सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
छायावाद के प्रमुख कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म बंगाल के मेदनीपुर गाँव में हुआ था और उनका निधन इलाहबाद में हुआ था।
"वह तोड़ती पत्थर - इलाहबाद के पथ पर " , जैसी कवितायेँ लिखने वाले निराला ग़रीब और मज़दूरों की पीड़ा को अपने भीतर महसूस करते थे। सामजिक सरोकारों पर कविताएँ लिखने वाले निराला जितने बड़े कवि थे , उससे बड़े एक इंसान थे। दूसरों के दुःख से द्रवित हो जाते और अक्सर अपनी निजी वस्तुएं ग़रीब लोगो को बाँट देते। उन्होंने कभी किसी सम्मान की चाह नहीं करी। उनका सम्पूर्ण जीवन अभावों में गुज़रा। बचपन में ही माँ की मृत्य , युवा अवस्था में पिता और बाद में पत्नी व पुत्री की अकाल मृत्यु ने उन्हें तोड़ कर रख दिया था।
"दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही"
यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपने बचपन से ही निराला साहित्य पढ़ने का अवसर मिला क्योंकि मेरे पिता कीर्तिशेष डॉ रमेश कुमार आंगिरस ने " निराला काव्य का मनोवैज्ञानिक अध्ययन " विषय पर Phd करी थी और निराला से सम्बंधित बहुत सी पुस्तकें घर पर ही उपलब्ध थी।
कम उम्र में बहुत सी क्लिष्ट कवितायेँ समझ नहीं आती थी लेकिन उनको बार बार पढ़ने का आनंद मिलता ही रहता था। बहुत सी कवितायेँ तो कंठस्थ हो गयी थी और उन कविताओं को पढ़ कर या गुनगुना कर आत्मिक आनंद अनुभव करता था।
एक बार JNU में प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह के घर पर जाने का अवसर मिला। उनकी बैठक में महाप्राण निराला की एक श्वेत -श्याम तस्वीर दीवार पर टँगी थी। इसी से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कितने लोकप्रिय कवि थे। निराला पर अनेक लेखकों ने शोध ग्रन्थ लिखे , बल्कि यूँ समझिये कि निराला पर पुस्तक लिख कर लेखक अपने आप को स्थापित करना चाहता है।
निराला की कालजयी रचनाएँ - " राम की शक्ति पूजा " और " सरोज स्मृति " आज भी अपने आप में बेमिसाल है।
वसंत पर अनेक कवियों की रचनाएँ हैं लेकिन वसंत पर लिखी निराला की कवितायेँ अद्भुत हैं। बानगी के रूप में चंद पंक्तियाँ देखें
सखि वसन्त आया
भरा हर्ष वन के मन
नवोत्कर्ष छाया
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
मधुप-वृन्द बन्दी
पिक-स्वर नभ सरसाया।
निराला की मातृभाषा बांग्ला थी और हिन्दी उन्होंने "सरस्वती" पत्रिका से सीखी। हिन्दी सीखने के बाद उन्होंने हिन्दी साहित्य को बेमिसाल रचनाएँ दी जिसके लिए हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य सदा उनका आभारी रहेगा। वास्तव में उन्होंने हिन्दी को बहुत कुछ दिया लेकिन हिन्दी ने उन्हें कुछ नहीं , हिंदी आज भी उनकी ऋणी है और हमेशा रहेगी। एक बार महात्मा गांधी ने एक वक्तव्य में यह कह दिया कि हिन्दी में आज तक कोई टैगोर पैदा नहीं हुआ। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप निराला ने गांधी से सीधा प्रश्न पूछा कि क्या उन्होंने निराला को पढ़ा है , अगर नहीं तो वे ऐसा वक्तव्य कैसे दे सकते है।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला अत्यंत स्वाभिमानी और फक्कड़ किस्म के साहित्यकार थे। उन्होंने स्वयं कभी अपना प्रचार नहीं किया। उनका मानना था कि गिर कर कभी कुछ न उठाए फिर चाहे वो कविता ही क्यों न हो। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व आज भी करोड़ो पाठको को अभिभूत करता है। वास्तव में उन जैसे सरस्वती पुत्र ईश्वर की देन ही होते हैं। पुरानी कहावत है कि साधु-संतो की संगत से हमारी आत्मा परिष्कृत होती है। निराला भी एक ऐसे ही साधु , संत , कवि और फ़क़ीर थे जिनकी संगत से मन पुलकित हो उठता था। वे सभी लोग बहुत ख़ुशनसीब हैं या रहे होंगे जिन्हें निराला के साथ उठने -बैठने का अवसर मिला। वास्तव में निराला की आत्मा के वसंत की ख़ुश्बू आज भी उतनी ही तरो - ताज़ा है जितनी उनके जीवन काल में थी और ये ख़ुश्बू आपको उनकी कविताओं और रचनाओं में मिल जाएगी। अगर आप ने आज तक निराला को नहीं पढ़ा है तो ज़रूर पढ़े क्योंकि उनकी रचनाएँ आपकी आत्मा में सोये वसंत को जगा सकती है।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
सारगर्भित चित्रण! यूं तो निराला जी की प्रत्येक रचना अत्यंत प्रभावी है, मुझे उनकी कृति विप्लव राग ४० वर्ष से पूर्ण कंठस्थ है। उनकी अद्भुत लेखनी को कोटिशः प्रणाम!
ReplyDeleteज्ञानवर्धक होने के साथ साथ मर्म स्पर्शी आल8।
ReplyDeleteआलेख
ReplyDeleteसुंदर आलेख। बधाई
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