Tuesday, May 3, 2022

लघुकथा - दिल्ली मेट्रो का सफ़र

दिल्ली मेट्रो का सफ़र



 दिल्ली मेट्रो का ऐसा ही एक प्रेम भरा सफ़र मेरे ज़ेहन में ताज़ा हो गया। आप भी लुत्फ़ उठायें इसका। 

मेरे क़रीब बैठी थी एक जवान माँ और उसकी गोद में उसका  शिशु। दोनों ही निढाल लग रहे थें। तभी अगले स्टेशन पर एक युवा प्रेमी युगल हमारी कोच में चढ़े और ठीक हमारे सामने ही खड़े हो कर बतियाने लगे। लड़की के चेहरे  पर मास्क था पर सुंदरता परदों से कब ढकी है ? आपसी गिले-शिकवे , रूठना - मनाना ,इंकार -इकरार ,तकरार - मनुहार ,रह रह कर एक दूसरे को बाँहों में भर लेना।  मैं अभी तक आँखे बंद करके ध्यान लगाने का हुनर  सीख नहीं  पाया था  । मेरे क़रीब बैठी निढाल औरत की आँखें भी चमक उठी थी और उसका चेहरा भी गुलाबी हो उठा था। अचानक उसने तोडा था मौन और पूछा था मुझसे -

- " आप कहाँ जायेंगे ? "

-  " श्याम पार्क  " - मेरा जवाब सपाट-सा था। 

-  "ओह , मैं आपसे पहले वाले स्टेशन पर ही उतर जाऊँगी , गर आँख लग जाए तो जगा दीजियेगा " मुस्कुराते हुए उसने अपनी पलकें मूँदी और कुछ मेरी ओर पसर गयी। 




लेखक - इन्दुकांत आंगिरस 


 


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