Friday, October 3, 2025

Mitra

 प्यारी माँ ,

सादर चरण -स्पर्श।

आज यहाँ ससुर जी का श्राद्ध था।

दिन भर उनकी स्मृतियाँ चल रही थीं। 

अभी रात को बैठे -बैठे याद आ रहा कि आज पापा को भी इस संसार से विदा गए हुए बीस साल हो गए। 

 मुझे याद आ रहा है मेरा वह सोलह साल की उम्र में घर से विदा हो जाना। मुझे याद है कि पापा बहुत बीमार थे और वे मुझे अपनी आँखों के सामने विवाह कर, विदा करना चाहते थे। आप भी उस इच्छा के आगे मजबूर थीं। मुझे विदा होना पड़ा था। मुझे लग रहा था कि काश मैं बेटा होती तो ऐसा न होता। लेकिन जब छह महीने बाद ही पापा  संसार से विदा हो गए तो लगा कि उन्होंने ठीक ही तो किया था। नहीं तो एक अधूरी आस लिए वे दुनिया से विदा होते। अंतिम समय में  उनकी आँखों में कहीं थोड़ी राहत थी तो उसके पीछे कहीं पश्चाताप की भावना भी तैर रही थी।


यहाँ जब मैं कुछ  नया बनाती हूँ तो मुझे  यादआता है  कि उन्हे  कितने व्यंजनों के बारे में पता था और वे मुझसे सब बनवाया करते थे।  फिर उनका स्वाद लेते हुए कहते थे कि तेरे हाथ लगे हैं तभी तो इतना स्वादिष्ट बना है।

मैं सोचती थी कि आप दोनों को यहाँ बुलाकर, पसंद का सब बनाकर खिलाऊंगी  लेकिन यह सपना  कभी पूरा नहीं हुआ।


 मुझे याद है कि पापा ने समाज के लिए कितने कार्य किए थे।  गाँव में स्कूल खुलवाना, पेड़ लगाना, गरीबों के हित में काम करना , अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना, देश में चल रहे क्रांतिकारी परिवर्तन में हिस्सा लेना वह सब मुझे याद आता रहता है। 

 आज भी वह  दृश्य मेरी आँखों में घूम जाता है जब मैं पापा के पास बैठी थी। वह मेरी उनसे अंतिम मुलाक़ात थी। उन्होंने मेरा हाथ कसकर थाम रखा था। लग रहा था वे  छोड़ कर नहीं जाना चाहते थे... कह रहे थे ही...बेटा मुझे मत छोड़ जा...मुझे तेरे बगैर डर लगता है...लेकिन...।

 माँ,  अभी मन बहुत भारी हो रहा। कहने को बहुत कुछ है। ढेर सारी यादें हैं। तुम्हारे पास आऊँगी तो हम साथ बैठेंगे। ढेर बातें करेंगे।

 आप अपना ध्यान रखना। 

 फिर मिलते हैं। 



आप की बेटी

कांछी

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[8:31 PM, 10/3/2025] Mitra Sakhi: महकता मन की कलम से


छोटी सी उम्र से बहुत साहित्य में रुचि रखने वाली थी मंजू । गांव में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक बहुत प्यार करते थे उसको। गांव के छोटे बच्चों से बहुत ही स्नेहा रखती थी वह।

चौथी क्लास से वह वह कविताएं लिखती थी बहुत अच्छे सुर में गाना गाती थी स्कूल में सब टीचरों की चहेती थी । स्कूल की स्टार गर्ल से जानी जाती थी वह। सबको लगता था कुछ करेगी, भविष्य में जाकर अपने स्कूल के नाम रोशन करेगी, पर होनी को कुछ और मंजूर था.......।


16 साल की होते ही मंजू के पापा ने उसकी शादी तय कर दी। सरकारी नौकरी वाला लड़का मिला था।

हुआ यूं कि लड़की को देखते ही लड़का बहुत पसंद करने लग गया और बोलने लगा कि मुझे इसी से ही शादी करनी है।मंजू के पापा को तो घर पर बैठे-बैठे लड़का मिल गया था अच्छा ही हुआ पर.......।


 पापा ने तय किया तो मना नहीं कर सकते थे, और किसी ने पूछा भी नहीं कि मंजू के मन में क्या है। जिस दिन शादी हो रही थी उसी दिन तक पता नहीं था कि मंजू को कि मेरी शादी हो रही है।

अंगेठी में बैठकर आग सेक  रही थी। जब बाहर खिड़की से किसी के आने की आहट हुई ।जब बाहर निकल कर देखा तो उसके पापा ने बोला अंदर बैठ जा। बाहर दुल्हे राजा आए थे ,मंजू शादी करने अपने भाई को लेकर।पापा ने पहले से गांव में बोल रखा था सब को न्योता दिया था, सब जमा हो गए ।उसकी    सहेलियां भी नहीं आ पाई थी ,बस उसके चाचा ताया की लडकियां थी । मंजू बहुत विचलित हो रही थी तो बहनों ने  सम्हाला। मंडप तैयार होने लगी ,उसको बहुत बुरा लगा।


वो विरोध करते करते रोती रही ।और किसी ने नहीं सुना मन अंदर कुंठा से भर गया था। पापा के सामने तो बोल ही नहीं सकते थे इतना डरते थे सब ,और उन्होंने तय किया था हम कैसे मना कर सकते थे।

उसकी अनोखी शादी में पंडित जी मंत्र पढ़ रहे थे और हमें पूजा करने के लिए निर्देशन दे रहे थे, पर मंजू का बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था पूजा करने को भी। हमारे यहां आधी रात को सिंदूर डलता है लड़की के माथे पर। उससे पहले ससुराल वाले के कपड़े पहनने होते हैं तो उसको कपड़े पहनाने के लिए अंदर ले जाया गया। उस के अंदर से विद्रोह भरा हुआ था पर बोल नहीं पा रही थी बस आंसुओं से कह रही थी कि मुझे कपड़े नहीं पहनना। सब उस को समझाने लग गए फिर तब जाकर उसने कपड़े पहना बेमन  से फिर     सिंदूर की रश्म पूरी हुई। 


दूसरे दिन सुबह विदाई होनी थी उस समय पापा ने उस को अकेले में बुलाया और बोलने लगे "घर बैठे बैठे तेरा रिश्ता आया सरकारी नौकरी वाला लड़का है मैं भी बीमार रहता हूं। मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहता था ।फिकर मत करना बेटा तुझे पेड़ के नीचे भी ले जाकर पाल सकता है।इस भरोसे से  मैंने तेरी  शादी तय करी थी।"


मंजू के मन में तो शिकायत बहुत थी आखिर ऐसा क्यों किया पापा  ? पर एक शब्द बोल नहीं पाई वह अंदर ही अंदर घुट कर रह गई और आंसुओं के  धार बहने लगे।


यह कैसी शादी है ना शहनाई ना डोली । उसको अपने ससुराल के लिए 6 घंटे की पैदल दूरी तय करनी थी। वह चलती गई अपनी किस्मत को कोसते हुए चलती गई चलती गई........

रास्ते में मेरे सहेलियां मिली सब एक ग्रुप में परीक्षा देकर लौटी थी। देखकर समझ गई क्या माजरा है। वो स्तब्ध होकर देखे जा रही थी और वो अपने मज़बूरी पर  .......।

तब तक भूगोल के शिक्षक सामने आए तो वो बोलने लगे दुल्हन जैसे सजकर किधर जा रही हो बेटा ? अब तो दहाड़ मारूं ऐसा कलेजा फटे जा रहा था उसका। 

आखिर उन से विदा लेकर

अपने ससुराल पहुंची सब लोग हैरान थे अपने भाभी और मां के अलावा किसी को बताया नहीं था उसके पतिदेव ने कि मैं शादी करके आ रहा हूं। रात को शादी के अंदर प्रवेश कराने की रस्म निभा कर दूसरे दिन के लिए पूरे गांव को न न्योता भेजा गया।

दूसरे दिन पूरे गांव का मजमा लगा था घर पर। मुंह दिखाई रस्म और भोज रखा गया था। कहां से ऐसी हूर की परी उठाकर ले आया सब लोग हैरान थे। उसको यह बात अच्छी लगी कि सबसे अलग करने की सबसे अनोखा करने की एक खास विशेषता थी उसके पतिदेव में। उन की  शादी सबसे अलग थी सबसे अनोखा थी।

लड़की एक पौधे की तरह होती है बेल की तरह जिस पेड़ में लग जाओ उसी पेड़ में रम जाती है। बहुत जल्दी से रंग गई  ससुराल में। बूढ़े बच्चे जवान सब अपने हो गए उसके। जेठ जेठानी के बच्चे उसके उम्र के बराबर थे। बड़े बुजुर्गों की आदर सम्मान करना और सेवा करना उसके अंदर कूट-कूट के भरी थी।


उसका पति उसको अपने साथ ले आया नौकरी पर।

बहुत साल हो गए उसके गांव के  मिट्टी की सोंधी खुशबू अभी भी उसको दिल में बसी है। अपने सब चाहने वाले लोग वह भुल नहीं पाई। कई लोग छूट गए स्वर्ग सिधार गए।


जीवन के आधी उमर में आखिर उसको सहेलियों के ग्रुप मिल गया। वह अपने को निखारना  चाहती है। समाज के अच्छा पहलू को आगे बढ़ाना चाहती है। आखिर वह है मां, बेटी, बहन ,सखी सब कुछ। वह समाज की परिवेश बदलने के लिए कुछ भी कर सकती है । 




मित्रा शर्मा

महू

[8:31 PM, 10/3/2025] Mitra Sakhi: तुम्हारे हीरे ,,,,

तुम्हारे हीरे जो दिए तुमने

आंसुओं की शक्ल में,,,

उस कीमती अनमोल पल और धन

दोनों को रखने की,,

कोई माकूल सी जगह

खोज रही हूं,,,,

सुनते है साथ कुछ भी नहीं जाता,,,,मरने पर

ये धन साथ ही जायेगा मेरे,,मुझे पता है,,

इसकी मालिक भी मैं

इसका उत्तराधिकार भी मेरा ही,,,

इसका हस्तांतरण सम्भव ही नही है,,,

बस इस पशोपेश में हूं,,

उन हीरे मोती जैसे आंसुओं की चमक में क्या थी भावना,,

अथाह प्रेम, कोमल दुख,अतीन्द्रिय सुख,या,,,,

स्नेह स्वयं ही चल पड़ा आंखों की राह से,,,

रुका ही नही गया उससे,,,,

कुछ भी हो अब ये सब सोचने से क्या,,,,

मुझ कुपात्र के पास,,,ये धन आ ही गया है,,,मुझे सुपात्र बनाने को,,,,,,

खुश हूं उनकी यात्रा मुझ तक आयी और

उसके ही नेह के नीड में,,,,,

मैं बैठी मुस्कुरा रही हूं,,

दरअसल अपने भाग्य पर,,इतरा रही हूं

माया कौल

[8:31 PM, 10/3/2025] Mitra Sakhi: प्रतियोगिता हेतु 

संस्मरण 


पोटली


माँ से जुड़े किस्से बहुत से है जो कम शब्दों में लिख पाना बेहद मुश्किल है। यह भी तो सही है ना कि माँ की ममता को नापना, सागर से लोटा भर पानी निकलना जैसा है। 

 एक किस्सा है जो मेरी स्मृतियों में घूमता रहता है। 


 माँ के बारे में यह कहना ठीक होगा कि माँ तो जैसे काम करने की मशीन थी। गाँव का परिवेश और घर की जिम्मेदारी माँ  खूबी से निभाती रहती थी। 


साल में आने वाली दो बड़ी एकादशी पर हम बच्चे भी उपवास कर,फलाहार करते थे। 

 उस दिन देवउठनी एकादशी थी। पापा ने मुझे बाजार से अनाज फटकारने वाला सूपा लाने को कहा और मैं पैसे लेकर निकल ही रही थी कि माँ ने कहा "भूखे पेट चक्कर आएँगे। फ़लाहार बना रही हूँ खाकर जा।"

  मुझे पापा ने बहुत कम पैसे दिए थे, इसलिए मैं नाराज थी। खाने का मन नहीं हुआ।  मैं बिना खाए निकल गई।  

बाजार, थोड़ी दूरी पर नाला पार करने के बाद आता था।  भाई वहीं पर मिल गया था। वह मेरे साथ हो लिया ।

मैं बाजार पहुँची तो मेरी तीन चार सहेलियाँ भी मिल गईं। मैंने सूपा खरीदा तो सिर्फ चार रुपए ही बचे थे। उससे भाई को कुछ खिला दिया। उस समय मुझे लग रहा था गुस्सा किए बगैर अगर माँ से कुछ रुपए माँग लेती तो अच्छा होता।

 तभी दूर से माँ आती दिखी।

 माँ मेरे लिए फलाहार  लेकर आई थी। 

 वे उसे अपनी शाल में  ही लपेटकर ले आई थीं।

 मैंने अपनी नासमझी में सोचने लगी थी कि सहेलियाँ उस पोटली को देख, क्या कहेंगी और बस उसी शर्म से उन्हें  वापस ले जाने को कह दिया।

 माँ ने बहुत बार कहा लेकिन मैं अपने बात पर अडिग रही।  माँ बहुत दुःखी थी ।

 वे भाई को साथ लेकर लौट गईं।

मेरी एक सहेली यह सब देख रही थी।

उसने समझाया कि माँ के न होने से कितना कुछ  झेलना पड़ता है। 

मैंने घर आकर माँ को सॉरी बोला।

माँ ने प्यार से मुझे गले लगा लिया।

 माँ के ऐसे प्यार को, मेरे लिए की गई उस फ़िक्र को, नाला पार कर बाजार तक  आने को, यह दिल कैसे भुला सकता है! 


मित्रा शर्मा 

महू

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