Tuesday, September 27, 2022

हंगेरियन गद्य का हिन्दी अनुवाद

 


(  पुराने काग़ज़ों में मिल गया अचानक हंगेरियन गद्य का यह आंशिक अनुवाद , क़लमबद्ध कर दिया है अब , आप भी लुत्फ़ उठायें। )


और तब उसने सिर्फ एक बार एक नए अध्याय की तरह अपने पिता को एक पृथक वस्तु के रूप में देखा था , एक शरीर , एक विशिष्ट कोशिकाओं की इमारत " नी द गिवसेन्ट " वह रचना , एक असम्भावी रचना , एक ऐसे चमत्कार की तरह थी , जिसकी मिसाल कही नहीं मिलती , न ही इस ज़मीन पर न ही चाँद पर और न ही स्वर्ग में।  उसने अपने पिता का एक  सिलसिलेवार तरीके से मुआयना शुरू किया , सिर से पैर  तक उसके व्यक्तित्व के हर पहलू को ग़ौर से देखा , पहले सिर के बालों को अलग से और बाद में उनकी लटों को जोकि पुरानी तस्वीरों की लटों से मिलती - जुलती थी।  हर आने वाली याद का सम्बन्ध दूसरी याद से जुड़ता गया , उनकी वह चाल , हज़ार बनावटों वाला चेहरा और यादें गहराती गयी , बचपन के क़िस्से , स्टेशन , अलविदा , मौजमस्ती , उनके गाल की हड्डी की हरकत और इस तरह पिता की अनगिनत तस्वीरें उभरती गयी।  ( ३१७ )


मेरे पिता पिछले दस साल से अपने सबसे बड़े पुत्र से पूछते रहे थे कि अगर उनके चेहरे पर बुढ़ापे की लकीरे उभरे तो वह उन्हें बताएगा। पुत्र ने भीगी आँखों से वा 'दा किया था।  लेकिन जब उसके पिता बुजुर्ग होने लगे थे तो उसने एक गँवार मूर्खता और अक्खड़पन से तीन बार अपने पिता को बताया था और उसके पिता ने उसे बुरी तरह अपमानित कर दिया था, वह समझ गया था कि इस बारे में अब वह कभी नहीं बोलेगा।  अब कभी नहीं। अगर बताना ज़रूरी होगा तब भी नहीं , हाँ , बस तभी बताएगा जब ज़रूरी न हो।  ( २०० )


मेरे पिता बुजुर्ग हो गए थे लेकिन अब भी वे अपनी उम्र से छोटे लगते थे , सबसे छोटे लड़के से भी छोटे यक़ीन मानिए जोकि सबसे लम्बी लड़की से भी लम्बा था। अब अपनी दाढ़ी बहुत कम बनाते थे और उनके होंठो पर चकत्ते उभर आये थे जिसके बारे में उनका कहना था कि  वो ज़ायकेदार खाने की वज्ह से हैं। लेकिन यह सच नहीं ( कि हमेशा ज़ायकेदार खाना इसकी वज्ह हो ) उनकी एक नई प्रेमिका है जोकि पेशे से गणितज्ञ है....।  ( २०१ )


मेरे पिता बुजुर्ग हो गए थे लेकिन पहले से भी अधिक सिकुड़ गए थे , लेकिन अब इसमें मेरी दिलचस्पी नहीं , वह ख़ुद नहीं समझ पाते थे कि क्या बोल रहे है , बस बुदबुदाते रहते थे , लेकिन अब यह सब बेमानी है , अचानक सम्पूर्ण वाक्य बोलना शुरू कर देते थे - कर्त्ता , विधेय , पूरक ...जोकि अपनी ज़िंदगी में वो कभी नहीं बने , बस हमेशा शब्दों कि छुरी मारी , यक़ीनन दिलचस्प रस्में, दिलचस्प चतुराई , लेकिन अब सब बेकार है , बल्कि एक पंछी की तरह उनका वज़न कम हो गया , साढ़े तिरासी ( ८३.५ ) किलो ...नहीं ...अस्सी  ( ८० ) किलो ...नहीं साठ ( ६० ) किलो भी नहीं बल्कि कपडे , जूते और चश्मे के साथ सिर्फ बावन ( ५२ ) किलो ..।  ( २०२ )



मूल लेखक - Péter Esterházy

जन्म -  14 April 1950, Budapest, Hungary

निधन -  14 July 2016, Budapest, Hungary



अनुवाद - इन्दुकांत आंगिरस 



NOTE : सं २०११ में हंगेरियन ट्रांसलेशन हाउस द्वारा बुदापैश्त   में  आयोजित अनुवाद की एक वर्कशॉप में उनसे रू ब रू होने का सौभाग्य मिला था।





1 comment:

  1. इतनी सहज भाषा है कि लगता ही नहीं अनुवाद है।

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