हिन्दी भाषा के प्रचार- प्रसार के लिए देश में अनेक सरकारी एवं ग़ैर- सरकारी संस्थाएँ खुली हुई हैं। ये सभी संस्थाएँ अपने अपने स्तर पर हिन्दी भाषा के प्रचार - प्रसार में जुटी हैं , विशेषरूप से सितम्बर के महीने में हिन्दी भाषा के उन्नयन के लिए अनेक कार्यक्रम होते हैं क्योंकि १४ सितम्बर का दिन हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। अहिन्दी प्रदेशों में तो बहुत से कार्यालयों में हिन्दी भाषा की परीक्षा उत्तीर्ण करने पर कर्मचारियों को वेतन में धन लाभ भी प्रदान किया जाता है।
पिछले दो वर्षों में कोरोना के चलते ऐसे बहुत सी हिन्दी संस्थाएँ जो सामन्यतः सिर्फ़ विदेशों में हिन्दी का प्रचार - प्रसार कर रही थी , अब भारतीय लेखकों से बड़ी सुगमता से जुड़ गयी हैं या यूँ कहिए भारतीय लेखक ऐसी विदेशी संस्थाओं से जुड़ गए हैं। पिछले दिनों एक मित्र ने अपना प्रमाण पत्र साझा किया, जी हाँ , इस बात का प्रमाण पत्र कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय काव्य लेखन प्रतियोगिता २०२० में प्रतिभागिता की।
विश्व हिन्दी सचिवालय , मॉरीशस द्वारा ज़ारी किये गए इस प्रमाण पत्र में निम्नलिखित कुछ ग़लतिया हैं -
अशुद्ध शुद्ध
हिंदी हिन्दी
तत्वावधान तत्त्वावधान
उज्जवल उज्ज्वल
संपादक सम्पादक
संभव है कि उपरोक्त ग़लतियाँ टाइपो मिस्टेक हो लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि इस प्रमाण पत्र पर श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला -मुख्य सम्पादक - सृजन ऑस्ट्रेलिया , डॉ शैलेश शुक्ला - प्रधान सम्पादक -सृजन ऑस्ट्रेलिया और प्रोफ़ेसर वनोद कुमार मिश्र - महासचिव , विश्व हिन्दी सचिवालय , मॉरीशस के हस्ताक्षर हैं। यह अपने आप में आश्चर्य ही है कि तीनो विद्वानों में से किसी की भी नज़र इन त्रुटियों पर नहीं पड़ी। यह प्रमाण पत्र शायद हज़ारों लेखकों के पास गया होगा । प्रतिभागी का नाम - पता भी अँगरेज़ी भाषा में लिखा है। ऐसे में सिर्फ़ ईश्वर ही बता सकता है कि हिन्दी भाषा का भविष्य कितना उज्ज्वल है ?
यही आज की वास्तविकता है।
ReplyDeleteयहां एक बात अवश्य जोड़ना चाहूंगा कि हिन्दी के स्थान पर हिंदी और सम्पादक के स्थान पर संपादक को ग़लत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पंचमाक्षर को अनुस्वार से प्रतिस्थापित करने के नियम को भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने मानकीकृत किया है।
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