Saturday, December 16, 2023

कविता - पहाड़ियों के रंग

 कविता - पहाड़ियों  के रंग 


जिस तरह  सूरज की किरणों को छू  कर 

बदल जाता है पहाड़ियों का रंग 

कभी सुनहरी ,कभी चम्पई , कभी नीली

कभी ताम्बई  कभी काली , कभी पीली 

फ़ज़ा में घुलते इन रंगो को देख कर  

कुदरत भी रह जाती है दंग ,

बदलते इन रंगों के साथ साथ 

बदलते हैं पहाड़ी औरत के मन के रंग 

उसका इंद्रधनुषी मन 

गाने लगता है प्रेम के गीत 

कभी डसती  है उसे विरह की पीड़ा 

कभी बनती  है राधा , कभी बनती है मीरा 

कभी बदरी  की बूंदों सा भीग जाता  उसका बदन 

कभी तड़पा जाती  उसे पीले चाँद की छुअन 

कभी लाल गुलाब सा खिल उठता  उसका चेहरा 

कभी काली रात का सहती वो  पहरा 

कभी सुरमई सांझ में होती तब्दील 

कभी तन्हाईयाँ  जाती उसको लील 

कभी सुनहरे ख्वाबो को बुनती 

कभी टूटी किरचों  को चुनती 

कभी नीले आकाश पर लफ़्ज़े मुहब्बत लिखती 

कभी उसकी किस्मत पर रोती धरती 

कभी चम्पई शाम के सिरहाने 

जब  ज़िंदगी लगी  गुनगुनाने 

मुझे बहुत याद आई वो पहाड़ी औरते 

जिनके  ताम्बाई बदन की आंच से 

चाँद की  किरणे भी गरमा जाती हैं 

वो रंग - बिरंगी पहाड़ी औरते 

किसी जादूगरनी की मानिंद 

दुनिया के ज़र्रे ज़र्रे को 

अपनी मीठी मुस्कान  से   सजा जाती हैं । 


कवि  -इन्दुकांत आंगिरस 




Thursday, December 14, 2023

कविता - पहाड़ी औरत

 पहाड़ी औरत 


पहाड़ी औरत हो सकती है 

उबड़ खाबड़ 

एक पहाड़ी की तरह 

लेकिन होती है मजबूत उसकी टाँगे ,

पहाड़ियों से 

रोज़ चढ़ती - उतरती 

इस औरत के क़दम 

बना देते हैं पहाड़ियों पर 

एक ऐसी पगडण्डी 

जो उसके बदन की तरह  

होती है  घुमावदार

और हर सफ़री से करती हैं प्यार ,

शहरी औरतों की तरह 

इनका बदन लिजलिजा  नहीं होता 

सौंदर्य रूप प्रसाधनों से 

इनका कोई वास्ता नहीं होता 

पहाड़ी औरत होती हैं खुदरंग 

इसे देख नदी ,  पहाड़ , झरने , आकाश 

सब रह जाते हैं दंग ,  

जब दिन भर की मेहनत के बाद 

रात की ख़ामोशी में 

खोलनी पड़ती  हैं उसे अपनी  मजबूत टांगे  

एक पुरुष के अभद्र इशारे से  

तब बहुत रोता हैं आसमान 

रोते हैं  चाँद - सितारे 

रोती है ये धरती 

रोती है वही पहाड़ी पगडण्डी, 

लेकिन अगली सुबह 

रात की चादर को छोड़ कर 

जब  मुस्कुरा उठती है पहाड़ी औरत ,

 तो कुदरत के साथ साथ  

मैं भी हो जाता हूँ हैरान 

 एक पहाड़ी नदी की मानिंद 

खिलखिला उठता है आसमान । 



कवि  -इन्दुकांत आंगिरस 

Sunday, December 10, 2023

लघुकथा - प्रजातंत्र

 प्रजातंत्र

प्रजातंत्र एक ऐसी प्रणाली होती  है जिसमें नेता लूटते हैं प्रजा को और प्रजा स्वयं को लुट जाने देती हैं। चुनाव के समय नेता चाँद देने का वायदा करते हैं लेकिन प्रजा को रोटी भी नहीं मिलती। प्रजा के टूटे सपनों की ईंटों पर नेताओं के महलों की बुनियाद पड़ती है। नेताओं के भाषण मीडिया पर चहकने लगते हैं और आम आदमी की आवाज़ उन भाषणों के शोर  में खो जाती है। प्रजातंत्र का शिक्षक शिक्षा की ख़रीद - फ़रोख़्त करने से नहीं चूकता , फिर भी प्रजातंत्र उससे नहीं रूठता। जहाँ बोलने की आज़ादी का मतलब गला फाड़ कर चिल्लाना,जहाँ ईमानदारी का मतलब अपने अलावा सबको बेईमान समझना ,जहाँ साहूकारी  का मतलब है नाप तोल कर  लूटना।  प्रजातंत्र एक ऐसी जादूनगरी होती हैं जिसमें रहने वाले बापू के तीन बन्दर भी बरगला उठते  हैं हैं, यानी गूंगे , बहरे और अंधे बन जाओ और प्रजातंत्र का जश्न मनाओ । 

मैं ऐसी ही एक जादूनगरी में रहता हूँ , और आप ? आप कहाँ रहते हैं ?




लेखक - इन्दुकांत  आंगिरस 


लघुकथा - कलाकार



लघुकथाकलाकार 


 ज़िंदगी की तंगहाली से परेशान हो कर शिल्पकार ने अपनी नवीनतम कृति को भीगी आँखों  से  निहारा। अगर घर में रोटी के लाले न होते तो वह इस मूर्ती को बेचने  की कभी न सोचता।  नियत समय पर मूर्ति का ख़रीददार आ पहुँचा ।  ग्राहक ने ग़ौर से  मूर्ती का मुआयना किया 

और एक नज़र मूर्तिकार के टूटे -फूटे घर पर डाली। ग्राहक समझ गया था कि मूर्तिकार मजबूरी में मूर्ती बेच रहा है और ग्राहक जोकि पेशे से व्यापारी था , किसी की भी मजबूरी का फायदा उठाना बख़ूबी जानता था।  यूँ तो कला की कोई क़ीमत नहीं होती लेकिन ग्राहक ने उस मूर्ती की क़ीमत इतनी अधिक  लगा दी कि शिल्पकार ने आनन् - फानन में मूर्ती उसको बेच दी ।  

कुछ महीनों बाद शहर में अंतर्राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी लगी तो शिल्पकार भी वहाँ गया। प्रदर्शनी में अपनी उसी मूर्ती को देख कर उसे ख़ुशी हुई लेकिन मूर्ती पर अपने नाम के लेबल के ऊपर अब उस ग्राहक के नाम का लेबल देख कर उसका दिल टूट गया। वह थके क़दमों से कला दीर्घा से बाहर जाने लगा। दरवाज़े के पास मीडिया के लोग उस ग्राहक व्यापारी का साक्षात्कार ले रहे थे। उस   दिन उसे मालूम पड़ा कि किस तरह कुछ कला व्यापारी कला का व्यापार करते करते व्यापारी से कलाकार बन जाते है। 



लेखक - इन्दुकांत  आंगिरस 

Saturday, December 9, 2023

लघुकथा - मोमेंटो

 लघुकथा  - मोमेंटो 


लेखक के घर में क़दम रखते ही पत्रकार को इस बात का एहसास हो गया कि लेखक सिर्फ लेखक नहीं बल्कि  एक बड़े लेखक हैं।  पूरे ड्राइंग रूम में मोमेन्टोस सजे हुए थे, यहाँ तक कि दीवारें भी मोमेन्टोस से ढकी पड़ी थी। साक्षात्कार के दौरान पत्रकार ने बड़े सम्मान से सम्मान के बारे में प्रश्न उछाला " देख रहा हूँ कि  आपका ड्राइंग रूम मोमेन्टोस से भरा हुआ है , क्या किसी  लेखक का मुकाम उसके मोमेन्टोस की संख्या से आँका जा सकता है ? 

" यक़ीनन , जिसको जितने अधिक सम्मान मिलेंगे , जितने मोमेन्टोस मिलेंगे , वो उतना बड़ा लेखक होगा।  " - बड़े लेखक ने दृढ़ता से जवाब दिया। 

-"  शायद आपको मालूम हो कि नसीरुद्दीन शाह ने इस तरह के सम्मानों और मोमेन्टोस को आयोजित - प्रायोजित की श्रेणी में रखा है और उन्होंने अपने तमाम मोमेन्टोस अपने फार्म हाउस के दरवाज़ों पर हैंडल बना कर लगा दिए हैं।  इसके बारे में   आपका  क्या विचार है ? " 

- " जी , सुना था मैंने भी , शायद उस समय नसीरुद्दीन शाह  के पास पैसो की कमी रही होगी सो उन्होंने अपने मोमेन्टोस को दरवाज़ों पर जड़वा दिया , लेकिन मेरे पास पैसो की कोई कमी नहीं है। "

बड़े लेखक का जवाब सुन कर पत्रकार चाह  कर भी लेखक के सामने ठहाका तो नहीं लगा सका लेकिन उसके होंटो पर एक लम्बी मुस्कान तो खिल ही गयी थी। 


- इन्दुकांत आंगिरस 

लघुकथा - रिकॉर्ड

 लघुकथा  - रिकॉर्ड 


पिछले दिनों दुनिया में रिकॉर्ड बनाने की होड़ लग गयी। देशज और  अंतर्राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाने के जुनून ने इन आँखों को कैसे कैसे मंज़र  दिखाए। कोरोना के वक़्त में  लावारिस लाशों के दाह संस्कार का बना अद्भुत रिकॉर्ड। लेकिन रिकॉर्ड तो रिकॉर्ड होते हैं , इतनी आसानी से नहीं बनते। असल में हुआ यूँ कि वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक में नामांकन की अंतिम तिथि आ गयी लेकिन रिकॉर्ड बनाने के लिए अभी एक लावारिस  लाश  और चाहिए  थी लेकिन कही से भी किसी के भी मरने की ख़बर नहीं मिल रही थी। संस्था के निदेशक महोदय गंभीर मुद्रा में बैठे चिंतन कर रहे थे। अब क्या होगा ? अगर कल तक वर्ल्ड रिकॉर्ड का फॉर्म नहीं भरा तो एक साल की लिए बात टल जाएगी और क्या पता अगले साल इतनी मौत हो या नहीं।  तभी द्वारे आवाज़ लगाते , मैले कुचले फटे कपडे पहने एक बूढा  लाचार भिखारी को देखते ही निदेशक की आँखें चमक उठी  और उनका गुर्गा  उनका इशारा  समझ अपनी तलवार की धार तेज़ करने में लग गया । संस्था का नाम वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में सम्मिलित हो गया था लेकिन उस दिन के बाद वो बूढा  लाचार भिखारी मोहल्ले में दिखाई नहीं दिया। 



लेखक -  इन्दुकांत आंगिरस