Friday, October 2, 2020

कीर्तिशेष तिलक राज सेठ "तलब "








हीरे बहुत हैं तू कोई    पत्थर तलाश कर 

बदलेगा जिससे तेरा मुक़द्दर तलाश कर 


पत्थर की तलाश करने वाले कीर्तिशेष तिलक राज सेठ "तलब " से मेरी पहली मुलाक़ात इंदिरा नगर , बैंगलोर में उनके घर पर ही हुई थी।  लगभग पाँच फुट का क़द ,गौर वर्ण , उन्नत ललाट पर सलीके से कढ़े हुए लम्बे बाल , कुरता -पायजामा और कुर्ते के जेब में चमचमाता क़लम। तलब साहिब ने अपनी मेहनत के पत्थर से हीरों को तराशा और अपना मुक़द्दर ख़ुद बनाया। तलब साहिब अपने घर के आँगन में ही हुस्न - ए -तलब की   महाना नशिस्तों  का आयोजन करते थे जिसक संचालन हमेशा जनाब मोहिउद्दीन ज़फ़र  करते थे।  माइक की देख-रेख श्री ओम जी करते थे जोकि ख़ुद तो शाइर नहीं थे लेकिन शाइरी का शौक़ रखते थे। इन नशिस्तों में अक्सर २५-३० शाइरों की हाज़री होती थी और यही पर मुझे बैंगलोर के कई नामवर शाइरों  से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।  तलब साहिब एक अच्छे शाइर तो थे ही , साथ में एक बेहतरीन चित्रकार भी थे। घर की बैठक में  उनकी कई ख़ूबसूरत पेंटिंग्स भी देखने  को मिली। आप बहुत ही धीमी आवाज़ में बात करते थे और कभी कभी तो ये गुमान होता था कि उन्होंने कुछ कहा तो है पर उनके लब खुले भी हैं कि नहीं। 


तलब साहिब ने बरसों तक फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर पब्लिसिटी डिज़ाइनर काम किया लेकिन बाद में ख़ुद को शाइरी और चित्रकारी से जोड़ लिया। उन्हें ज़िंदगी का एक लम्बा तजुर्बा हासिल था जिसकी झलक हमें उनके क़लाम में देखने को मिल सकती है।  उनकी ग़ज़लों में फ़लसफ़ा और रूहानियत भी मिलती है ,उनका यह शे'र देखे -


मौजूद है  वो    सामने  तेरे  तू   ग़ौर कर 

क़तरे  में भी कभी तू समन्दर तलाश कर 


क़तरे में समंदर को तलाश करने वाले इस शाइर को शाइरी का इस कदर शौक़ था कि हर महीने अपने घर पर नशिस्तों का आयोजन करते थे ,फ़ोन करके शाइरों को बुलाते थें और मुशायरे के बाद जमकर सबकी  ख़ातिरदारी भी करते थें। इन नशिस्तों में एक दिलचस्प बात यह भी थी कि मुशायरे के बाद संगीत की महफ़िल सजती थी जिसमे अक्सर मशहूर गायक श्री हरेकृष्ण पाहवा  उर्दू ग़ज़लें गा कर सुनाते थें।  उर्दू शाइरी के इतिहास  में जनाब तिलक राज सेठ "तलब " का नाम दर्ज़ होगा या नहीं यह तो मैं नहीं कह सकता लेकिन बैंगलोर की अदबी संस्थाओं का जब भी ज़िक्र होगा तो  तलब साहिब की अदबी बज़्म - हुस्न - ए -तलब हमेशा याद करी जायेगी। 


रेशम के    बिस्तरे पे न   तू करवटें बदल 

आ जाये जिसपे नींद वो पत्थर तलाश कर 


आख़िर तलब साहिब को वो पत्थर मिल  ही गया जिसकी उन्हें बरसों से तलाश थी और उसी पत्थर का सिरहाना लगा वो गहरी नींद में सो गए। 


प्रकाशित पुस्तक -  हुस्न - ए -तलब  ( उर्दू में ग़ज़ल संग्रह )

          " तस्सुवरात " नाम से तलब साहिब की बीस ग़ज़लों की एक CD  एल्बम भी मन्ज़रे आम पर आ चुकी है जिसमे   जनाब  मुनीर अहमद जामी साहिब द्वारा लिखे तब्सिरे को जनाब ज़फर मोहिउद्दीन और मोहतरमा शाइस्ता यूसुफ़  की आवाज़ में सुना जा सकता है। 

 CD  एल्बम






जन्म- २५ मई ' १९३२ ,अमृतसर 

निधन - १३ सितम्बर ' २०१३  , बैंगलोर 



NOTE : उनके सुपुत्र श्री राज सेठ को उनके सहयोग के लिए शुक्रिया । 

6 comments:

  1. In addition to Husn e Talab meeting for me Talab Saheb means a lot I used to meet him quite often to get his advise and encouragement during initial days of my ghazal writing ✍️ and used to share soulful bond 💝 I bow 🙇‍♀️ down to his zeal of Urdu Poetry and “Tawaaif” in Mujra format was his ultimate expression of various stage of life. I attended two live show of it. Last but not least I met Shri Chiranjeev Singh ji in this Mahfil in his humility in vast knowledge of languages is beyond expressions. Talab ji will ever remain icon of poetry specially Ghazals. Thanks a lot bringing him on your prestigious page. 💝🌹🙏

    ReplyDelete
  2. I had attended 3-4 mehfils at Talab ji's home. Beautiful memories!

    ReplyDelete
  3. तलब साहब की शख्सियत का बहुत अच्छा खाका खींचा है आपने।

    ReplyDelete
  4. तलब साहब के व्यक्तित्व पर एक सारगर्भित लेख। 🙏👍

    ReplyDelete