Sunday, September 24, 2023

प्रेम - प्रसंग/ 2 -सुर्ख़ गुलाब

 

सुर्ख़  गुलाब 


अपने माथे पर सजा लिया

 तुम ने जब लाल सूरज 

और एक सुर्ख़ गुलाब 

अपनी ज़ुल्फ़ों में 

मुहब्बत के कितने लम्हात  

तुम्हारे क़दमों में बिछ गए ,

दीवानो को क्या इस से मतलब ..

के वो सुर्ख़ गुलाब 

तुम्हारे जूड़े में टाँगा हैं किस ने 

उन्हें तो बस 

उसकी खुशबू  में है भीगना ,

तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के 

काले साये-सी  लरज़ती बदरी का

मुहब्बत के सहरा  पर बूँद बूँद बरसना  

दरिया का समुन्दर की लहरों से लिपटना ,

सुनो ! मुहब्बत के बाग़ की अप्सरा हो तुम  

सुरा  हो , बला हो , सबा हो तुम 

हरेक  दिल का वलवला हो तुम,

वो सुर्ख़ गुलाब अपनी ज़ुल्फ़ों में सजाए रखना 

मुहब्बत की एक दुनिया बनाए रखना ,  

बारूद के ढेर पर ठहरी इस दुनिया को 

नफ़रत की आग में  जलती इस दुनिया को 

गर कोई बचा सकता है , तो वो है 

तुम्हारी ज़ुल्फ़ों को सुर्ख़ गुलाब 

तुम्हारी निगाहों में छुपा प्यार का ख़्वाब 

और तुम्हारे होंठों की 

वो मोनालिसा -सी मुस्कुराहट।  



कवि - इन्दुकांत आंगिरस  

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