[22:26, 04/04/2025] Ram Awadh Vishvkarma 2: जे ए के आर्ट एण्ड कल्चर फ़ाउन्डेशन की जानिब से अगली नशिस्त के लिए बज़्मे नौ सुख़न के लिए तरही मिसरा शायर साक़ी फ़ारुक़ी साहब की ग़ज़ल का मिसरा दिया जा रहा है
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मिसरा ए तरही--> 'ऐ रौशनी-फ़रोश अंधेरा न कर अभी
वज़्न------------> 221 2121 1221 212
मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
अर्कान------> मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
क़ाफ़िया--- अंधेरा दरिया किनारा सवेरा आदि.....
रदीफ़--------> न कर अभी
फ़िल्मी गीत
1-हम ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए
2-शिकवा नहीं किसी से किसी से गिला नही
3-उनके ख्याल आये तो आते चले गये |
4- मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी-कभी
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तो दोस्तों शुरू हो जाइये बेहतरीन अश'आर कहने के लिए
निवेदक
जे. ए. के. आर्ट एण्ड कल्चर फ़ाउन्डेशन
[22:49, 04/04/2025] Ram Awadh Vishvkarma 2: साथियों
मैं आपको एक तरही मिसरा दे रहा हूँ इस पर लिखने की कोशिश करिये। जे ए के द्वारा दिया गया मिसरा हो सकता है आपको सूट न करे। तो मिसरा है
'भरी दोपहर में अँधेरा हुआ'
काफिया आ की मात्रा वाला है
जैसे झमेला ,सबेरा, बसेरा, धेला, फेरा, डेरा, तेरा, मेरा, अकेला, खेला, चेला, करेला ,आदि।
रदीफ- हुआ
बहर है-
फऊलुन फऊलुन फऊलुन
फ 'अल
122 122 122 12
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अँधेरा हुआ है भरी दोपहर में'
पहले दिये मिसरे को ऐसा भी कर के ग़ज़ल कही जा सकती है।इसका काफिया होगा
डर, घर ,पर ,सर, उधर, सफर, शजर , जहर, आदि
रदीफ - में
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बहर है
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
122 122 122 122
बह्रे मुतकारिब मुसम्मन सालिम
यह सालिम बहर मतलब शुद्ध बहर है जिसमें एक ही रुक्न
फऊलुन का प्रयोग किया गया है।इसमें कोई दूसरा रुक्न नहीं मिलाया गया है। फऊलुन मुतकारिब बहर का रुक्न है ।यह चूँकि यह चार बार मिसरे में आया है इसलिए यह मुसम्मन कहलायेगा। इस प्रकार इसका नाम हुआ
बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम
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