सुबह ,दोपहर , शाम जब कभी भी उधर से गुज़रता ,वह भीख माँगती ही मिलती और उसके दो मासूम बच्चें फ़ुटपाथ पर बिछी फटी चादर पर सोये मिलते। यूँ हमेशा ही बच्चों का सोये रहना मुझे खटक गया और मैं हिचकिचाते हुए उनकी माँ से पूछ ही बैठा,
-बच्चें बीमार है क्या ,हमेशा सोये रहते हैं ?
-न बाबू जी , बीमार तो नहीं हैं। मैं इन्हें सुबह ही थोड़ी-सी अफ़ीम चटा देती हूँ।
-अफ़ीम , क्यों , ऐसा क्यों करती हो - मैंने लगभग चौंककर पूछा था।
- धंधा नहीं करने देते बाबू , जो जागते रहेंगे तो इधर-उधर भागेंगे। अब मैं इन्हें सम्भालूँ या एक जून की रोटी का इंतिज़ाम करूँ?
उसका जवाब सुनकर मैं गूँगा ही नहीं बहरा भी हो गया।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
विचित्र सच्चाई बयान कुछ है
ReplyDeleteविचित्र सच्चाई बयान की है
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