Thursday, April 29, 2021

कीर्तिशेष डॉ कुँवर बेचैन - गीतों के राजकुमार

 

ये दुनिया सूखी मिट्टी है , तू प्यार के छींटे देता चल  


प्यार के छींटे देने वाले लोकप्रिय , प्रसिद्ध गीतकार , ग़ज़लकार कीर्तिशेष डॉ कुँवर बेचैन का आज स्वर्गवास हो गया। यह दुनिया उन्हें  गीतों के   राजकुमार  नाम से भी  जानती  है । उन्होंने देश-विदेश के अनेक कवि-सम्मेलनों में अपने गीतो से श्रोताओं को मन्त्र - मुग्ध किया है। उनकी लोकप्रियता का यह आलम था कि कवि -सम्मेलनों में अक्सर लोग  उनको सुनने के लिए बैठे रहते थे।  मैंने स्वयं उनको ग़ाज़ियाबाद और दिल्ली के  कई कवि -सम्मेलनों में सुना है। 

मैंने अपनी ज़िंदगी के चन्द साल ग़ाज़ियाबाद में गुज़ारे थे और वहाँ की बहुत सी यादे आज भी ताज़ा है। उन्ही यादों में से एक याद है डॉ कुँवर बेचैन से मेरी मुलाक़ात। उनसे मेरी पहली मुलाक़ात लगभग ४३  वर्ष पूर्व ग़ाज़ियाबाद के चौधरी सिनेमा के मेजनीन   फ्लोर पर " इंगित " संस्था द्वारा आयोजित एक काव्य संध्या में हुई थी।  यह काव्य संध्या लगभग ३.३० से  शाम ६.३० तक चली थी।  मेरे साथ मेरे कवि मित्र स्वर्गीय राजगोपाल सिंह भी थे। 

                  उस दिन उस काव्य संध्या में राजगोपाल सिंह ने अपने मीठे सुर में एक लोक गीत सुनाया था और डॉ कुँवर बेचैन ने एक गीत। काव्य संध्या के बाद हम तीनो लगभग बीस मिनट तक टहलते रहे थे। राजगोपाल सिंह  और डॉ कुँवर बेचैन आपस में गुफ़्तगू कर रहे थे और मैं सिर्फ़ एक श्रोता बन उनकी बाते सुन रहा था।  मुझे याद है उस दिन डॉ कुँवर बेचैन ने राजगोपाल सिंह से कहा था - राजगोपाल भाई ,तुमने बहुत सुन्दर लोक गीत गाया , अरे भाई , हमारे गीतो की धुन भी तुम्ही बना दिया करो।  राजगोपाल सिंह ने हँसते हुए जवाब दिया था - अरे , डॉ साहिब आपका अपना तरन्नुम ही बेहतरीन है। और वाकई डॉ कुँवर बेचैन का अपना मौलिक तरन्नुम बहुत ही दिलकश और हर दिल अज़ीज़ था।   

डॉ कुँवर बेचैन  अत्यंत सहज , सरल और विनम्र स्वभाव के थे और उनकी मुस्कुराहट तो जादू भरी थी।   कभी कभी कवि -सम्मेलनों में उनसे  मुलाक़ात हो जाती थी।  स्नेह से मेरे कंधे पर हाथ रखते और मुझसे कुशल क्षेम पूछते। इतने  बरस गुज़र गए लेकिन उस शाम का मंज़र आज भी आँखों के सामने वैसा ही ताज़ा है। 


उसी वक़्त के लिखे हुए एक गीत ने ही डॉ कुँवर बेचैन को अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया था। हर कविता प्रेमी की  ज़बान पर वो गीत था , उसी गीत का मुखड़ा देखे -


जितनी दूर नयन से सपना 

जितनी दूर अधर से हँसना 

बिछुए जितनी दूर कुँवारे  पाँव से 

उतनी  दूर  पिया तू  मेरे गाँव से  


उस वक़्त तक न तो राजगोपाल सिंह ग़ज़ल कहते थे और न डॉ कुँवर बेचैन । बाद में दोनों ने ही ग़ज़लें कहनी शरू कर दी थी । डॉ कुँवर बेचैन की ग़ज़ल का एक शे'र देखें-


दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना 

जैसे   बहते   हुए  पानी   पे   हो   पानी    लिखना 


हाँ , यक़ीनन बहुत मुश्किल है  डॉ कुँवर बेचैन  जैसे महान कवि की कहानी को चन्द अल्फ़ाज़ में समेट देना।  उनके शिष्य डॉ कुमार विश्वास के एक सन्देश के ज़रीए मालूम पड़ा कि  उनकी अंतिम इच्छा  थी कि उनकी शवयात्रा पर उनकी निम्नलिखित पंक्तियाँ लिख दी जाए। कोरोने के चलते डॉ कुँवर बेचैन  की शवयात्रा तो नहीं निकल पाई लेकिन उनके कालजयी   गीत की वो पंक्तियाँ कुछ यूँ हैं -


सूखी   मिट्टी से    कोई भी   मूरत न   कभी बन पाएगी 

जब  हवा  चलेगी  ये  मिट्टी   ख़ुद  अपनी  धूल उड़ाएगी 

इसलिए सजल बादल बनकर  बौछार के छींटें देता चल 

ये  दुनिया   सूखी   मिट्टी है ,   तू प्यार के  छींटे देता चल  



वास्तविक नाम - कुँवर बहादुर सक्सेना 

उपनाम -    डॉ कुँवर बेचैन

जन्म - 01-07-1942 ,  उमरी , मुरादाबाद 

निधन -  29-04-2021  , ग़ाज़ियाबाद 


  NOTE : 

उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व  के बारे में अधिक जानकारी इंटरनेट पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। 

6 comments:

  1. डा.कुंवर बेचैन के साथ साहित्य के एक युग का अवसान हो गया । आज सचमुच शब्द बेचैन हैं और गीत मूर्छित । ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें ।
    विनम्र श्रद्धांजलि ।

    ReplyDelete
  2. डा.कुंवर बेचैन के साथ साहित्य के एक युग का अवसान हो गया । आज सचमुच शब्द बेचैन हैं और गीत मूर्छित । ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें ।
    विनम्र श्रद्धांजलि ।

    ReplyDelete
  3. डाॅ.कुंवर बेचैन का देहावसान हिंदी और भारतीय साहित्य की अपूरणीय क्षति है। नमन और वंदन।

    ReplyDelete
  4. निश्चित ही डॉ कुंवर बेचैन के जाने से संपूर्ण साहित्य जगत बेचैन है। इंदु कांत जी का संस्मरण मानो हमें साक्षात डॉ कुंवर बेचैन के सामने ला खड़ा करता है। उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।

    ReplyDelete
  5. भूपेंद्र कुमार जी, नमस्कार 🙏 इंदुकांत जी बड़े तत्पर रहते हैं।

    ReplyDelete
  6. ईश्वरचंद्र मिश्र

    ReplyDelete