मैंने इसी ब्लॉग पर 3-8- 2020 को जगदीश कश्यप के बारे में लिखा था। जगदीश कश्यप लघुकथा के प्रवर्तकों में से एक थे। मुझे तो लघुकथा लिखने की प्रेरणा उनसे ही मिली थी। पिछले कुछ दशकों में लघुकथा हिन्दी साहित्य में एक सशक्त विधा के रूप में उभरी है। आजकल लघुकथाएँ प्रचुर मात्रा में लिखी जा रही हैं और इनकी लोकप्रियता भी बढ़ रही है। विषयों की विविधता ( विशेष रूप से सामजिक विषय ) भी लघुकथा विधा की लोकप्रियता का एक ठोस कारण है। इसका एक कारण हो सकता है इसका लघु रूप होना। २-३ मिनट में पढ़ी जाने वाली लघुकथाएँ पाठकों को ज़रूर पसंद आती होंगी क्योकि आज के पाठक के पास समय की कमी है। लघुकथाओ का प्रचुर मात्रा में लेखन इस बात की भी पुष्टि करता है कि लघुकथा लिखना कोई मुश्किल काम नहीं , कम से कम इसके सृजन में ग़ज़ल जैसी मेहनत नहीं करनी पड़ती। ख़ैर कारण कुछ भी हो लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि लघुकथाएँ थोक में लिखी जा रहीं है और इसके पाठकों की संख्या भी बढ़ती ही जा रही है। पिछले दिनों अंजू खरबंदा का लघुकथा संग्रह पढ़ने को मिला। बानगी के रूप में इसी संग्रह से एक लघुकथा प्रस्तुत है -
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नेहा एक दिन बच्चों को पढ़ा रही थी । एक कविता मे दादा-दादी ,नाना-नानी की बात आई । रैनेसां ने नेहा की ओर प्रश्न सूचक निगाहो से देखते हुए कहा - "मम्मा घर में दादा-दादी की फोटो तो है पर नाना-नानी की क्यो नही !"
उसकी बात सुनकर रोहन ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा और बोला - "बुद्धु तुझे इतना भी नही पता ! ये घर पापा का है , तो पापा के मम्मी पापा की फोटो ही तो लगेगी ना ! क्यूं पापा !"
पास ही बैठे पति देव ने नेहा की ओर दृढ़ता से देखते हुये कहा - "जितना ये घर मेरा है उतना ही तुम्हारी मम्मी का ।"
इतना कह कर वे उठकर जाने लगे । नेहा ने पूछा "कहाँ चल दिये एकदम से !"
"बच्चों का सवाल वाजिब है तो जवाब भी तो वाजिब ही होना चाहिए ना ! तुम मम्मी पापा की अच्छी-सी फोटो निकाल दो, मै आज ही फ्रेम करवा कर उनकी तस्वीर भी लगाता हूँ। !"
-अंजू खरबंदा
पुस्तक का नाम - उजली होती भोर ( लघुकथा संग्रह )
लेखक - अंजू खरबंदा
प्रकाशक - इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड , नोयडा
प्रकाशन वर्ष - प्रथम संस्करण , 2021
कॉपीराइट - अंजू खरबंदा
पृष्ठ - 146
मूल्य - 350/ INR ( तीन सौ पचास रुपए केवल )
Binding - पेपरबैक
Size - डिमाई 4.8 " x 7.5 "
ISBN - 978 -93-91186-54-8
आवरण - विनय माथुर
प्रस्तुति -इन्दुकांत आंगिरस
प्रभावी लघु कथा, जो स्पष्ट संदेश देती है कि कथनी नहीं, करनी की आवश्यकता है।
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