तस्वीरें खींचने का शौक़ बहुत कम उम्र से ही लग गया था। कई सालों तक फ़ोटोग्राफ़ी का काम भी किया। मैं कोई प्रोफ़ेशनल फोटोग्रफर तो नहीं हूँ लेकिन जब-तब कुछ तस्वीरें खीचीं। अब उन्हीं तस्वीरों को शब्दों में उतारने की कोशिश है। तस्वीरें कभी झूठ नहीं बोलती , अपने द्वारा खींची हुई चंद तस्वीरों के ज़रीये मैं आम आदमी की ज़िंदगी पर अपनी चिंता दर्ज़ करूँगा और आशा है कि ये चिंताएँ कही न कही , कभी न कभी आपको भी विचार करने का अवसर प्रदान करेंगी। इस प्रकार हम मिल कर एक बेहतर समाज , बेहतर देश और बेहतर संसार के निर्माण कर पाएँगे।
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमे उठाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब को उपरोक्त शे'र आज २०० साल बाद भी हमारी ज़िंदगी से जुड़ा हुआ है। यह तस्वीर बैंगलोर की एक गली की है। बैंगलोर शहर झीलों के लिए तो मशहूर है ही लेकिन इस शहर में आपको हज़ारों की संख्या में PG भी मिल जायेंगे। PG अर्थात पेइंग गेस्ट। इनमें लाखों लोग रहते हैं , अधिकतर रहने वाले युवा कर्मचारी होते हैं जो दूर दराज़ गाँव , कस्बों और शहरों से बैंगलोर महानगर में नौकरी करने के लिए आते हैं , लेकिन कुछ बदनसीब ऐसे भी होते हैं जिनके सर पर छत नहीं होती हैं। ज़मीन का बिस्तर , पत्थर का सिरहाना और आकाश की चादर ओढ़ने वाले इन बदनसीबों को PG भी नसीब नहीं होता। मेरी जानकारी में बैंगलोर शहर में ग़रीब लोगो के लिए रैन बसेरे भी नहीं हैं। चंद लोगो के लिए अपना घर एक ख़्वाब ही बन कर रह जाता है। दीवार पर चिपके PG के इश्तिहार के ठीक नीचे बैठा यह इंसान अब ख़ुद एक इश्तिहार बन चुका है। उपरोक्त तस्वीर देख कर अबरार आज़मी का यह शे'र ज़ेहन में आ गया -
ख़ुशनुमा दीवार -ओ- दर के ख़्वाब ही देखा किए
जिस्म सहरा , ज़ेहन वीरां , आँख गीली हो गयी
जिस बेशर्म दुनिया ने रहज़न बन राहगीर को रहगुज़र पर लूटा हो , उसका रहबर ख़ुदा के अलावा कौन हो सकता है ।
फ़ोटोग्राफर - इन्दुकांत आंगिरस
No comments:
Post a Comment