Wednesday, December 15, 2021

कीर्तिशेष उस्ताद हरिकृष्ण पाहवा


कीर्तिशेष उस्ताद हरिकृष्ण पाहवा 

 


ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात

नवा-ए-मीर   सुनाओ  बड़ी  उदास है रात

सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गये हैं चिराग़

दिलों की ख़ैर मनाओ बड़ी उदास है रात


- फ़िराक़  गोरखपुरी 


पिछले दिनों न सिर्फ़ बैंगलोर बल्कि हिन्दोस्तान के मशहूर गायक और संगीतकार   पंडित  हरिकृष्ण पाहवा जी का इंतक़ाल  हो गया। उनकी याद में ज़फ़र मोहिउद्दीन की संस्था कठपुतलिया थिएटर ग्रुप  " दीवानगी " और पाहवा जी के शागिर्दों द्वारा 20 नवंबर 2021 को एक यादगार संगीत का कार्यक्रम Alliance Française  बैंगलोर में संपन्न हुआ। इस अवसर पर मशहूर शाइर / नाज़िम  शफ़ीक़ आबिदी ने भी अपने श्रद्धांजलि पुष्प अर्पित किए। 


लगभग 5 फ़ूट 2 इंच का क़द , गौर वर्ण , गले में क़ीमती मालाएँ , हाथों में जड़ी क़ीमती अंगूठियाँ , चमचमाता कुरता , बढ़िया जूतियाँ और चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान , कुल मिला कर उनकी शख़्सियत इतनी वज़नदार थी कि कोई भी उनसे मुतासिर हुए बिना नहीं रह पाता। पाहवा साहिब से मेरी पहली मुलाक़ात इंदिरा नगर बैंगलोर में जनाब तिलक राज  सेठ 'तलब'  के घर आयोजित नशिस्त में हुई थी । तलब साहिब के घर आयोजित महाना नशिस्तों में पाहवा साहिब अक्सर आते थे और नशिस्त के आख़िर में पाहवा जी कोई ग़ज़ल या मजमुआ सुनाते थे। 

उर्दू और फ़ारसी भाषा में पारंगत पाहवा जी शाइर तो नहीं थे लेकिन उन्हें शाइरी की समझ   बहुत थी ।  उनको मैंने कई  महफ़िलों  में सुना , उनके गायकी अक्सर महफ़िलें  लूट लेती थी।  उनके द्वारा गाये मजमुए का एक शे'र मुझे याद आ रहा है -


जी चाहे तू    शीशा    बन जा    जी चाहे   पैमाना बन जा 

शीशा  पैमाना क्या बनना मय बन जा मय-ख़ाना बन जा 


-ज़हीन शाह ताजी


उनकी गायकी इतनी दिलकश होती थी कि मैं अक्सर किसी मजमुए की फ़रमाइश कर देता था और पाहवा जी बड़ी मस्ती में फ़रमाइशी मजमुआ सुना देते थे। बहुत ही विनम्र और मद्धम स्वर में उनके बोल दिलों की गहराइयों में उतर जाते थे। मुझे भी संगीत का शौक़ है लेकिन अफ़सोस कि मैं पाहवा जी से कुछ सीख नहीं पाया। पाहवा  साहिब रेडियो और दूरदर्शन में तो अपना गायन प्रस्तुत करते ही  थे , साथ साथ मस्जिदों और मंदिरों में भी भजन , नात , क़व्वाली और हम्द  बड़े ख़ूबसूरत अंदाज़ में सुना कर  श्रोताओं का दिल जीत लेते थे। 

पाहवा साहिब के शागिर्दों कि फेहरिस्त काफ़ी लम्बी है जिनमे मसूद अली ,नियाज़उद्दीन नियाज़ , मोना , खनक जोशी , अंकिता ,हर्षवर्धन , सादिका , श्रुति राघवेंद्रन , सुनील पंवार के नाम उल्लेखनीय हैं। 

इस अवसर पर उनकी प्रिय शागिर्द खनक जोशी ने पाहवा जी के  मजमुए से एक शे'र सुनाया - 


चुपके से  आधी रात को   आए  वो    ख़्वाब में 

और अपना नाम लिख गए दिल  की किताब में 



यक़ीनन उस्ताद हरिकृष्ण पाहवा हरदिल अज़ीज़ इंसान थे और हज़ारों दिलों पर अपना नाम लिख गए और जिन लोगों का नाम हमारे दिल पर अंकित होता है वो कभी सराय - फ़ानी से गुज़रते नहीं बल्कि सदियों तक उनका नाम हमारे दिलों में गूँजता  रहता है। 



कीर्तिशेष उस्ताद हरिकृष्ण पाहवा 

जन्म - 30-11-1930 , Queeta , Baluchistan ( Now in Pakistan )

निधन - 16-10-2021 , Bangalore , India 


NOTE : श्री जुगल किशोर मदान को उनके सहयोग के लिए शुक्रिया। 




2 comments:

  1. पाहवा जी का तो स्मरण नहीं, पर मेरे बेंगलुरु प्रवास के दौरान जनाब तिलकराज सेठ तलब साहब का आशीर्वाद मुझे भी मिलता रहा है। आपकी इस पोस्ट ने उन दिनों की याद ताज़ा कर दी।

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  2. Raj sethi
    Ese mahan kalakar bhai jinki shoharat ka jawab nahi unki behan hone ka mujhe garv hai. Hum sab unhe kabhi nahi bhul sakte. Unki yaad aate hi ankhein bhar ati hai vo mere sage bhai hai. Bhagwan unki atma ko shaanti de...

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