2023

वसंत का ठहाका - सपनों की गठरी

 वसंत का ठहाका - सपनों की गठरी 


जब यह दुनिया 

गहरी नींद में 

सो जाती है 

तब मैं यकायक 

सकपका कर 

उठ बैठता हूँ 

और 

मलने लगता हूँ 

अपनी अधखुली आँखें ,

आँखें , जिनमें रोज़ उतरते हैं 

खिले - अधखिले सपने 

सपने , जिनका 

अपना कोई सफ़र नहीं होता 

जिनका अपना कोई घर नहीं होता 

ग़रीबों की दवा के सपने 

ग़ैरों की दुआ के सपने 

सपने , जिनके दिल तो होते हैं 

लेकिन पंख नहीं 

सपने , जो मेरी पीठ पर सवार हो कर 

करना चाहते हैं दुनिया की सैर 

जाने - अनजाने 

सपनों की गठरी  ढ़ोते ढ़ोते

मैं थक जाता हूँ 

और सपनों की गठरी 

अपनी पीठ से उतार 

ठोस ज़मीन पर धर जाता हूँ ,

तेज़ हवा , आंधी से 

चंद मिनटों में ही 

सब सपने इधर -उधर  बिखर जाते हैं 

और मेरी पीठ पर रह जाते हैं 

भारी - भरकम सपनों के निशान

तुम इन बदरंग निशानों पर 

बस अपने अधर रख देना 

और 

आने वाली सदियों को ख़बर कर देना 

कि सपने लेना हैं जितना सुखद 

सपने ढोना हैं उतना ही  दुखद 

लेकिन मैं फिर भी ख़ुश हूँ 

मुझे यक़ीन है कि एक दिन 

मेरे सपनों की गठरी 

पंख लगा कर उड़ जाएगी 

मैं ख़ुश हूँ कि मुझे नहीं तो 

कम से कम मेरी पीठ पर अंकित 

अधूरे सपनों के निशानों को 

उनकी पहचान मिल जाएगी 

मुझे यक़ीन है कि ये दुनिया 

एक दिन ज़रूर   

सूरज की किरणों के मानिंद मुस्कुराएगी 

और आने वाली सदियों के नाम 

सपनों का अंतहीन तराना गुनगुनाएगी  । 



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

   

Sunday, August 13, 2023

लघुकथा - दोस्ती

 दोस्ती 


पति के कवि मित्र घर से जाने  लगे तो पति उन्हें गले लगा कर बोले - " आते रहना रामकुमार भाई , इसे अपना  ही घर समझना। कभी भी संकोच मत करना। " रामकुमार ने मुस्कुराते हुए विदा ली । 

रामकुमार के जाने के बाद परेशान  पत्नी ने पति से पूछा  -" आप तो कहते थे कि रामकुमार ने साहित्य के क्षेत्र में आपकी काफी टांग खींची है और इसके लिए आप उसे बर्बाद कर देंगे लेकिन आप तो उसे गले लगा कर दोस्ती का परचम फहरा रहे हैं।  आख़िर ये माज़रा क्या  है ?

पति ने मुस्कुराते  हुए कहा -" तुम बहुत भोली हो जानेमन , दुश्मनी निकालने  के लिए दुश्मन बनना ज़रूरी नहीं है, बल्कि  यूँ समझो कि दोस्त बन कर दुश्मन को ज़्यादा  बर्बाद किया  जा  सकता  है। 

पत्नी हैरानी में दोस्ती और दुश्मनी के इस नए आयाम समझने की कोशिश करने लगी । 


लेखक   - इन्दुकांत आंगिरस          

Thursday, August 10, 2023

लघुकथा - भोर के ठहाके

  भोर के ठहाके 


सूरज की पहली किरण पड़ते ही बाग़ की  कलियाँ खिल उठी और फूल मुस्कुरा उठें। ओस की बूँदें अभी तक कलियों के होंठों पर और फूलो के सीनों पर मचल रही थी। ओस की बूँदें धीरे धीरे किरणों में घुल - मिल रही थी और आकाश में सुबह का तारा धुंधलाता जा रहा था।  फ़ज़ा में फूलों की ख़ुश्बू बिखरी हुई थी। रंग - बिरंगी  तितलियाँ फूलों पर पल भर को बैठती फिर हवा में उड़  जाती।  तभी बाग़ में इंसान ने अपने क़दम पसारे। 

 घास को अपने पैरो से रौंदते हुए कुछ उंगलियाँ भी फूलों को तोड़ने लगी। अब ये फूल या तो ईश्वर पर चढ़ाये जायेंगे या फिर किसी सुंदरी  की ज़ुल्फ़ों में  गजरा बन कर महकेंगे। घास का बदन लहूलुहान था और फूल बिलख बिलख कर रो रहे थे लेकिन उस लाफ्टर क्लब के ठहाकों में घास और फूलों का आर्तनाद किसको सुनाई पड़ता। बस ठहाके  तेज़ होते गए थे...ऊँचे ...और  ऊँचे ....शायद आसमान तक ........। 



लेखक - इन्दुकांत आंगिरस