Friday, September 15, 2023

प्रेम - प्रसंग/ 2 - प्रेम -प्रसंग

 कविता - प्रेम -प्रसंग 


जीवन के   कितने प्रेम - प्रसंग 

सुनाऊँ तुम्हें 

इस दिल के कितने दाग़ 

दिखाऊँ तुम्हें 

जिस जिस से भी प्रेम किया 

बीच मँझधार   मुझे छोड़ गया

प्रेम का साहिल मिला ही नहीं कभी 

यूँ कहो तो अच्छा ही हुआ 

प्रेम का साहिल गर मिल जाता 

दोबारा नहीं प्रेम कर पाता

दोबारा ....?

हाँ , दोबारा , एक बार नहीं हज़ार बार 

करना है मुझे प्रेम ज़िंदगी की हर शय से ,

करते हैं जो सिर्फ़ 

किसी एक से ज़िंदगी भर  प्यार 

बहुत ...बहुत ...बहुत उबाऊँ होते हैं मेरे यार।



कवि - इन्दुकांत आंगिरस 

  


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