Tuesday, December 21, 2021

पुस्तक परिचय - अन्तस ( ग़ज़ल संग्रह )

 





ले    के   मशाल   निकलने   का    वक़्त है 

दुनिया को इक सिरे से बदलने का वक़्त है


मशाल हाथ में लेकर निकलने वाले और इस दुनिया को बदलने वाले शाइर अरविन्द 'असर ' एक मारूफ़ शाइर के साथ साथ बहुत ही नफ़ीस इंसान भी है।  दिल्ली में मेरी चंद मुलाक़ाते उनसे हुई हैं और हर मुलाक़ात हमारी मित्रता को प्रगाढ़ करती रही है।  'अन्तस ' उनका प्रथम ग़ज़ल संग्रह है जिसमे बहुत से  इन्तख़ाबी अशआर  हैं जो समाज और व्यक्ति को एक दिशा दे सकने में सक्षम हैं।  एक शाइर के लिए इससे बड़ी उपलब्धि और सम्मान क्या हो सकता है कि उसके अशआर ज़माने को बदलने की क़ुव्वत  रखते हैं। बड़े से बड़े मफ़हूम  को शाइर इतनी सादगी से एक शे'र में पिरोता है कि पाठक एक पल को अचकचा जाता है , उनके चंद अशआर  देखें  -


दो ही तबके हैं आज दुनिया में 

एक   तबका   लगान   देता है 


पेड़ खुद काटकर ऐ 'असर '

लोग    जलते  रहे  धूप   में 


पहुँच हम   चाँद पर जाते 

हमें दिल तक पहुँचना था 


अरविन्द 'असर 'ने इस ग़ज़ल संग्रह को कुछ यूँ समर्पित किया है - 

" प्यारे भतीजो , रचित ,ओशो एवं पुत्र 'श्री ' की  मुस्कुराहटों के नाम '। लगता है अरविन्द 'असर ' ओशो की  विचारधार से भी प्रभावित है। 'अपनी बात ' में शाइर ने प्रसिद्ध शाइर कृष्ण बिहारी 'नूर ' से अपनी चंद मुलाक़ातों का ज़िक्र भी किया है। यक़ीनन उनकी ग़ज़लों में लखनवी नफ़ासत भी देखने को मिलती है। बानगी के तौर पर चंद अशआर देखें -


आज को आज कल को कल कहना  

सख़्त मुश्किल है अब ग़ज़ल कहना 


वो आँखों ही आँखों में मुझे  तोल रहा है 

लब उसके हैं ख़ामोश मगर बोल रहा है 


इस तरह लहरा के तेरे रुख़ पे ज़ुल्फ़े आ गयीं 

चाँद   को जैसे   घने बादल   छुपाने   आ गये 


उनके कुछ अशआर में ज़िंदगी का फ़लसफ़ा इतनी सादगी से उजागर हुआ है कि एक समझदार पाठक को उसे  समझने में ज़रा भी वक़्त नहीं लगेगा , बानगी के तौर पर चंद अशआर देखें - 


यूँ तो   ज़िंदा   रहता  हूँ  मैं

लेकिन मुझमे मरता क्या है 


वो न समझेगा मोल धरती का 

वो परिंदा अभी    उड़ान में है



अरविन्द 'असर ' एक सच्चा शाइर है और इसीलिए सच कहने में हिचकिचाता नहीं।  उनकी ग़ज़लों में कोई बनावट या चमत्कार नहीं बल्कि नदी के पानी जैसी रवानी है जो किसी समुन्दर में भी देखने  को नहीं मिलती , यह शे'र देखें -


न जाने   कब से हैं  ठहरे हुए  समुन्दर  सब 

ठहर गयी जो कहीं  पर  नदी तो क्या होगा  


ज़िंदगी की पीड़ा और यथार्थ को उजागर करते उनके चंद अशआर और देखें - 


चाहे    जाना   बाज़ी    हार 

सच को सच ही कहना यार 


बात ये काफ़ी है सबके डूब मरने के लिए 

एक भी इंसान दुनिया में अगर भूखा रहे 


लेकिन इस बेशरम दुनिया में कोई भी डूब कर नहीं मरता और रोज़ दुनिया में लाखों इंसान भूखे सोते हैं। सारी दुनिया किसी उन्माद में सोइ हुई लगती है , जाग रहा है  तो बस एक शाइर।  ग़र इस शाइर को भी नींद आ गयी तो क्या होगा ।  दुनिया बद से बदतर होती जाएगी, दुनिया रसातल में डूब  जाएगी , बस रह जायेगा जागता हुआ शाइर , इसलिए मेरी मुराद दुनिया के उन सब शाइरों से हैं जो अगर सो रहे हैं तो जाग जाए और इस सोती हुई दुनिया को भी जगाये। इस बेशक़ीमती दुर्लभ  किताब को ज़रूर पढ़े और क्रांति के आहवाहन में इस जागते हुए शाइर के साथ जुड़ें। 


नींद में डूबी है ये दुनिया 

एक सितारा जाग रहा है .




 पुस्तक का नाम - अन्तस     ( ग़ज़ल   संग्रह )


लेखक -  अरविन्द 'असर '


प्रकाशक - श्वेता  प्रकाशन , लखनऊ 


प्रकाशन वर्ष - प्रथम संस्करण , 2007


कॉपीराइट - अरविन्द 'असर '  


पृष्ठ - 122


मूल्य - ( 150/ INR  (एक सौ  पचास  रुपए केवल )


BindingHardbound 


Size - डिमाई 4.8 " x 7.5 "


ISBN - Not Mentioned


 


                                                                              प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस 



3 comments:

  1. हार्दिक आभार भाई साहब, निशब्द हूं

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  2. Bahut achche aur sachche ashaar...indukant ji ne antas par achcha Tapsara kiya....Arvind Asar ji aur indukant ji dono ko bahut badhai

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  3. वाक़ेई अरविंद असर एक सच्चे और अच्छे शायर हैं।

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