पुस्तकें हमारी सबसे अच्छी मित्र होती हैं और पुस्कालय ज्ञान का भण्डार। हमारे वेद ५००० वर्ष से भी अधिक पुराने हैं और विश्व के प्राचीनतम ग्रंथों में से एक हैं। साहित्य समाज का दर्पण होता है और हरेक साहित्यकार की रचनाओं में हम उसके काल की रचनाओं को पा सकते हैं। इस प्रकार पुस्तकों के ज़रिये हम बहुत- सी पुरातन संस्कृतियों और सभ्यताओं से परिचित होते हैं।
सभी पुस्तक प्रेमियों के लिए ये संभव नहीं होता कि वे अपनी मन पसंद सभी पुस्तकें अपने घर पर संग्रहित कर सकें , इसीलिए पुस्तकालयों की ज़रूरत पड़ती है। पुस्तकालयों में सभी विषयों की पुस्तकें बड़े पैमाने पर संग्रहित की जाती हैं जिससे सभी पाठक , लेखक और शोधकर्ता लाभान्वित होते हैं।
भारत में 12 अगस्त को राष्ट्रीय लाइब्रेरियन दिवस मनाया जाता है। यह पुस्कालय दिवस भारत में पुस्तकालय के प्रचार-प्रसार के प्रति योगदान देने वाले प्रोफेसर डॉ. एसआर रंगनाथन की याद में मनाया जाता है। शियाली रामअमृता रंगनाथन ( जन्म- 12 अगस्त, 1892 को मद्रास, मृत्यु- 27 सितंबर, 1972, बंगलौर) विख्यात गणितज्ञ, पुस्तकालाध्यक्ष और शिक्षाशास्त्री थे । उन्हें भारत में पुस्तकालय विज्ञान का अध्यक्ष व जनक माना जाता है।
पुस्तक प्रेमी भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में पाए जाते हैं। २३ अप्रैल सम्पूर्ण विश्व में " World Book and Copyright Day " के रूप में मनाया जाता है। आज विश्व के अनेक देशों में अति आधुनिक पुस्तकालय उपलब्ध हैं। टेक्नोलॉजी के इस दौर में आउट ऑफ़ प्रिंट पुस्तकों को ई- पुस्तकों के रूप में उपलब्ध कराया जा रहा हैं। दुर्लभ पुस्तकों को पुनर्प्रकाशन या ई संस्करण निकाले जा रहें हैं। पुस्तकालयों का भरपूर प्रयास हैं कि पाठकों को अधिक से अधिक पुस्तकें उपलब्ध कराएं। पुस्तकालयों की संख्या भी धीरे धीरे बढ़ती जा रही हैं लेकिन अफ़सोस की बात है कि पुस्तकों के पाठक कम होते जा रहे हैं। मीडिया के विभिन्न चैनलों के चलते पुस्तकों के प्रति लोगों कि रूचि कम होती जा रही हैं। आज से २०-३० वर्ष पहले तक सफ़र में समय काटने के लिए ही सही लोगो के हाथों में पुस्तके होती थी लेकिन आज सभी के हाथ में सिर्फ मोबाइल और यूट्यूब चैनल्स देखने को मिलते हैं।
समय के साथ साथ सभी चीज़ों में परिवर्तन आता है , शायद यही कारण है कि पुस्तकों के पाठक दिन पर दिन कम होते जा रहे हैं। सभी के लिए चिंता का विषय है कि कही धीरे धीरे पुस्तकें विलुप्त न हो जाये और अगर पुस्तकें विलुप्त हो जाएँगी तो पुस्तकालयों का क्या होगा ?
लेकिन आप चिंतित न हो जब तक समाज जीवित है , लेखक और पाठक जीवित हैं , संस्कार और सभ्यता जीवित है तब तक पुस्तकें लिखी जाती रहेंगी और उनका प्रकाशन भी होता रहेगा क्योंकि पुस्तकों का कोई विकल्प पहले भी नहीं था ,आज भी नहीं है और भविष्य में भी नहीं होगा।
आपका बस इतना सहयोग ही काफी होगा कि आप कोई पुस्तक खरीद कर पढ़ें , खरीद नहीं सकते तो पुस्तकालय से ला कर पढ़ें , लेकिन हर रोज़ किसी ना किसी पुस्तक को पढ़ें और अपने हृदय पर उनके शब्दों को अंकित करते जायें। बक़ौल डॉ प्रेम तन्मय -
बहुत ही अनमनी हो शाम तो किताब पढ़ें,
समझ ना आये कोई काम तो किताब पढ़ें।
लेखक - इन्दुकांत आंगिरस
आज के समय में एक जरूरी लेख
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