Soror Annuncia - सिस्टर अनुनत्सया
सिस्टर अनुनतस्या मुझे देख रही थी। मालूम नहीं , मैंने इससे पहले सिर्फ़ पुरुषों की आँखों में देखी थी ऐसी उदासीनता , एक बार जब एक पुराना सपना टूट गया था और कोई पाँच मिनट के लिए यह विश्वास कर सकता था कि कुछ बहुत क़ीमती रीत जाता है ग़र कोई औरत किसी पुरुष की ज़िंदगी से निकल जाती है।
लेकिन मेरे दूर जाने से उस बाल हृदय ,अधेड़ उम्र की सिस्टर में क्या रीत रहा है ? मैं तो उस संगीत को भी नहीं समझ पाती जिसमे ढलकर वह अपना विरोध दर्शाती है। क्या मैं उसके नारी सुलभ सपनों का पुल थी जो उसके डरने के बावजूद उसे उस वास्तविक उत्तेजित दुनिया से जोड़ने में सक्षम था , या फिर उसने मुझे संसार के उस अद्भुत मानव द्वीप से जोड़ा था जोकि सदियों से यही पर मौजूद था और अब वह समझती है कि मैं अतीत से भविष्य की ओर जा रही हूँ। अथवा यह एक रुग्ण संवेदनशीलता है , एक दिमाग़ी ख़लल , मैं सुलझे शब्दों में समझना चाहती थी। बहुत कुछ पढ़ा था लेकिन फिर भी सब कुछ नहीं। एक पल के लिए वो सर्द शाम मेरे ज़ेहन में कौंध गयी जब मैं पियानो के पास बैठी थी ओर मेरा हाथ ज़ख़्मी हो गया था।
जब ' अलविदा ' शब्द गूँजा तो हमेशा की तरह सिस्टर ने बढ़ कर मेरा हाथ थाम लिया। एक नारी सुलभ आकर्षक अदा से वह मुझसे लिपट गयी ओर उसने अपने अधर मेरे अधरों पर रख दिए। तब से आज तक किसी ने मुझे उस तरह नहीं चूमा , सुलगते अधर .. यक़ीनन मेरी आत्मा भी भीग गयी थी ।
लेकिन किसलिए ?
बकवास.. बकवास.. बोलते हुए मैं सीढ़ियाँ उतर रही थी। मुझे किस बात के लिए शर्म आ रही थी , ख़ुद पे झुंझला रही थी या फिर मैं समझना नहीं चाहती थी। क्या उस वाइलेन से परे भी कुछ ऐसे रंग थे जिसके लिए कोई उपयुक्त शब्द अबसे हज़ारों साल बाद कोई हमारा पोता -पड़पोता ही ढूँड पायेगा ?
कवियत्री - Kaffka Margit
जन्म - 10th June ' 1880 , Nagykároly
निधन - 1s December ' 1918 , Budapest
अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस
NOTE : इसी गद्य का एक अंश 11 मार्च को भी पोस्ट किया गया था। यह गद्य कवयित्री ने 1906 में लिखा था।
यह कहानी कम, गद्य काव्य ही अधिक प्रतीत होता है। अस्तु, अनुवाद एकदम सहज है, मानो मूल रचना ही हो।
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