Friday, May 31, 2024

प्रेम - प्रसंग / 2 - सफ़ेद गुलाब

 सफ़ेद गुलाब 


तुम्हारे जूड़े में सजे  सफ़ेद गुलाब को देख कर 

लाल गुलाब रो रहा अपनी क़िस्मत पर 

खिड़की से उतरती धूप का भी 

खिल उठा रूप तुम्हें छू कर 

इस सुराही  सी  गर्दन के क्या कहने 

तेरे रूप के आगे फीके सब गहने 

तेरे लब गुलाब की पंखुरी से भी नाज़ुक 

क्या मीर ने तुम्हें सोचा  था ? 

तेरी काली - सफ़ेद ज़ुल्फ़ें इक आवारा  बदरी सी 

घटा खुल के तपते सहरा  पे बरसी भी 

लेकिन एक रूह प्यासी है अभी 

तुझसे मिलने  को आतुर है समुन्दर एक

तेरी आँखें क्या हैं , क़यामत एक 

आसमान से उतरी एक परी है तू 

 प्रेम की मद मस्त  नदी  है  तू 

तेरी आँखों में सिमटा है 

इक मुहब्बत भरा आसमान 

तुझ पे क़ुर्बान है मेरे दोनों जहान। 



Saturday, May 25, 2024

दोहा विधान

                        1

 जैसी मन की बाँसुरी , वैसी उस की पीर।  

आँसू हैं ये पीर  के , कहो न इनको नीर।।  


                        2

गल बाँही  सब की करी ,अपना भया  न कोय। 

बिछड़े सब साथी सखी , आज बहुत हम रोय।।   


                         3

मिल ना पाएँगे कभी ,   नदिया  के दो तीर । 

कब समझी लहरें सखी , इन तीरों की पीर ।।   


                       4

और नहीं कुछ चाहिए , बस इक तेरा साथ । 

मिल जाएगी हर ख़ुशी , थाम सखी का हाथ ।।  


                             5

उलझी उलझी ज़िंदगी , बिखरे बिखरे बाल। 

याद बहुत आते रहे ,   ग़म के गुज़रे साल।।  


                       6

राम नाम ही जप रहें , घर घर में नर नार।  

टूटी इन की नाव को , राम लगाओ पार।। 



                         7

इतना बैर ठीक नहीं , मन की गाँठें खोल।  

सबको ही शीतल करें , प्रेम भरे दो बोल।।  



                       8

आती कितनी  दूर  से , छुक छुक करती रेल।  

सब धरमों के नाम का ,     रेल कराती मेल।।


                       9

बापू के   बन्दर सभी ,    देते सब को ज्ञान। 

बंद किए बैठे कब से , आँख मुँह और कान ।।   



                           10

जाने किस के हाथ है , इन साँसों की डोर। 

टूटे जब ये डोर तो ,   लोग कहे   नो  मोर ।। 



                                11

और नहीं कुछ ज़िंदगी , बस साँसों का खेल।  

चाबी जितनी हो भरी ,   उतनी चलती  रेल।।  


                             12

रोटी  रोटी सब कहे , ख़ाली  सब के   पेट। 

रोटी पाने को कभी  ,कर न किसी से हेट।। 


                           13


मतलब पड़ने पर सभी , कहे गधे को बाप ।

रहे ना जब मतलब तो , बाप रहे ना  बाप  ।। 


                         14


प्रेम नहीं कुछ जानिए ,  बस  अंतस की पीर  

रोज़  जिगर में जा लगे , ज़हर बुझा इक तीर 


                        15

मूसल से वो कब  डरे , जो खुद ओखल यार। 

तोड़ी ज़ंजीरें   सदा     ,  मानी  कभी न हार।।  


                      16


मिलती ना  वापिस कभी  ,कर से फिसली रेत। 

जैसे   फिसले साँस  रे ,     अब तो जा तू चेत।।   

फिसली जाती साँस रे , अब तो जा तू चेत।। 


                                          17


घर   जो साधे रेत का ,     खुद  बन  जाये  रेत।  

मिटती जैसे  ज़िंदगी , कुछ मिटटी कुछ खेत।।   


                                          18

प्रेम नहीं अब बांचिये ,   प्रेम  सखी  अनमोल। 

लेकिन  क़दम क़दम यहाँ , देना पड़ता टोल।। 


                               19

मन का दरपन साफ़ तो  , दिखता सब कुछ साफ़।  

धुंधला गर दरपन हो ,    सब कुछ लगे  ख़िलाफ़।। 




Monday, May 20, 2024

Mother - माँ - अंग्रेजी कविता का हिंदी अनुवाद

 माँ 


शाश्वत सत्य बसता है उसकी आँखों में 

माँ ,

करती हूँ अनंत की खोज  

और होती हूँ हैरान 

कैसे साल दर साल 

दशक बदलते हैं सदी में।


इस ब्रह्माण्ड का हरेक ज़र्रा 

बदलता है अनेक  बार   

मैं पाती हूँ उस में 

उसकी मुस्कुराहट में 

इस दुनिया को।    


उसका स्पर्श मुझे बनाता है सम्राट 

वो अभी चूमेगी मेरी पेशानी को 

और मैं बन जाउंगी विजेता 

पूरी दुनिया की । 


माँ ,

इस रहस्यमयी रचना की  सृजक 

माँ , हाँ वही   ग़रीब मनहूस औरत 

बन जाती है एक अवतार। 



कवयित्री  - Suhina  Biswas Majumdar 


अनुवादक - इन्दुकांत आंगिरस 


Sunday, May 12, 2024

आख़िर एक दिन ....

 आख़िर एक दिन ....


हर घर की बुनियाद होती है माँ ,

फ़रिश्तों  की भी फ़रियाद होती है माँ ,

माँ के बिना घर के चूल्हें नहीं जलते , 

माँ के बिना बग़िया  के फूल नहीं खिलते ,

गोल गोल रोटी होती है माँ 

खीर की कटोरी होती है माँ , 

बच्चों की ड्रेस , पति की रेस 

बेटे  का दुलार ,बेटी का प्यार 

कमीज़ का बटन , पसीने का बदन 

आँगन का फूल , पूरे घर का पुल

दिलों  का तराना ,दुआओं का ख़ज़ाना

आज खिली खिली है सरसो,

माँ के  नंबर पूरे सौ ,  

२१वीं सदी का बहुत बहुत शुक्रिया 

डेज बनाने के बहाने 

इस दुनिया ने 

Mothers' Day मनाया , 

आख़िर एक दिन 

माँ का भी आया।  

 

कवि - इन्दुकांत आंगिरस 


  



Saturday, May 11, 2024

নারী ও অগ্নি :ইন্দুকান্ত অঙ্গীরস Bangla Translation of Hindi Poem

 নারী ও অগ্নি :ইন্দুকান্ত অঙ্গীরস

(অনুবাদ:সুহিনা বিশ্বাসমজুমদার )

নারী আর আগুনের 

সম্পর্ক গভীর

থরথরিয়ে কেঁপে ওঠা

শীতল শরীরে

উষ্ণতা দিতে

বরফ গলাতে

কখনো প্রাণহীন শবকে

বাঁচিয়ে তুলতে

নারীকে আগুনে

পুড়তে হয়,

কিছু পতঙ্গের

মুক্তির জন্য

নারী

প্রদীপের শিখাও হয়

কখনো বা,

নারীকে বারবার 

বিধ্বংসী আগুন হতে হয়।

সকাল:১১-১৬

১২/০৫/২০২৪



Poet - Indu Kant Angiras 

Translator - Suhina Biswas Majumdar 

Wednesday, May 8, 2024

নারী ও জলের - Bangla translation of Hindi poem

 নীর ও নারী : ইন্দুকান্ত অঙ্গীরস

(অনুবাদ : সুহিনা বিশ্বাসমজুমদার)


নারী ও জলের

সম্পর্ক গভীর,

নারী‌ প্রশমিত করে

উত্তপ্ত মরুর তৃষ্ণা 

 তৃষ্ণার্ত শরীরের পিপাসা

তাই নারী

কখনো নদী হয়ে যায়

কখনো জলভরা মেঘ

কখনো বৃষ্টি

কখনো শুধুই জলের ফোঁটা 

কখন‌ আবার একবিন্দু নয়নের জল ।

২৪/০৪/২০২৪




Poet - Indu Kant Angiras 

Translator - Suhina Biswas Majumdar