Tuesday, August 30, 2022

कीर्तिशेष सुभाष चड्ढा ( साहित्यकार सविता चड्ढा के पति )

 


                                                                  कीर्तिशेष सुभाष चड्ढा




29 अगस्त , 2022 को श्रीमती सविता चड्ढा के  पति श्री  सुभाष चड्ढा के गोलोक गमन का समाचार मिला तो मन का एक कोना रिक्त हो गया और कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गयी।  लगभग ३4-35 वर्ष पूर्व  परिचय साहित्य परिषद् की प्रारम्भिक गोष्ठियों में रूसी सांस्कृतिक केंद्र , दिल्ली  में उनसे पहली बार मुलाक़ात हुई थी। सुभाष जी कवि  नहीं थे  लेकिन कविता के रसिक ज़रूर थे। अक्सर सविता जी के साथ गोष्ठियों में आते और कविताओं का आनंद उठाते। 

हम लोग अक्सर अपनी बिरादरी के लोग यानी कवियों और लेखकों के बारे में तो लिखते है लेकिन उन श्रोताओं को भूल जाते हैं जिनकी उपस्थिति से कवि - गोष्ठियाँ और नशिस्तें हमेशा आबाद होती रही हैं। सुभाष जी एक सजग श्रोता थे और उनकी कमी हमे हमेशा उदास करेगी। 

मेरी उनसे कभी अंतरंग बाते तो नहीं हो पाई लेकिन आकर्षक  व्यक्तित्व के धनी सुभाष जी शौक़ीन और बिंदास आदमी थे। पेशे से फ़ोटोग्राफर थे और अपने  रानी बाग़, दिल्ली  के मकान नंबर 899 के ग्राउंड फ्लोर पर अपना स्टूडियो चलाते थे। पहनावा चुस्त और दुरुस्त , अक्सर जैकेट या कोट -पतलून और नेकटाई। हमेशा गर्मजोशी से मिलते , हल्की मुस्कराहट से अतिथियों  का  स्वागत  करते , विशेषरूप  से जब उनके निवास स्थान पर कोई कवि गोष्ठी या नशिस्त का आयोजन होता तो कवियों - लेखकों के स्वागत में कोई कमी न छोड़ते।  

 सुभाष जी ने सदैव अपनी पत्नी सविता चड्ढा को लेखन के लिए प्रोत्साहित किया बल्कि यूँ समझिये कि अगर सुभाष जी का सहयोग नहीं होता तो सविता जी का लेखन क्षेत्र में  वो मुक़ाम नहीं होता , जो आज उन्हें हासिल है। वास्तव में यह सुभाष जी का सपना था कि सविता जी एक प्रतिष्ठित साहित्यकार के रूप में स्थापित हो और यह ख़ुशी की बात है कि उनके जीवन काल में ही उनका सपना पूरा हो गया। 

जब तक दिल्ली में था तो कभी कभी उनसे मिलना हो जाता था , लेकिन पिछले 15 सालों से बैंगलोर में रहने के कारण यह सिलसिला टूट गया। पिछले वर्ष बैंगलोर में आयोजित : सर्वभाषा समन्वय समिति के साहित्यिक कर्नाटक उत्सव में सविता जी से मुलाक़ात हुई तो बहुत सी  यादे फिर से ताज़ा हो गयी थी। 


आशा है सुभाष जी के प्रेरक व्यक्तित्व से हम सभी कुछ न कुछ सीख पाएँगे, विशेषरूप से किसी सृजनकार को प्रोत्साहित करना। 


कीर्तिशेष सुभाष चड्ढा का पार्थिव शरीर तो राख में तब्दील हो चुका है लेकिन उनकी  दास्तां अभी ज़ारी है ,

 बक़ौल मीर ' तक़ी ' मीर -

मर्ग इक माँदगी का वक़्फ़ा है 

यानी आगे चलेंगे दम ले  कर। 



प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस 


  


2 comments:

  1. पढ़ कर झटका लगा कि असमय ही वे हमें छोड़कर चले गए। उनके रानीबाग स्थित घर में हलक़ा की नशिस्तों में शिरकत करने का मौक़ा मुझे भी कई बार मिला है, उनकी मेहमाननवाजी का मैं भी साक्षी हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को सद्गति प्रदान करें और समस्त परिवार को यह दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करें, यही प्रार्थना है। ओ३म् शांति।🙏

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